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इसमें संहिता के साथ-ही-साथ ब्राह्मणों के भी उद्धरण मिलते हैं तथा प्राचीन दस धर्म सूत्रकारों का उल्लेख है - काण्व, कुणिक, कुत्सकोत्स, पुष्करसादि, वार्ष्यायणि, श्वेतकेतु, हारीत आदि । इसके अनेक निर्णय जैमिनि से साम्य रखते हैं तथा मीमांसाशास्त्र के अनेक पारिभाषिक शब्दों का भी प्रयोग है। इसका समय वि० पू० ६०० वर्ष से ३०० वर्ष है । आपस्तम्ब के निवासस्थान के संबंध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है । डॉ० बूलर के अनुसार ये दाक्षिणात्य थे किन्तु एक मन्त्र में यमुनातीरवर्त्ती साल्वदेशीय स्त्रियों के उल्लेख के कारण इनका निवासस्थान मध्यदेश माना जाता है— योगन्धरिदेव नो राजेति साल्वरिवादिषुः । विवृत्तचक्रा आसीनास्तीरेण यमुने! तव ॥
वर्ण्यविषय - इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है— चारों वर्णं तथा उनकी प्राथमिकता, आचार्य की महत्ता एवं परिभाषा, उपनयन, उपनयन के उचित समय का अतिक्रमण करने से प्रायश्चित्त का विधान, ब्रह्मचारी के कर्तव्य, आचरण, उसका दण्ड, मेखला, परिधान, भोजन एवं भिक्षा के नियम, वर्णों के अनुसार गुरुओं के प्रणिपात की विधि, उचित तथा निषिद्ध भोजन एवं पेय का वर्णन, ब्रह्महत्या, आत्रेयीनारी- हत्या, गुरु या श्रोत्रिय की हत्या के लिए प्रायश्चित्त, सुरापान तथा सोने की चोरी के लिए प्रायश्चित्त, शुद्रनारी के साथ संभोग करने पर प्रायश्चित्त गुरुशय्या अपवित्र करने पर प्रायश्चित्त तथा विवाहादि के नियम आदि ।
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[ हरदत्त की टीका के साथ कुम्भकोणम् से प्रकाशित ] आधारग्रन्थ - हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र भाग १ - डॉ० पी० वी० काणे आपिशलि - पाणिनि के पूर्ववर्ती संस्कृत वैयाकरण । इनका समय ( मीमांसक जी के अनुसार ) ३००० वि० पू० है । इनके मत का उल्लेख 'अष्टाध्यायी', 'महाभाष्य', 'न्यास' एवं 'महाभाष्यप्रदीप' प्रभृत्ति ग्रन्थों में प्राप्त होता है । वा सुष्यापिशलेः । अष्टाध्यायी ६।१।९२ एवं च कृत्वाऽऽपिशलेराचार्यस्य विधिरुपपन्नो भवतिधेनुरन निकमुत्पादयति ॥ महाभाष्य ४।२।४५ 'महाभाष्य' से पता चलता है कि कात्यायन एवं पतञ्जलि के समय में ही आपिशलि के व्याकरण का प्रचार एवं लोकप्रियता प्राप्त हो चुकी थी । प्राचीन वैयाकरणों में सर्वाधिक सूत्र इनके ही प्राप्त होते हैं, जिनसे विदित होता है कि इनका व्याकरण पाणिनीय व्याकरण की तरह ही प्रोढ़ एवं विस्तृत रहा होगा । इनके सूत्र अनेकानेक व्याकरण ग्रन्थों में बिखरे हुए हैं । इन्होंने व्याकरण के अतिरिक्त 'धातुपाठ, 'गणपाठ', 'उणादिसूत्र' तथा 'शिक्षा' नामक चार अन्य ग्रन्थ भी लिखे हैं । इनके 'घातुपाठ' के उद्धरण 'महाभाष्य' 'काशिका,' 'न्यास' तथा 'पदमब्जरी' में उपलब्ध होते हैं तथा 'गणपाठ' का उल्लेख भर्तृहरिकृत 'महाभाष्यदीपिका' में किया गया है ।
उणादिसूत्र - इसके वचन उपलब्ध नहीं होते । शिक्षा - यह ग्रन्थ पाणिनीय शिक्षा से मिलता-जुलता है । इसका संपादन पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने किया है ।
कोश - भानुजी दीक्षित के उद्धरण से ज्ञात होता है कि आपिशलि ने एक कोशग्रन्थ की भी रचना की थी । अक्षरतन्त्र — इसमें सामगानविषयक स्तोभ वर्णित हैं । इनका प्रकाशन सत्यव्रतसामश्रयी द्वारा कलकत्ता से हो चुका है। इनके कतिपय उपलब्ध सूत्र इस प्रकार हैं- उभस्योभयोऽद्विवचनटापो::- तन्त्र प्रदीप २०३८ विभक्त्यन्तं पदम् ।