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वेद के भाष्यकार]
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[वेद के भाष्यकार
भारत के निवासी थे तथा इनका रचनाकाल संभवतः १३४५ वि० सं० के लगभग है। इन्होंने साम ब्राह्मणों पर भी भाष्य की रचना की है। ३. गुणविष्णु-इन्होंने 'साममन्त्रव्याख्यान' नामक सामवेद का भाष्य लिखा है जिसकी प्रसिद्धि मिथिला और बंगाल में है। इनका 'छान्दोग्य मन्त्रभाष्य' संस्कृत-परिषद् कलकत्ता से प्रकाशित हो चुका है। यह भाष्य सामवेद की कौथुम शाखा पर है। इनका समय १२ वीं शताब्दी का अन्तिम भाग या १३ वीं शताब्दी का प्रारम्भिक भाग है।
शुक्लयजुर्वेदभाष्य-१. ऊवट-इन्होंने राजा भोज के शासनकाल में अपना भाव्य लिखा था । ये आनन्दपुर के रहनेवाले थे । इनके पिता का नाम वजट था। इनका रचना काल ११ वीं शताब्दी का मध्य है। इन्होंने भाष्य के अन्त में अपना परिचय दिया हैआनन्दपुरवास्तव्यवजयाख्यस्य सूनूना । ऊवटेन कृतं भाष्यं पदवाक्यैः सुनिश्चितैः ।। ऋष्यादींश्च पुरस्कृत्य अवन्त्यामूवटो वसन् । मन्त्राणां कृतवान् भाष्यं महीं भोजे प्रशासति ॥ ___इनके अन्य ग्रन्थ हैं-ऋप्रातिशाख्य की टीका, यजुःप्रातिशाख्य की टीका, ऋक्सर्वानुक्रमणी पर भाष्य, ईशावास्य उपनिषद् पर भाष्य । सभी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। २. महीधर-इन्होंने 'वेददीप' नामक भाष्य की रचना की है। ये काशी निवासी नागर ब्राह्मण थे। इनका समय वि० सं० १६४५ है। इनके भाष्य पर उवट-भाष्य की छाया है।
काण्वसंहिता भाष्य - अनन्ताचार्य एवं आनन्दबोध प्रभृति विद्वानों ने शुक्लयजुर्वेद की काण्व संहिता पर भाष्य लिखा है। ये सायण के परवर्ती थे। सायण के पूर्ववर्ती भाष्यकार हलायुध हैं जिनके भाष्य का नाम 'ब्राह्मण' सर्वस्व है। ये बंगाल के अन्तिम हिन्दू नरेश लक्ष्मणसेन के धर्माधिकारी थे। इनका समय वि० सं० १२२७-१२५७ है। अनन्ताचार्य माध्ववैष्णव विद्वान् थे। इनका समय १६ वीं शताब्दी है। इन्होंने काण्वसंहिता के उत्तराध पर अपना भाष्य लिखा है। ये काशी निवासी थे।
आनन्दबोध भट्टाचार्य-इस भाष्य का प्रकाशन वाराणसेय विश्वविद्यालय की सारस्वती सुषमा नामक पत्रिका में सं० २००९-२०११ तक प्रकाशित हुआ है। अभी तक ३१-४० तक का ही अंश प्रकाशित हुआ है किन्तु सम्पूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध है। पाश्चात्य विद्वानों के कार्य-१८०५ ई० में सर्वप्रथम कोलक ने 'एशियाटिक रिसचेंज' नामक पत्रिका में वेदविषयक एक विशद विवेचनात्मक निबन्ध लिखा जिसमें वैदिक साहित्य का विवरण एवं महत्व प्रतिपादित किया गया है। १८४६ ई. में रुहाल्फ राथ नामक जर्मन विद्वान ने 'वैदिक साहित्य और इतिहास' नामक छोटी पुस्तक लिखी। इन्होंने 'संस्कृत-जर्मन महाकोश' की भी रचना की है जिसमें प्रत्येक शब्द का ऐतिहासिक क्रम से विकास एवं अर्थ दिया गया है। पाश्चात्य विद्वानों का वेदविषयक अध्ययन तीन धाराओं में विभाजित है-वैदिक ग्रन्थों का वैज्ञानिक एवं शुद्ध संस्करण, वैदिक ग्रन्थों का अनुवाद एवं वेदविषयक अनुशीलनात्मक ग्रन्थ ।
पन्थों के वैज्ञानिक संस्करण-सर्वप्रथम मैक्समूलर ने ( जर्मन विद्वान् ) सायण