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पदादूत ]
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[पपप्रभसूरि
रचना की थी, न कि उनका 'पपपुराण' पर ऋण है। इस पुराण के रचनाकाल एवं अन्य तथ्यों के अनुसन्धान की अभी पूर्ण गुंजाइश है, अतः इसका समय अधिक अर्वाचीन नहीं माना जा सकता।
आधारग्रन्थ-१ प्राचीन भारतीय साहित्य भाग १ खण्ड २-डॉ. विन्टरनित्स । २ पुराणतत्त्व-मीमांसा-श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी। ३ पुराण-विमर्श-पं० बलदेव उपाध्याय । ४ पुराण बुलेटिन-अखिल भारतीय, काशिराज न्यास । ५ पयपुराण-वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई। ६ पद्मपुराण-(हिन्दी अनुवाद ) गीता प्रेस, गोरखपुर । ७ पनपुराण-( हिन्दी अनुवाद सहित ) श्रीराम शर्मा । ८ एन्शियन्ट इण्डियन हिस्टारिकल ट्रेडीशन-पाजिटर । ९ पुराणविषयानुक्रमणिका-डॉ० राजबली पाण्डेय ।।
पदाङ्कदूत-इस दूतकाव्य के रचयिता कृष्णसार्वभौम हैं। इनका समय वि. सं० १७८० है। इनका निवासस्थान शान्तिपुर नामक स्थान (पश्चिम बंगाल ) था। इन्होंने नवद्वीप के राजा रघुरामराय की आज्ञा से 'पदादूत' की रचना की थी। काव्य के अन्त में ग्रन्थकार ने निम्नांकित श्लोक में इस तथ्य का स्पष्टीकरण किया है।
शाके सायकवेदषोडशमिते श्रीकृष्णशपिंयमानन्दप्रदनन्दनन्दनपदद्वन्द्वारविन्दं हृदि । चक्रे कृष्णपदादूतमखिलं प्रीतिप्रदं शृण्वतां
धीरश्रीरघुरामरायनृपतेराज्ञां गृहीत्वादरात् ॥४६॥ इस काव्य में श्रीकृष्ण के एक पदाङ्क को दूत बनाकर किसी गोपी द्वारा कृष्ण के पास सन्देश भेजा गया है । प्रारम्भ में श्रीकृष्ण के चरणांक की प्रशंसा की गयी है और यमुना तट से लेकर मथुरा तक के मार्ग का वर्णन किया गया है। इसमें कुल ४६ छन्द हैं। एक श्लोक शार्दूलविक्रीडित छन्द का है तथा शेष छन्द मन्दाक्रान्ता के हैं। गोपी के सन्देश का उपसंहार इन शब्दों में किया गया है
मूर्खा एव क्षणिकमनिशं विश्वमाहुन धीरा. स्तापोऽस्माकं हरिविरहजः सर्वदेवास्ति चित्ते। नान्त्यः शब्दो वचनमपि यत्तादृशं तस्य किन्तु
प्रेमैवास्मप्रियतमकृतं तच्च गोपाङ्गनासु ॥४२॥ आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देशकाव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य ।
पनप्रभसूरि-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । इनका समय वि. सं. १९२४ के आसपास है। इन्होंने 'भुवन दीपक' नामक ज्योतिष-विषयक ग्रन्थ की रचना की है जिसमें कुल १७० श्लोक हैं । इसकी सिंहतिलकसूरि ने वि. सं. १३६२ में 'विवृति' नामक टीका लिखी थी। इस ग्रन्थ के वर्ण्य विषय हैं-राशिस्वामी, उच्चनीचत्व, मित्रशत्रु, राहु का गृह, केतुस्थान, ग्रहों का स्वरूप, विनष्टग्रह, राजयोगों का विवरण, लाभालाभविचार, लग्नेश की स्थिति का फल, प्रश्न के द्वारा गर्भ-विचार तथा प्रसवज्ञान, इष्टकालज्ञान, यमविचार, मृत्युयोग, चौर्यज्ञान, आदि । इन्होंने 'मुनिसुव्रतचरित' 'कुन्थुचरित' तथा 'पाश्र्वनाथ स्तवन' नामक ग्रन्थों की भी रचना की है।
द्रष्टव्य-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री।