________________
नाटककार कालिदास ]
( २३६ )
[ नाटककार कालिदास
इनमें मृत्यु आदि घटनाएं प्रदर्शित नहीं की जातीं, अतः इनका सुखान्त होना आवश्यक है। कालिदास के तीनों ही नाटक सुखान्त हैं और सबों का प्रतिपाद्य विषय शृङ्गार है । 'मालविकाग्निमित्र' की कथा ऐतिहासिक है तथा इसके सारे कार्य-व्यापार मालविका एवं अग्निमित्र के प्रणय कथा को हो केन्द्र बना कर अग्रसर होते हैं। इसका नायक विदिशा का राजा अग्निमित्र है जो धीरललित कोटि का (नायक) है । मालविका इसकी नायिका है और वह विदर्भराज की भगिनी है। इसमें नृत्य, गीत, चित्र, शिल्प एवं विदूषक की चातुरी के सौन्दर्य की सृष्टि की गयी है । 'विक्रमोर्वशीय' एवं 'शकुन्तला' दोनों का कथानक पौराणिक है । कवि ने अपनी कथा की योजना 'ऋग्वेद', 'शतपथ ब्राह्मण', 'महाभारत' एवं 'मत्स्यपुराण' आदि ग्रन्थों के आधार पर की है । 'विक्रमवंशीय' में पुरुरवा उबंशी की प्रणयगाथा वर्णित है जिसका प्रथम सूत्र ऋग्वेद में प्राप्त होता है । 'शकुन्तला' का कथानक महाभारत से प्रभावित है। इसमें कवि की नाट्यकला का चरम परिपाक है । शकुन्तला में कथावस्तु का इस प्रकार गठन किया गया है कि छोटी-छोटी घटनाओं का भी महत्त्व बना हुआ है । कवि ने कथा में विभिन्न घटनाओं का इस प्रकार नियोजन किया है कि उसके विकास में किसी प्रकार का अवरोध नहीं होता । इन्होंने अपने तीनों ही नाटकों में नायिकाओं को प्रथमतः दयनीय दशा में उपस्थित किया है और वे नायक द्वारा किये गए उपकार के कारण उसकी ओर आकृष्ट होती हैं । मालविका को दासी के रूप में देखकर अग्निमित्र उसके प्रति सदय होता है और 'विक्रमोर्वशीय' में राक्षस के चपेट में आई हुई उवंशी को विपद् से बचाकर पुरुरवा उसका कृपाभाजन बनता है । 'शाकुन्तल' में दुष्यन्त भरे के बिन से शकुन्तला की रक्षा करता है और इस उपकार के कारण उसका प्रेम प्राप्त करता है । अतः कालिदास के नाटकों की वस्तु-योजना का प्रथम सूत्र नायक द्वारा किये गए उपकार से उसके प्रति नायिका का आकृष्ट होना है और यही आकर्षण उनके मिलन का केन्द्रबिन्दु बनता है । कालिदास ने अपने कथानक में नायक अथवा नायिका द्वारा एक दूसरे की स्थिति को छिप-छिप कर देखने का वर्णन किया है । 'विक्रमोवंशीय' में उर्वशी छिप जाती है और 'शकुन्तला' में राजा दुष्यन्त उसकी विरहावस्था का छिप कर अवलोकन करता है ।
निजी विशिष्टताएं होती
कालिदास ने चरित्र-चित्रण में नाट्यशास्त्र के नियमों को ही आधार बना कर धीरोदात्त एवं धीरललित नायको की योजना की है। नाटकों में पात्रों की योजना अत्यन्त कौशल के साथ की गयी है और छोटे-छोटे तथा गौण पात्रों का भी कथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योग रहता है एवं उनके व्यक्तित्व की हैं । कवि ने पात्रों के चित्रण में अत्यन्त सूक्ष्मता प्रदर्शित की हैं और प्रायः एक समान लगने वाले पात्रों के आचरण, विचार एवं व्यक्तित्व में अन्तर प्रदर्शित किया है । कवि जीवन की उदात्त भावनाओं का चित्रण कर अपने चरित्रों के माध्यम से जीवन को उन्नतशील बनाने वाले स्वस्थ विचारों का उद्योतन किया है। "कालिदास का शकुन्तला tree प्रेम-संबलित जीवन का आदर्श अभिनय है। इसका एक-एक पद और एक-एक