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चम्पूकाव्य का विकास]
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[चम्पूकाव्य का विकास
के तीन रूप दिखाई पड़ते हैं-नीति और उपदेश प्रदकथात्मकरूप, पौराणिकरूप तथा दृश्यकाव्यात्मक रूप।
संस्कृत में चम्पू काव्यों का निर्माण प्रथम शताब्दी के पूर्व से ही प्रारम्भ हो गया है। संस्कृत का सर्वाधिक प्राचीन चम्पू त्रिविक्रमभट्ट रचित 'नलचम्पू' है जिसे 'नलदमयन्ती' कथा भी कहते हैं। इसका रचनाकाल ९१५ ई० है। तब से चम्पूकाव्य का विशाल साहित्य प्रस्तुत हुआ है और लगभग २४५ ग्रन्थों का विवरण प्राप्त होता है जिनमें से ७४ ग्रन्थ प्रकाशित भी हो चुके हैं। चम्पूकाव्य के ग्यारह वर्ग निर्धारित किये
१-रामायण की कथा के आधार पर रचित चम्पू-इस वर्ग में ३६ ग्रन्थ आते हैं-रावणचम्पू, अमोघराघव, काकुत्सविजय, रामचन्द्रचम्पू, रामायणचम्पू, रामकथा सुधोदय, रामचरितामृत, रामाभ्युदय, रामचम्पू, अभिनवरामायणचम्पू आदि ।
२-महाभारत के आधार पर बने चम्पू-'महाभारत' की कथा पर आश्रित चम्पू काव्यों की संख्या २७ है। भारतचम्पू, भारत चम्पूतिलक, भारतचरितचम्पू, अभिनव. महाभारतचम्पू, राजसूयप्रबन्ध,पांचाली स्वयम्बर, सुभद्राहरण, द्रौपदीपरिणय, शंकरानन्दचम्पू, कर्णचम्पू, नलचम्पू आदि ।
३-भागवत के आधार पर निर्मित चम्पूकाव्य-इस वर्ग के अन्तर्गत ४५ चम्पू काव्य हैं । भागवतचम्पू, रुक्मिणी, परिणयचम्पू, आनन्द वृन्दावन, गोपालचम्पू, माधवचम्पू, आनन्दकन्दचम्पू, नृगमोक्षचम्पू, बालकृष्णचम्पू, उषापरिणय आदि ।। ___४–'शिवपुराण' की रुद्रसंहिता एवं लिंगपुराण' पर आश्रित चम्पूकाव्यों की संख्या ६ है । इनके अतिरिक्त अन्य वर्ग हैं-पुराणों पर आश्रित चम्पू, जैनपुराण पर आश्रित चम्पू, चरितचम्पू काव्य, यात्राप्रबन्धात्मक चम्पू, स्थानीय देवताओं एवं महोत्सवों का वर्णन करने करने वाले चम्पू, काल्पनिक कथा पर आश्रित तथा दार्शनिक चम्पूकाव्य।
दसवीं शताब्दी में हरिश्चन्द्र तथा सोमदेव ने 'जीवन्धरचम्पू' एवं 'यशस्तिलकचम्पू, की रचना की है। दोनों ही जैन मुनि थे। हरिश्चन्द्र का ग्रन्थ 'उत्तरपुराण' की कथा पर आश्रित है। 'भोजराज ने रामायणचम्पू', अभिनव कालिदास ने ( ११ वीं शती ) ने 'उदय सुन्दरी कथा' तथा सोमेश्वर ने 'कीर्ति कौमुदी' नामक ग्रन्थ लिखे हैं। १५ वीं शताब्दी में वासुदेवरथ ने 'गंगावंशानुचरित', अनन्तभट्ट ने 'भारतचम्पू', तिरुलम्बाने 'वरदराजाम्बिका परिणयचम्पू' नामक ग्रन्थों का निर्माण किया है। १६ वीं शताब्दी के चम्पूकारों में राजचूड़ामणिदीक्षित ( भारतचम्पू ), जीवगोस्वामी ( गोपालचम्पू ) चिदम्बर .( भागवतचम्पू ), शेषकृष्ण ( भागवतचम्पू ) प्रसिद्ध हैं । १७ वीं शताब्दी के लेखकों में चक्रकवि (द्रौपदीपरिणयचम्पू ), वेंकटाध्वरी ( चार चम्पू के प्रणेता ) तथा १८ वीं शताब्दी के चम्पूकारों में बाणेश्वर (चित्रचम्पू) कृष्णकवि (मन्दारमीरन्दचम्पू ) एवं अनन्त ( चम्पूभारत ) के नाम उल्लेख हैं।
संस्कृत में चम्पूकाव्यों की समस्त प्रवृत्तियों का विकास १० वीं शताब्दी से १६ वीं शताब्दी तक होता रहा । सोलहवीं शताब्दी चम्पूकाव्यों के निर्माण का स्वर्णयुग है क्योंकि इसी युग में अधिकांश ग्रन्थों की रचना हुई है। दो सौ से अधिक चम्पूकाव्य