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गोपथब्राह्मण]
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[गोपथब्राह्मण
गया है। कृष्ण अर्जुन को सभी धर्मों का त्याग कर अपनी शरण में आने का संदेश देते हैं। गीता यज्ञ के महत्व को भी स्वीकार करती है। 'ब्रह्मसदा यज्ञ में प्रतिष्ठित है' । “यज्ञ से बचे हुए को खानेवाले सन्त सब पापों से छूट जाते हैं; जो पापी अपने लिए पकाते हैं, वे तो पाप ही खाते हैं।" - गीता का व्यवहार पक्ष-अध्यात्मपक्ष की भाँति गीता का व्यवहारपक्ष भी अत्यन्त रमणीय है। इसमें कर्म, ज्ञान एवं भक्ति तीनों को महत्त्व प्रदान कर इनका समन्वय किया है तथा काम, क्रोध तथा लोभ को पतन का मार्ग बताया गया है। गीता कम-योग का प्रतिपादन करती हुई निष्काम कर्म पर बल देती है। इसके कम योग के तीन सोपान हैं-फलाकांक्षा का वर्जन कर्तृत्व के अभिमान का त्याग तथा ईश्वरापण।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।। २।४७ यह कर्मयोग का महामन्त्र है जिसमें कर्म का त्याग न कर कर्मफल का त्याग वर्णित है । पके कर्मयोगी के लिए गीता ज्ञान एवं भक्ति के अवलम्बन का भी सन्देश देती है। ज्ञानी पुरुष ही निष्काम कर्म की साधना कर सकता है और भक्तिभाव के प्राधान्य से ही ईश्वर में कमी का समर्पण संभव है। गीता के ज्ञानयोग में सर्वभूतों में एक आत्मतत्व का दर्शन वर्णित है। सर्वभूतों में आत्मा का दर्शन करने वाला पुरुष 'समदर्शन' कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति की दृष्टि में विद्याविनय सम्पन्न ब्राह्मण, बैल, चाण्डाल, हाथी तथा कुत्ता समान होते हैं। ___ गीता के छठे अध्याय में ध्यान योग का वर्णन है। चंचल मन को एकाग्र करने के लिए इसमें आसन, प्राणायाम आदि योगिक साधनों के प्रयोग का उपदेश दिया गया है, इसमें योगी का महत्व तपस्वी, ज्ञानी और कर्मी से भी अधिक है। इसलिए भगवान् अर्जुन को बनने की मन्त्रणा देते हैं । भक्तियोग इसका सर्वोत्तम तत्त्व है । यह राजगुह्य या समस्त विद्यामों का रहस्य है। भक्ति ही गीता का हृदय है तथा बिना भक्ति के मनुष्य का जीवन अपूर्ण है। अनन्या भक्ति के द्वारा ही जीव भगवान् को प्रत्यक्ष देख सकता है। ज्ञानी भक्त को भगवान् ने आत्मा कहा है। गीता कम, योग, ज्ञान एवं भक्ति को स्वतन्त्र साधन-सरणि न मानकर सबका समन्वय करती है तथा आध्यात्मिक पथ के लिए सबको उपयुक्त समझती है।
आधार मन्थ-१. गीता-तिलककृत भाष्य (हिन्दी अनुवाद ) २. गीता-डॉ. राधाकृष्णन् कृतभाष्य (हिन्दी अनुवाद) ३. गीता पर निबन्ध-अरविन्द (हिन्दी अनुवाद) ४ गीता-गीता प्रेस गोरखपुर ५. भारतीय दर्शन-आ. बलदेव उपाध्याय ६. दर्शन संग्रह-डॉ. दीवान चन्द ७. भारतीय दर्शन-डॉ० राधाकृष्णन् भाग १. ( हिन्दी अनुवाद) ८. गीता-(हिन्दी भाष्य ३ खड़ों में ) म. म. पं. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी।
गोपथब्राह्मण-यह 'अथर्ववेद' का एक मात्र ब्राह्मण है । इसके दो भाग हैंपूर्वगोपथ एवं उत्तरगोपथ । प्रथम भाग में पांच अध्याय या प्रपाठक हैं एवं द्वितीय में