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पञ्चतन्त्र ]
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[पञ्चतन्त्र
ख-'पंचतन्त्र' का दूसरा रूप गुणाढ्यकृत 'बृहत्कथा' में दिखाई पड़ता है। 'बृहत्कथा' की रचना पैशाची भाषा में हुई थी, किन्तु इसका मूलरूप नष्ट हो गया है और क्षेमेन्द्ररचित 'बृहत्कथामंजरी' तथा सोमदेव लिखित 'कथासरित्सागर' उसी के अनुवाद हैं। ___ग-तृतीय संस्करण में तन्त्रात्यायिका एवं उससे सम्बद्ध जैन कथाओं का संग्रह है। आधुनिक युग का प्रचलित 'पंचतन्त्र' इसका रूप है।
घ-चतुर्थ संस्करण दक्षिणी 'पंचतन्त्र' का मूलरूप है तथा इसका प्रतिनिधित्व नेपाली 'पंचतन्त्र' एवं 'हितोपदेश' करते हैं। इस प्रकार 'पंचतन्त्र' एक ग्रन्थ न होकर 'एक विपुल साहित्य का प्रतिनिधि' है । रचना-काल अनिश्चित है किन्तु इसका प्राचीन रूप डॉ० हर्टेल के अनुसार, दूसरी शताब्दी है। इसका प्रथम पहलवी अनुवाद छठी शताब्दी में हुआ था। हर्टेल ने पचास भाषाओं में इसके दो सौ अनुवादों का उल्लेख किया है । 'पंचतन्त्र' का सर्वप्रथम परिष्कार एवं परिहण प्रसिद्ध जैन विद्वान् पूर्णभद्रसूरि ने संवत् १२५५ में किया है और आजकल का उपलब्ध संस्करण इसी पर आधृत है। पूर्णभद्र के निम्नोक्त कथन से पंचतन्त्र के पूर्ण परिष्कार की पुष्टि होती है।
प्रत्यक्षरं प्रतिपदं प्रतिवाक्यं प्रतिकथं प्रतिश्लोकम् ।
श्रीपूर्णभद्रसूरिविंशोधयामास शास्त्रमिदम् ॥ 'पंचतन्त्र' में पांच तन्त्र या विभाग हैं-मित्रभेद, मित्रलाभ, सन्धि-विग्रह, लब्धप्रणाश एवं अपरीक्षित-कारक । इसके प्रत्येक अंश में एक मुख्य कथा होती है और उसको पुष्ट करने के लिए अनेक गौण कथाएं गुंफित होती हैं । प्रथम तन्त्र की अंगी कथा के पूर्व दक्षिण में महिलारोप्य के राजा अमरशक्ति की कथा दी गयी है। उन्हें इस बात का दुःख है कि उनके पुत्र मन्दबुद्धि हैं और वे किसी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने में अस. मर्थ हैं । वे विष्णुशर्मा नामक महापण्डित को अपने पुत्रों को सौंप देते हैं और वे उन्हें छह मास के भीतर आख्यायिकाओं के माध्यम से शिक्षित करने का कठिन कार्य सम्पन्न करने में सफल होते हैं। तत्पश्चात् मित्रभेद नामक भाग की अंगी कथा में. एक दुष्ट सियार द्वारा पिंगलक नामक सिंह के साथ संजीवक नामक बैल की शत्रुता उत्पन्न कराने का वर्णन है जिसे सिंह ने आपत्ति से बचाया था और अपने दो मन्त्रियों-करकट
और दमनक-के विरोध करने पर भी उसे अपना मित्र बना लिया था। द्वितीय तन्त्र का नाम मित्र-सम्प्राप्ति है। इसमें कपोतराज चित्रग्रीव की कथा है। तृतीय तन्त्र में युद्ध
और सन्धि का वर्णन किया गया है। इसमें उलूकों की गुहा को कौओं द्वारा जला देने की कथा कही गयी है । चतुर्थ तन्त्र में लब्धप्रणाश का उदाहरण एक बन्दर तथा ग्राह की कथा द्वारा प्राप्त होता है। पंचम तन्त्र में बिना विचारे काम करने वालों को सावधान करने की कथा कही गयी है।
"पंचतन्त्र' की कथा के माध्यम से लेखक ने अनेक सिदान्त-रूप वचन कहे हैं जिनमें नैतिक, धार्मिक, दार्शनिक तथा राजनीतिक जीवन के सामान्य नियम अनुस्यूत हैं। इसकी भाषा सरल, ललित एवं चुभनेवाली है । वाक्य छोटे तथा प्रभावशाली अधिक है।