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रामचरित]
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[रामानुजाचार्य
उहरण हैं जिनका कहीं भी उल्लेख नहीं है। इस दृष्टि से इस ग्रन्थ का ऐतिहासिक महत्व सिद्ध होता है। श्रीविशाखदत्त कृत 'देवीचन्द्रगुप्तम्' नामक अनुपलब्ध नाटक का उद्धरण इसमें प्राप्त होता है। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद आचार्य विश्वेश्वर सिवान्तशिरोमणि ने किया है। ___ आधारग्रन्थ-१. हिन्दी नाट्यदर्पण-अनु० आ० विश्वेश्वर, २. भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १-आ० बलदेव उपाध्याय ।
रामचरित-यह श्लेष काव्य है। इसके रचयिता सन्ध्याकरनन्दी हैं जो बंगाल के निवासी थे। उनके पिता का नाम प्रजापतिनन्दी था। 'रामचरित' की रचना मदनपाल के राज्यकाल में हुई थी जिनका समय एकादश शतक का अन्तिम भाग है। इसमें कवि ने भगवान् रामचन्द्र तथा पालवंशी नरेश रामपाल का एक ही साथ श्लेष के द्वारा वर्णन किया है। [वीरेन्द्र रिसर्च सोसाइटी ( कलकत्ता) से १९३९ ई. में प्रकाशित, सम्पादक डॉ. रमेशचन्द्र मजूमदार ]
रामदैवक्ष-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। इनका स्थिति-काल १५६५ ई० है। ये प्रसिद्ध ज्योतिषशास्त्री अनन्तदैवज्ञ के पुत्र थे और नीलकण्ठ ( ज्योतिष के आचार्य) इनके भाई थे। रामदैवज्ञ ने 'मुहत्तचिन्तामणि' नामक फलित ज्योतिष का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है जो विद्वानों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। कहा जाता है कि अकबर की आज्ञा से इन्होंने 'रामविनोद' संज्ञक ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की थी और टोडरमल के प्रसन्नार्थ 'टोडरानन्द' का निर्माण किया था। 'टोडरानन्द' संहिताविषयक ग्रन्थ है जो सम्प्रति उपलब्ध नहीं है ।
आधारग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द शास्त्री।
रामानुजाचार्य-श्री वैष्णव मत के प्रतिष्ठापक तथा विशिष्टाद्वैतवाद नामक वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक । इनका जन्म १०१७ ई० में ( समय १०१७ से ११३७ ई० ) मद्रास के निकटस्थ ग्राम तेरंकुदूर में हुआ था। वे प्रसिद्ध आचार्य यामुनाचार्य के निकट सम्बन्धी थे। उनके पिता का नाम केशवभट्ट था। उन्होंने यादवप्रकाश नामक अद्वैती विद्वान् से कांची में जाकर शिक्षा ग्रहण की। किन्तु उपनिषद्-विषयक अर्थ में गुरु-शिष्य में विवाद उपस्थित होने के कारण यह अध्ययन-क्रम अधिक दिनों तक नहीं चला सका, फलतः उन्होंने स्वतन्त्ररूप से वैष्णवशास्त्र का अनुशीलन करना प्रारम्भ कर दिया। उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं-'वेदार्थसंग्रह' (इसमें शांकर अद्वैत तथा भेदाभेदवादी भास्करमत का खण्डन किया गया है ), 'वेदान्तसार' (यह ब्रह्मसूत्र की लध्वक्षरा टीका है ), 'वेदान्तदीप' (ब्रह्मसूत्र की विस्तृत व्याख्या ), 'गीताभाष्य' ( श्रीवैष्णवमतानुकूल गीता का भाष्य), ब्रह्मसूत्र का विशिष्टाद्वैतपरक भाष्य जिसे 'श्रीभाष्य' कहते हैं।
तत्वमीमांसा-रामानुजाचार्य का मत विशिष्टाद्वैतवाद कहा जाता है। इस मत में पदार्थत्रय की मान्यता है-चित्, अचित् तथा ईश्वर । चित् का अर्थ भोक्ता जीव से है तथा अचित भोग्य जगत् को कहते हैं । ईश्वर सर्वान्तर्यामी परमेश्वर है। रामानुज के अनुसार जीव और जगत् भी नित्य और सत्य हैं, क्योंकि ये ईश्वर के अंग हैं,