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लावली]
( ४५२ )
[रत्नावली
के सभापण्डित थे। कल्हण की 'राजतरंगिणी' में इन्हें अवन्तिवर्मा के राज्यकाल में प्रसिद्धि प्राप्त करने का उल्लेख है। ये नवम शतक के प्रथमार्ध तक विद्यमान थे। मुक्ताकणः शिवस्वामी कविरानन्दवर्धनः। प्रथां रत्नाकरश्चागात् साम्राज्येऽवन्तिवर्मणः ॥ 'हरविजय' में ५० सर्ग एवं ४३२१ पद्य हैं। ( इसका प्रकाशन काव्यमाला संस्कृत सीरीज बम्बई से हो चुका है) । रत्नाकर ने माघ की ख्याति को दबाने के लिए ही इस काव्य का प्रणयन किया था। इसमें शंकर द्वारा अन्धकासुर के वध की कथा कही गयी है। कवि ने स्वल्प कथानक को अलंकृत, परिष्कृत एवं विस्तृत बनाने के लिए जलक्रीड़ा, सन्ध्या, चन्द्रोदय आदि का वर्णन करने में १५ सगं व्यय किये हैं। कवि की गर्वोक्ति है कि इस काव्य का अध्येता अकवि कवि बन जाता है और कवि महाकवि हो जाता है-हरविजये महाकवेः प्रतिज्ञां शृणुत कृतप्रणयो मम प्रबन्धे ! अपि शिशुर कविः कविप्रभावात् भवति कविश्च महाकविः क्रमेण ॥
रत्नावली-यह हर्षवर्धन या हर्ष (दे० हर्ष ) रचित नाटिका है। इस नाटिका में राजा उदयन तथा रत्नावली की प्रेम-कथा का वर्णन है। नाटिकाकार ने प्रस्तावना के पश्चात् विष्कम्भक में नाटिका की पूर्व कथा का आभास दिया है। उदयन का मंत्री यौगन्धरायण ज्योतिषियों की वाणी पर विश्वास कर लेता है कि राज्य की अभ्युन्नति के लिए सिंहलेश्वर की दुहिता रत्नावली के साथ राजा उदयन का परिणय आवश्यक है। ज्योतिषियों ने बतलाया कि जिससे रत्नावली परिणीत होगी उसका चक्रवत्तित्व निश्चित है। इस कार्य को सम्पन्न करने के निमित्त वह सिंहलेश्वर के पास रत्नावली का विवाह उदयन के साथ करने को संदेश भेजता है, पर राजा उदयन वासवदत्ता के कारण सिंहलेश्वर का प्रस्ताव स्वीकार करने में असमर्थ हो जाता है। पर, इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए योगन्धरायण ने यह असत्य समाचार प्रचारित करा दिया कि लावाणक में वासवदत्ता आग लगने से जल मरी। इसी बीच सिंहलेश्वर ने अपनी दुहिता रत्नावली ( सागरिका ) को अपने मंत्री वसुमति तथा कंचुकी के साथ उदयन के पास भेजा, पर देवात् रत्नावली को ले जाने वाले जलयान के टूट जाने से वह प्रवाहित हो गयी तथा. भाग्यवश कोशाम्बी के व्यापारियों के हाथ लगी। व्यापारियों ने उसे लाकर यौगन्धरायण को सौंप दिया। योगन्धरायण ने उसका नाम सागरिका रख कर, उसे वासवदत्ता के निकट इस उद्देश्य से रखा कि राजा उसकी ओर आकृष्ट हो सके । यहीं से मूल कथा का प्रारम्भ होता है।
प्रथम अङ्क का प्रारम्भ मदनोत्सव से होता है । जब उदयन अपने नागरिकों के साथ मदनोत्सव में आनन्द मग्न था, उसी समय उसे सूचना प्राप्त हुई कि रानी वासदत्ता ने उन्हें काम-पूजन में सम्मिलित होने की प्रार्थना की है कि वे शीघ्र ही मकरन्दोद्यान में रक्ताशोक पादप के नीचे आयें। पूजा की सामग्री को सागरिका द्वारा लाया देखकर वासवदत्ता उसको राजा की दृष्टि से बचाना चाहती है। अतः, वह पूजा की सामग्री कांचनमाला को दिला देती है एवं सारिका की.देखभाल करने के लिए सागरिका को भेज देती है। सागरिका वहीं पर छिप कर काम-पूजा का अवलोकन करती है तथा