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गणेश ]
( १५७ )
[ गदाधर भट्टाचार्य
आधार ग्रन्थ - १. भारतीयदर्शन - आ० बलदेव उपाध्याय २. मीमांसा दर्शनपं० मण्डन मिश्र ।
गणेश – ज्योतिषशास्त्र के आचार्यं । इनका जन्म १५१७ ई० में हुआ था । इन्होंने तेरह वर्ष में ही 'ग्रहलाघव' नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की थी । इनके माता-पिता का नाम क्रमशः लक्ष्मी एवं केशव था। इनके अन्य ग्रन्थ हैं -- लघु तिथि - चिन्तामणि, बृहत्तिथिचिन्तामणि, सिद्धान्त शिरोमणिटीका, लीलावतीटीका, विवाहवृन्दावन टीका, मुहुत्ततत्त्वटीका, श्राद्धादिनिर्णय, छन्दार्णवटीका, सुधीररंजनीतर्जनीयन्त्र, कृष्ण जन्माष्टमीनिर्णय, होलिकानिर्णय ।
सहायक ग्रन्थ — भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्रशास्त्री |
गदनिग्रह — आयुर्वेदशास्त्र का ग्रन्थ । इसके रचयिता का नाम सोढल है । ये गुजरात के निवासी तथा जोशी थे । इनका समय १३ वीं शताब्दी का मध्य है । गदनिग्रह दस खण्डों में विभक्त है जिसके प्रथम खण्ड में चूणं, गुटिका, अवलेह, आसव, घृत, तैलविषयक छ: अधिकार हैं । इसमें ५८५ के लगभग योगों का संग्रह भी है तथा अवशिष्ट नौ खण्डों में कायचिकित्सा, शालाक्य, शल्य, भूततन्त्र, बालतन्त्र, विषतन्त्र, वाजीकरण, रसायन एवं पञ्चकर्माधिकार नामक प्रकरण हैं। इसमें अनेक कल्पों का भी वर्णन है— सुवर्णकल्प, कुंकुमकल्प, अम्लवेतसकल्प | सोढल ने 'गुणसंग्रह ' नामक चिकित्साग्रन्थ की भी रचना की हैं जिसमें अपने की वैद्यनन्दन का पुत्र एवं संघदयालु का शिष्य बतलाया है
वत्सगोत्रान्वयस्तत्र वैद्यनन्दननन्दनः । शिष्यः संघदयालोश्च रायकवालवंशजः ॥ सोढलाख्यो भिषग् भानुपदपङ्कजषट्पदः । चकारेमं चिकित्सार्या समग्रं गुणसंग्रहम् ॥
गदनिग्रह का हिन्दी अनुवाद सहित ( दो भागों में ) प्रकाशन चौखम्बा विद्याभवन सेहो चुका है।
आधारग्रन्थ - आयुर्वेद का बृहत् इतिहास - श्री अत्रिदेव विद्यालंकार ।
गदाधर भट्टाचार्य - नवद्वीप ( बंगाल ) के प्रसिद्ध नव्यनैयायिकों में गदाधर भट्टाचार्य का नाम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ।
[ नव्यन्याय न्याय दर्शन की एक शाखा है जिसके प्रतिष्ठापक हैं मिथिला के प्रसिद्ध नैयायिक गंगेश उपाध्याय । दे० न्यायदर्शन ] इनका समय १७ वीं शताब्दी है । इन्होंने रघुनाथ शिरोमणि के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ [ दे० रघुनाथ शिरोमणि नवद्वीप के प्रसिद्ध नव्यन्यायाचा ] 'दीक्षिति' के ऊपर विशद व्याख्या -ग्रन्थ की रचना की है जो इनके नाम पर 'गादाधरी' की अभिधा से विख्यात है । इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या ५२ बतलायी जाती है । इन्होंने उदयनाचार्य के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'आत्मत स्व-विवेक' एवं गंगेश उपाध्याय के 'तत्त्वचिन्तामणि' नामक ग्रन्थों की टीका लिखी है जो 'मूलगादाधरी' के नाम से प्रसिद्ध है । 'तत्त्वचिन्तामणि' के कुछ ही भागों पर टीका लिखी गयी है ।