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ब्रह्मपुराण]
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[ब्रह्मपुराण
वाद कहते हैं। माध्यमिक-शून्यवाद या माध्यमिक मत के प्रवत्तक नागार्जुन थे। इन्होंने 'माध्यमिकशास्त्र' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इस मत के अनुसार सारा संसार शून्य है। इसके बाह्य एवं आन्तर सभी विषय असत् हैं । धार्मिक मतभेद के कारण बौद्धधर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया-हीनयान एवं महायान । हीनयान में बौद्धधर्म का प्राचीन रूप सुरक्षित है और यह अनीश्वरवादी है। यह ईश्वर के बदले कर्म एवं धर्म को महत्त्व देता है। इसकी रूपरेखा बुद्धदेव के उपदेशों के ही आधार पर निर्मित है । इसमें बुद्ध, धर्म एवं संघ तीनों पर बल दिया जाता है। इसके अनुसार मनुष्य अपने प्रयत्न से ही निर्वाण की प्राप्ति करता है। महायान-महायान हीनयान की अपेक्षा बड़ा पंथ है और इससे अनेक व्यक्ति जीवन के लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। यह उदारपंथियों का सम्प्रदाय था, फलतः इस मत का प्रचार और विस्तार चीन, जापान, कोरिया आदि में हुआ। महायानियों ने परसेवा पर अधिक आग्रह प्रदर्शित किया है। उनके अनुसार मनुष्य का उद्देश्य केवल अपनी मुक्ति न होकर अन्य को भी मुक्ति दिलाने का प्रयत्न होना चाहिए।
आधारग्रन्थ-१. भारतीयदर्शन भाग १ --- डॉ. राधाकृष्णन् ( हिन्दी अनुवाद)। २. भारतीयदर्शन-पं० बलदेव उपाध्याय । ३ बौद्ध-दर्शन-मीमांसा-पं. बलदेव उपाध्याय । ४. दर्शन दिग्दर्शन-महापण्डित राहुल सांकृत्यायन । ५. बौद्धदर्शनमहापण्डित राहुल सांकृत्यायन । ६-बौद्धसंस्कृति-महापण्डित राहुल सांकृत्यायन । ७. बौद्धदर्शन एवं अन्य भारतीयदर्शन भाग १, २-डॉ. भरतसिंह उपाध्याय । ८. जातककालीन संस्कृति-पं मोहनलाल महतो 'वियोगी' ९. बौदधर्म और दर्शनआचार्य नरेन्द्रदेव । १०. बौद्धधर्म का उद्भव और विकास-डॉ. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय । १. महात्माबुढ-श्री धर्मानन्द कौशाम्बी। १२. बौद्धविज्ञानवाद-डॉ० राजू (हिन्दी अनुवाद)। १३. जातककालीन भूगोल-डॉ० भरतसिंह उपाध्याय १४. बौखधर्म
और बिहार-पं० हवलदार त्रिपाठी। १५ उत्तर प्रदेश में बौद्धधर्म का विकासश्री नलिनाक्ष दत्त । १६. बौदन्याय-हिन्दी अनुवाद-अनु० श्री रामकुमार राय ।
ब्रह्मपुराण-यह समस्त पुराणों में आद्य या अग्रिम पुराण के रूप में परिगणित होता है। "विष्णुपुराण' एवं स्वयं 'ब्रह्मपुराण' से ही इस कथन की पुष्टि होती है। इसे 'ब्राह्मपुराण' भी कहा जाता है। भायं सर्वपुराणाना पुराणं ब्राह्ममुच्यते । अष्टादश पुराणानि पुराणाज्ञाः प्रचक्षते ॥ विष्णु ३६२० इसमें अध्यायों की कुल संख्या २४५ तथा लगभग चौदह हजार श्लोक हैं। पर श्लोकों के सम्बन्ध में विभिन्न पुराण भिन्नभिन्न संख्या प्रकट करते हैं। 'नारदपुराण' में श्लोकों की संख्या दस हजार तथा यही संख्या 'विष्णु', 'शिव', 'ब्रह्मवैवर्त', 'श्रीमद्भागवत' एवं 'मार्कण्डेयपुराण' में भी है, किन्तु 'मत्स्यपुराण' में तेरह सहस्र श्लोक होने की बात कही गयी है। आनन्दाश्रम • संस्करण में १३७८३ श्लोक हैं । 'लिंग', 'वाराह', 'कूर्म' एवं 'पद्मपुराण' भी 'ब्रह्मपुराण' की श्लोक-संख्या तेरह सहस्र स्वीकार करते हैं। ब्रह्मपुराण के दो विभाग किये गए है-पूर्व एवं उत्तर । यह वैष्णवपुराण है। इसमें पुराणविषयक सभी विषयों का