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गोदापरिणयचम्पू ]
( १५९ )
[ गोपालचम्पू
अनुसार इसका उद्भवस्थान मिथिला है । इसमें 'याज्ञवल्क्य स्मृति' के अनेक कथन कतिपय परिवर्तन एवं पाठान्तर के साथ संगृहीत हैं । इसके १०७ वें अध्याय में 'पराशरस्मृति' का सार ३८१ श्लोकों में दिया गया है ।
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आधार ग्रंथ – १. भारतीय साहित्य भाग-१, खण्ड - २ – विन्टरनित्स, २. पुराणतस्वमीमांसा – श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी, ३ पुराण-विमर्श- -आ० बलदेव उपाध्याय, ४: पुराणम् ( खण्ड ६, संख्या १, जनवरी १९६४), ५. पुराणम् (चतुर्थ खण्ड ) पृ० ३५४-३५५, ६. गरुड़पुराण विषयानुक्रमणी - डॉ० रामशंकर भट्टाचार्य, ७. इण्डियन हिस्टारिकल कार्टरली । कलकत्ता ), जिल्द ६, १९३०, पृ० ५५३-६०, ८. गरुणपुराणबेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई, ९. गरुड़पुराण - हिन्दी अनुवाद ) श्री खूबचन्द्रशर्माकृत अनुवाद, नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ ।
गोदा परिणयचम्पू – यह चम्पू काव्य श्रीवेदाधिनाथभट्टाचार्य केशवनाथ द्वारा रचित है। इसका निर्माणकाल सत्रहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण है। इसमें पाँच स्तबक हैं और तमिल की प्रसिद्ध कवयित्री गोदा ( आण्डाल ) का श्रीरङ्गम के देवता रंगनाथ जी के साथ विवाह का वर्णन है । ग्रन्थ के आरम्भ में गोदा की वन्दना की गयी है ।
कल्याणं करुणा सारशीतला पांगवीक्षणे । कुवंती पातु मां नित्यं गोदावेदान्तदीपिका ॥ १।१ गोविन्दानन्दजननीं कोमलार्थपदावलिम् |
गोदा ददातु मे वाणीं मोदाय कविचेतसाम् ॥ १।२
यह रचना अभी तक अप्रकाशित है । इसका विवरण डी० सी० मद्रास १२२३० में प्राप्त होता है ।
आधार ग्रन्थ - चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी ।
गोपाल - राजधर्म के निबन्धकार | इन्होंने 'राजनीतिकामधेनु' नामक निबन्ध ग्रन्थ का प्रणयन किया था जो सम्प्रति अनुपलब्ध है । इनका समय १००० ई० के आसपास है । राजनीति निबन्धकारों में गोपाल सर्वप्रथम निबन्धकार के रूप में आते हैं। चण्डेश्वरकृत 'राजनीतिरत्नाकर' एवं 'निबन्धरत्नाकर' में गोपाल की चर्चा की गई हैगोपालस्य च कामधेनुरपणं काम्यार्थदुग्धं स्वयं, दुग्धे स्वयमेकस्य भवने सेव्यो न रत्नाकरः ।
आधार ग्रन्थ - भारतीय राजशास्त्रप्रणेता - डॉ० श्यामलाल पाण्डेय ।
गोपालचम्पू – इसके रचयिता जीवराज नामक कवि थे जो महाप्रभु चैतन्य के समकालीन तथा परम वैष्णव थे । ये महाराष्ट्र निवासी तथा भारद्वाज गोत्रोत्पन्न कामराज के पौत्र थे । इसमें कवि ने 'श्रीमद्भागवत' के आधार पर गोपाल के चरित का वर्णन किया है । स्वयं कवि ने इस पर टीका भी लिखी है । इसका प्रकाशन वृंदावन से बंगाक्षरों में हुआ है तथा विवरण मित्रा कैटलॉग, वालू० १ नं० ७२ में है । कवि के ही शब्दों में इसका परिचय इस प्रकार हैं ।