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विज्ञानेश्वर]
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[विज्जिका
के सचिव थे और इनके भाई का नाम भगवन्त था। ये गङ्गाधर अमात्य के पुत्र थे। इस चम्पूकाव्य में प्रतिष्ठानपुर के राजा विक्रमसेन की काल्पनिक कथा का वर्णन है । "इति श्रीत्र्यम्बककार्थतार्तीयीकाधमण्यपारीषगंगाधरामात्यनारायणरायसचिवविरचितो विक्रमसेनचम्पूप्रबन्धः समाप्तिमगमत् ।" यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण तंजोर कैटलाग में ७,४१४८ में प्राप्त होता है। ___ आधारग्रन्थ-चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
विज्ञानेश्वर–इन्होंने 'मिताक्षरा' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की है जो भारतीय व्यवहार ( विधि, लॉ) की महनीय कृति के रूप में समाहत है। "मिताक्षरा' याज्ञवल्क्यस्मृति का भाष्य है जिसमें विज्ञानेश्वर ने दो सहस्र वर्षों से प्रवहमान भारतीय विधि के मतों का सार गुंफित किया है। यह याज्ञवल्क्यस्मृति का भाष्यमात्र न होकर स्मृति-विषयक स्वतन्त्र निबन्ध का रूप लिए हुए है। इसमें अनेक स्मृतियों के उद्धरण प्राप्त होते है तथा उनके अन्तनिरोध को दूर कर उनकी संश्लिष्ट व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। इसमें प्रमुख स्मृतिकारों के नामोल्लेख हैं तथा अनेक स्मृतियों के भी नाम आते हैं। विज्ञानेश्वर पूर्वमीमांसा के प्रकाण्ड पण्डित थे । इस ग्रन्थ में इन्होंने स्थान-स्थान पर पूर्वमीमांसा की ही पति अपनायी है । 'मिताक्षरा' का रचनाकाल १०७० से ११०० ई० के मध्य माना जाता है । इस पर अनेक व्यक्तियों ने भाष्य की रचना की है जिनमें विश्वेश्वर, नन्दपण्डित तथा बालभट्ट के नाम विशेष प्रसिद्ध हैं। विज्ञानेश्वर ने दाय को दो भागों में विभक्त किया है-अप्रतिवन्धु एवं सप्रतिबन्धु । इन्होंने जोर देकर कहा है कि वसीयत पर पुत्र, पौत्र तथा प्रपौत्र का जन्मसिद्ध अधिकार होता है।
आधारग्रन्थ-धर्मशास्त्र का इतिहास-डॉ. पा. वा. काणे भाग १ (हिन्दी अनुवाद)।
विज्ञानभिक्षु-सांख्यदर्शन के अन्तिम प्रसिद्ध आचार्य विज्ञानभिक्षु हैं जिनका समय १६ वीं शताब्दी का प्रथमाध है। ये काशी के निवासी थे। इन्होंने सांख्य, योग एवं वेदान्त तीनों ही दर्शनों के ऊपर भाष्य लिखा है। सांस्यसूत्रों पर इनकी व्याख्या 'सांख्यप्रवचनभाष्य' के नाम से प्रसिद्ध है। व्यासभाष्य के ऊपर इन्होंने 'योगवात्तिक' तथा ब्रह्मसूत्र पर 'विज्ञानामृतभाष्य' की रचना की है। इनके अतिरिक्त इनके अन्य दो ग्रन्थ हैं-'सांख्यसार' एवं 'योगसार' जिनमें तत्तत् दर्शनों के सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन है।
बाधारग्रन्थ-भारतीय-दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय
विज्जिका-ये संस्कृत की सुप्रसिद्ध कवयित्री हैं। इनकी किसी भी रचना का अभी तक पता नहीं चला है, पर सूक्ति संग्रहों में कुछ पद्य पाप्त होते हैं। इनके तीन नाम मिलते हैं-विज्जका, विज्जिका एवं विद्या । 'शाङ्गंधरपद्धति' के एक श्लोक में विज्जिका द्वारा महाकवि दण्डी को डांटने का उल्लेख है। 'नीलोत्पलदलण्यामां विज्जिका मामजानता। वृथैव दण्डिना प्रोक्तं सर्वशुक्ला सरस्वती।" विज्जिका के