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काशीनाथ उपाध्याय ]
[काश्यपसंहिता
'बौधायन गृह्यसूत्र' तथा भट्टभास्कर द्वारा उद्धृत प्रमाणों से ज्ञात होता है कि काशकृत्या ने यज्ञ सम्बन्धी ग्रन्थ की भी रचना की थी।
आधारग्रन्थ-१. काशकृत्स्न व्याकरणम्-सम्पादक पं० युधिष्ठिर मीमांसक २. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १, २-लेखक युधिष्ठिर मीमांसक ।
काशीनाथ उपाध्याय-१८वीं शताब्दी के धर्मशास्त्रियों में इनका नाम अत्यन्त महत्व का है । इन्होंने 'धर्मसिन्धुसार' या 'धर्माधिसार' नामक बृहद् अन्य की रचना की है । इस ग्रन्थ का रचनाकाल १७९० ई. है। उपाध्याय जी का स्वर्गवास १८०५ ई० में हुआ था। इनका जन्म महाराष्ट्र के रत्नगिरि जिले के अन्तर्गत गोलावली ग्राम में हुआ था। ये कर्हाडे ब्राह्मण थे। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रन्थ हैं-'प्रायश्चित्तशेखर' तथा 'विट्ठल-ऋण्मन्त्रसाभाष्य' । 'धर्मसिन्धुसार' तीन परिच्छेदों में विभक्त है तथा तृतीय परिच्छेद के भी दो भाग किये गए हैं । इस ग्रन्थ की रचना 'निर्णयसागर' के आधार पर
आधारग्रन्थ-धर्मशास्त्र का इतिहास-हॉ० पा. वा. काणे भाग १ ( हिन्दी अनुवाद)।
काश्यप-पाणिनि के पूर्ववर्ती वैयाकरण जिनका समय ३००० वर्ष वि०पू० है। [पं० युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार ] इनके मत के दो उखरण 'अष्टाध्यायी' में प्राप्त होते हैं-'तृषिमृषिकृषः काश्यपस्य'-१।२।२५ 'नोदात्तस्वरितोदयमगाग्यंकाश्यपगालवानाम्' । ८।४।६७ 'वाजसनेय प्रातिशाख्य' में भी शाकटायन के साथ इनका उल्लेख है-'लोपं काश्यपशाकटायनी' ४।५ इनका व्याकरण-अन्य सम्प्रति अप्राप्य है। इनके अन्य ग्रन्थों का विवरण :
१. कल्प-कात्यायन ( वार्तिककार) के अनुसार अष्टाध्यायी ( ४।३।१०३ ) में 'काश्यपकल्प' का निर्देश है । २. छन्दःशास्त्र-पिंगल के 'छन्दःशास्त्र' में (७९) काश्यप का मत दिया गया है कि इन्होंने तद्विषयक ग्रन्थ की रचना की थी। आयुर्वेद संहिता-नेपाल के राजगुरु पं० हेमराज शर्मा ने 'आयुर्वेद संहिता' का प्रकाशन सं० १९९५ में कराया है । ४. पुराण-'सरस्वतीकण्ठाभरण' की टीका में 'काश्यपीयपुराणसंहिता' का उल्लेख है । ( ३२२२९) 'वायुपुराण' से पता चलता है कि इसके प्रवक्ता का नाम 'अकृतवणकाश्यप' था। ५. काश्यपीयसूत्र-'न्यायवात्तिक' में ( १।२।२३ ) उद्योतकार ने 'कणादसूत्रों' को काश्यपीयसूत्र के नाम से उद्धृत किया है।
आधारग्रन्थ-व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १-० युधिष्ठिर मीमांसक ।
काश्यपसंहिता-यह बायुर्वेद का प्राचीन ग्रन्थ है जिसके रचयिता ( उपदेष्टा ) मारीच काश्यप हैं। यह अन्य खण्डित रूप में प्राप्त हुआ है जिसे नेपाल के राजगुरु पं० हेमराज शर्मा ने प्रकाशित किया है। इसके सम्पादक हैं श्री यादव जी त्रिकमजी आचार्य । उपलब्ध काश्यप संहिता में सूत्रस्थान, विमानस्थान, शरीरस्थान, इन्द्रियस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान एवं खिलस्थान हैं। इसमें अनेक विषय चरक संहिता से लिए गए हैं, विशेषतः-आयुर्वेद के अंग, उसकी अध्ययनविधि, प्राथमिकतन्त्र का स्वरूप आदि । इस संहिता में पुत्रजन्म के समय होने वाली छठी की पूजा का महत्व