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नारायण]
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[निघण्टु
पिशुनवचन ) तथा दण्डपारुष्य ( नाना.प्रकार की चोटें ) प्रकीर्णक एवं अनुक्रमणिका का वर्णन है।
'नारदस्मृति में कुल १८ प्रकरण हैं जिनमें 'मनुस्मृति' के विषयों को संक्षिप्त रूप से रखा गया है। कतिपय नामों के भेद के अतिरिक्त दोनों में अत्यधिक साम्य है। डॉ. विन्टरनित्स ने इसमें 'दीनार' शब्द को देखकर इसका समय द्वितीय या तृतीय शताब्दी माना है । पर, डॉ. कीथ इसका काल १०० ई० से ३०० ई० के बीच मानते हैं। इसे 'याज्ञवल्क्यस्मृति' का परवर्ती माना जाता है।
आधारग्रन्थ-धर्मशास्त्र का इतिहास-(हिन्दी अनुवाद ) भाग १ --डॉ. पा. वा० काणे, अनु० ६० अर्जुन चौबे काश्यप ।
नारायण-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। इनका स्थिति-काल १५७१ ई० है । इनके पिता का नाम अनन्तनन्दन था जो टापर ग्राम के निवासी थे। इन्होंने 'मुहूत्र्तमार्तण्ड' नामक मुहूर्तविषयक ग्रन्थ की रचना की है जो शार्दूलविक्रीडित छन्द में लिखा गया है। नारायण नामक एक अन्य वद्वान् ने भी ज्योतिषविषयक ग्रन्थ की रचना की है जिनका समय १५८८ ई० है। 'केशवपद्धति' के ऊपर रचित इनकी टीका प्रसिद्ध है । इन्होंने बीजगणित का भी एक ग्रन्थ लिखा था ।
सहायकग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री।
नारायणभट्ट-इनका जन्म केरल में हुआ था। ये १५६० से १६६६ ई० के मध्य विद्यमान थे। इन्होंने चौदह चम्पूकाव्यों की रचना की है । वे हैं-मत्स्यावतारप्रबन्ध, राजसूयप्रबन्ध, पांचालीस्वयंवर, स्वाहासुधाकरचम्पू, कोटिविरह, नृगमोक्ष, सुभद्राहरण, पार्वतीस्वयंवर, नलायणीचरित, कौन्तेयाष्टक, दूतवाक्य, किरात, निरनिनासिकचम्पू, दक्षयाग एवं व्याघ्रालयेशाष्टमी महोत्सवचम्पू। इनमें मत्स्यावतारप्रबन्ध, राजसूयप्रबन्ध, स्वाहासुधाकरचम्पू एवं कोटिविरह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके पिता का नाम मातृदत्त था जो प्रसिद्ध मीमांसाशास्त्री थे। इन्होंने 'नारायणीय' नामक एक काव्य की भी रचना की है । इन ग्रन्थों के अतिरिक्त प्रक्रिया सर्वस्व (व्याकरण ) तथा मानमेयोदय ( मीमांसा ) भी इनकी रचनाएं हैं । 'मत्स्यावतार' में कुल ६७ पद्य एवं १२ गद्य के खण्ड हैं। इसमें पुराणों में वर्णित मनु एवं मत्स्यावतार की कहानी है। 'राजसूयप्रबन्ध' में युधिष्ठिर के राजसूय का वर्णन है । 'स्वाहास्वधाचम्पू' में कवि ने अग्नि की पत्नी स्वाहा तथा चन्द्रमा के प्रणय का वर्णन किया है। 'कोटिविरह' में विरह और मिलन की काल्पनिक कहानी है। 'नृगमोक्ष' में श्रीमद्भागवत के दशमस्कन्ध में वर्णित कथा के आधार पर राजा नृग की कहानी का वर्णन है। ___आधारग्रन्थ-१. चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी २. केरली साहित्य-दर्शन-रत्नमयी दीक्षित।
निघण्टु-यह वैदिक मन्दों का समुच्चय है जिसमें वेद के कठिन शब्दों का चयन है। 'निघण्टु' की शब्द-संख्या एवं रचना के सम्बन्ध में विद्वानों में मत-वैभिन्न्य है। जिस 'निघण्टु' पर यास्क की टीका है, उसमें पांच अध्याय हैं। प्रथम तीन अध्याय