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आदि पुराण]
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[आपस्तम्ब धर्मसूत्र
जम्बूद्वीप एवं उसके अन्तर्गत सभी पर्वतों का वर्णन किया गया है। इसके रचयिता जिनसेन हैं जो शंकराचार्य के परवर्ती थे। 'श्रीमदभागवत' में वर्णित २४ अवतारों की कथाओं में आठवाँ अवतार ऋषभदेव जी का है। ये अवधूत योगी थे तथा इन्होंने परमहंस धर्म का प्रचार किया था। ( श्रीमद्भागवत ५।५।२८ ) ये नग्न एवं पागल की तरह रहा करते थे। इन्होंने कर्णाटक में जाकर अग्नि-प्रवेश कर प्राण त्यागा था। 'आदि पुराण' में बारह हजार श्लोक हैं। जैन परम्परा के अनुसार ऋषभदेवजी का जन्म सर्वार्थसिद्धियोग, उत्तराषाढ़ नक्षत्र, धनराशि, चैत्रमास की कृष्णाष्टमी को हुआ था। इनके पिता इक्ष्वाकुवंशीय थे निजका नाम नाभि था। इनकी माता का नाम महारानी मरुदेवी था। इनकी राजधानी विनीता नामक नगर में थी। इन्होंने सृष्टितत्त्व पर विचार करते हुए शंकराचार्य के अद्वैतसिद्धान्त का खण्डन किया है । इनके अनुसार सृष्टि अनादि निधन है । इससे इस पुस्तक के समय पर प्रकाश पड़ता है।
आनन्द रामायण-यह रामभक्ति के रसिकोपासकों का मान्य ग्रन्थ है । इसका अनुमानित रचनाकाल १५ वों शताब्दी है। इसमें 'अध्यात्मरामायण' के कई उद्धरण प्राप्त होते हैं। इस रामायण में कुल ९ काण्ड एवं १२९५२ श्लोक हैं। प्रथम काण्ड 'सारकाण्ड' कहा जाता है जिसमें १३ सर्ग हैं तथा रामजन्म से लेकर सीताहरण तक की कथा वर्णित है। द्वितीय काण्ड 'यात्राकाण्ड' है, जिसमें ९ सर्ग हैं। इसमें रामचन्द्र की तीर्थयात्रा का वर्णन है। तृतीयकाण्ड को 'यागकाण्ड' कहते हैं । इसमें ९ सर्ग हैं और रामाश्वमेध का वर्णन किया गया है। चतुर्थ काण्ड 'विलासकाण्ड' के नाम से अभिहित है। इशमें ९ सर्ग हैं तथा सीता का नख-शिख-वर्णन, राम-सीता की जलक्रीडा, उनके नानाविध शृङ्गारों एवं अलंकारों का वर्णन एवं नाना प्रकार के विहारों का वर्णन है । पन्चम काण्ड 'जन्मकाण्ड' है। इसमें ९ सर्ग हैं तथा सीता निष्कासन एवं लवकुश के जन्म का प्रसंग है। षष्ठ काण्ड का नाम 'विवाहकाण्ड' है। इसमें चारों भाइयों के आठ पुत्रों का विवाह वणित है। इसमें भी ९ सर्ग हैं । सप्तम काण्ड को 'राज्यकाण्ड' कहते हैं। इसमें २४ सर्ग हैं तथा रामचन्द्र की अनेक विजययात्राएं वर्णित हैं। इस काण्ड में इस प्रकार की कथा है कि रामचन्द्र को देखकर स्त्रियाँ कामातुर हो जाती हैं तथा रामचन्द्र अगले अवतार में उनकी लालसापूर्ति करने के लिए आश्वासन देते हैं। राम का ताम्बूल रस पीने के कारण एक दासी को कृष्णावतार में राधा बन जाने का वरदान मिलता है। अष्टम काण्ड को 'मनोहरकाण्ड' कहा जाता है। इसमें १८ सर्ग हैं तथा रामोपासना-विधि, रामनाममाहात्म्य, चैत्रमाहात्म्य एवं रामकवच आदि का वर्णन है। नवम काण्ड को 'पूर्णकाण्ड' कहा गया है जिसमें ९ सगं हैं । इसमें कुश के राज्याभिषेक तथा रामादि के वैकुण्ठारोहण की कथा है । [ इसका हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन हो चुका है ]
आपस्तम्ब धर्मसूत्र-'आपस्तम्ब कल्पसूत्र' के दो प्रश्न २८, २९-ही 'आपस्तम्ब धर्मसूत्र' के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस पर हरदत्त ने 'उज्ज्वला' नामक टीका लिखी थी। इसकी भाषा बोधायन की अपेक्षा अधिक प्राचीन है और इसमें अप्रचलित एवं विरल शब्द प्रयुक्त हुए हैं। 'आपस्तम्ब धर्मसूत्र' में अनेक अपाणिनीय प्रयोग प्राप्त होते हैं ।