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गोविन्द चरितामृत]
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[गौतम धर्मसूत्र
६ अध्याय । प्रपाठक कण्डिकाओं में विभक्त हैं जिनकी संख्या २५८ है। यह ब्राह्मणों में सबसे परवर्ती माना जाता है। इसके रचयिता गोपय ऋषि हैं। यास्क ने इसके मन्त्रों को 'निरुक्त' में उद्धृत किया है, इससे इसकी निरुक्त' से पूर्वभाविता सिद्ध होती है। ब्लूमफील्ड ने इसे 'वैतानसूत्र' से बर्वाचीन माना है, किन्तु डॉ. कैलेग एवं कोष के मत से यह प्राचीन है। इसका अनुमानित समय वि० पू० चार हजार वर्ष है। इसमें 'अथर्ववेद' की महिमा का बखान करते हुए उसे सभी वेदों में श्रेष्ठ बताया गया है। इसके प्रथम प्रपाठक में ओंकार एवं गायत्री की महिमा प्रदर्शित की गयी है। द्वितीय प्रपाठक में ब्रह्मचारी के नियमों का वर्णन तथा तृतीय और चतुर्थ में ऋत्विजों के कार्यकलाप एवं दीक्षा का कथन है। पन्चम प्रपाठक में सम्वत्सर का वर्णन है तथा अन्त में अश्वमेध, पुरुषमेध, अग्निष्टोम आदि अन्य यज्ञ वर्णित हैं। उत्तर भाग का विषय उतना सुव्यवस्थित नहीं है। इसमें विविध प्रकार के यशों एवं उनसे सम्बद्ध कथाओं का उल्लेख किया गया है। भाषाशास्त्र की दृष्टि से भी इसमें अनेक महत्वपूर्ण तथ्य भरे हुए हैं। ___ आधार प्रन्थ-१. अथर्ववेद एण्ड गोपथ ब्राह्मण-ब्लूमफील्ड २. अथर्ववेद और गोपथ ब्राह्मण-( उपयुक्त ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद ) अनु. ग. सूर्यकान्त १९६५, पोखम्बा प्रकाशन ३. वैदिक साहित्य और संस्कृति बा. बलदेव उपाध्याय ।
- गोविन्द चरितामृत-इस महाकाव्य की रचना श्री कृष्णदास कविराज ने की है। इसमें २३ सर्ग एवं २५११ श्लोक हैं । कवि ने राधाकृष्ण की अष्टकालिक लीलाबों का इसमें वर्णन किया है। इन्होंने बंगला में चैतन्य महाप्रभु की जीवनी 'चैतन्य परितामृत' के नाम से लिखी है। ___ गौतम धर्मसूत्र-यह धर्मसूत्रों में प्राचीनतम ग्रन्थ है । इसके अध्येता, विशेषतः 'सामवेद' के अनुयायी होते थे। कुमारिल के अनुसार इसका सम्बन्ध सामवेद से है। परणब्यूह की टीका से ज्ञात होता है कि गौतम सामवेद की राणायनीय बाबा की नी भवान्तर शाखाओं में से एक उपविभाग के आचार्य थे। सामवेद के लाट्यायम भौतसूत्र (१॥३॥३, १।४।१७) एवं द्राह्मायण श्रोतसूत्र (१,४,१७७९,३, १४) में बौतम नामक आचार्य का कई बार उल्लेख है तथा सामवेदीय 'गोभिल ग्रह्मास्त्र' में (१६) उनके उदरण विद्यमान हैं। इससे बात होता है कि श्रीत, गृह क्या धर्म के सिमान्तों का समन्वित रूप 'गौतमसूत्र' था। इस पर हरदत्त ने टीका लिसी बी। इसका निर याज्ञवल्क्य, कुमारिल, शङ्कराचार्य एवं मेधातिथि द्वारा किया गया है। गौतम याक के परवर्ती हैं। उनके समय में पाणिनि-व्याकरण या तो था ही नहीं और यदिपा भी तो उसकी महत्ता स्थापित न हो सकी थी। इस सबका पता पौधावन एवं बसिष्ठ को था। इससे इसका रचनाकाल ईसा पूर्व ४.०-६.. । टीकाकार हरदत्त के अनुसार इसमें २८ अध्याय हल्चार सम्पूर्ण पद गम में रवि है। इसकी विषय-सूची इस प्रकार है-धर्म के उपादान, मूल वस्तुओं की माला के नियम, पारो बों के उपनयन का काल, यज्ञोपवितविहीन व्यक्तियों नियम, परीके नियम, गृहस्थ के नियम, विवाह का समय, परवा तवा विवाह बाठो प्रकार,