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वायुपुराण]
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[वायुपुराण
के दो नाम हैं, पर कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों भिन्न-भिन्न पुराण हैं। यही बात पुराणों में भी कही गयी है। "विष्णु', 'मारकण्डेय', 'कूम', वाराह', 'लिङ्ग', 'ब्रह्मवैवर्त एवं 'भागवतपुराण' में 'शिवपुराण' का वर्णन है किन्तु 'मत्स्यपुराण', 'नारदपुराण'
और 'देवीभागवत' में 'वायु' का ही उल्लेख किया गया है। पर, इस समय दोनों ही पुराण पृथक्-पृथक् रूप में प्राप्त हैं और उनके विषय-विवेचन में भी पर्याप्त अन्तर है [दे० शिवपुराण । 'वायुपुराण' में श्लोक संख्या ग्यारह सहस्र है तथा इसमें कुल ११२ अध्याय हैं। इसमें चार खण्ड हैं, जिन्हें पाद कहा जाता है-प्रक्रिया, अनुषंग, उपोटात एवं उपसंहारपाद । अन्य पुराणों की भांति इसमें भी सृष्टि-क्रम एवं वंशावली का कथन किया गया है । प्रारम्भ के कई अध्यायों में सृष्टि-क्रम का विस्तारपूर्वक वर्णन के पश्चात् भौगोलिक वर्णन है, जिसमें जम्बूद्वीप का विशेष रूप से विवरण तथा अन्य द्वीपों का कथन किया गया है। तदनन्तर अनेक अध्यायों में खगोल-वर्णन, युग, ऋषि, तीर्थ तथा यज्ञों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसके ६० वें अध्याय में वेद की शाखाओं का विवरण है और ८६ तथा ८७ अध्यायों में संगीत का विशद विवेचन किया गया है। इसमें कई राजाओं के वंशों का वर्णन है तथा प्रजापति वंश-वर्णन, कश्यपीय, प्रजासर्ग तथा ऋषिवंशों के अन्तर्गत प्राचीन बाह्य वंशों का इतिहास दिया गया है। इसके ९९ अध्याय में प्राचीन राजाओं की विस्तृत वंशावलियां प्रस्तुत की गयी हैं। इस पुराण के अनेक अध्यायों में धान का भी वर्णन किया गया है तथा अन्त में प्रलय का वर्णन है । 'वायुपुराण' का प्रतिपाय है,-शिव-भक्ति एवं उसकी महनीयता का निदर्शन । इसके सारे आख्यान भी शिव-भक्तिपरक हैं। यह शिवभक्तिप्रधान पुराण होते हुए भी कट्टरता-रहित है और इसमें अन्य देवताओं का भी वर्णन किया गया है तथा कई अध्यायों में विष्णु एवं उनके अवतारों की भी गाथा प्रस्तुत की गयी है । 'वायुपुराण' के ११ से १५ अध्यायों में यौगिक प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन है तथा शिव के ध्यान में लीन योगियों द्वारा शिवलोक की प्राप्ति का उल्लेख करते हुए इसकी समाप्ति की गयी है।
रचनाकौशल की विशिष्टता, सगं, प्रतिसगं, वंश, मन्वन्तर एवं वंशानुचरित के समावेश के कारण इसकी महनीयता असंदिग्ध है। इस पुराण के १०४ से ११२ अध्यायों में वैष्णवमत का पुष्टिकरण है, जो प्रक्षिप्त माना जाता है। ऐसा लगता है कि किसी वैष्णव भक्त ने इसे पीछे से जोड़ दिया है । इसके १०४ वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण की ललित लीला का गान किया गया है, जिसमें राधा का नामोल्लेख है । 'वायुपुराण' के अन्तिम आठ अध्यायों ( १०५-११२ ) में गया का विस्तारपूर्वक माहात्म्य-प्रतिपादन है तथा उसके तीर्थदेवता 'गदाधर' नामक विष्णु ही बताये गए हैं। इस पुराण के चार भागों की अध्याय संख्या इस प्रकार है-प्रक्रियापाद १-६, उपोद्घातपाद ७-६४, अनुषंगपाद ६५-९९ तथा उपसंहारपाद १००-११२ । 'वायुपुराण' की लोकप्रियता बाणभट्ट के समय में हो गयी थी। बाण ने 'कादम्बरी' में इसका उल्लेख किया है-'पुराणे वायु प्रलपितम्' । शंकराचार्य के 'ब्रह्मसूत्रभाष्य' में भी इसका उल्लेख है ( १।२८, १३३२३० ) तथा उसमें 'वायुपुराण' के श्लोक उपधृत