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मनोदूत ]
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[मन्दार-मरन्द चम्पू
शक्ति का प्रभाव दर्शाया गया है। तसभा में कौरवों द्वारा घिरी हुई असहाय द्रौपदी का चित्र देखें-अथासौ दुःखार्ता द्रुपदतनया वीक्ष्य दयितान् परित्रातुं योग्यानपि समयबद्धान् विधिवशात् । सभायामानीता शरणरहिता जालपतिता कुरङ्गीव त्रासाद् भृशतरमसी कम्पमभजत् ॥ १३२ ॥
आधारग्रंथ-संस्कृत के सन्देश-काव्य--डॉ० रामकुमार आचार्य।
मनोदूत-इस सन्देशकाव्य के रचयिता कधि विष्णुदास हैं। इनका समय विक्रम संवत् षोडश शतक का पूर्वाध है। ये महाप्रभु चैतन्य के मातुल कहे जाते हैं। 'मनोदूत' शान्तरसपरक सन्देशकाव्य है जिसमें कवि ने अपने मन को दूत बनाकर भगवान् के चरणकमलों में अपना सन्देश भेजा है। वह अपने मन को यमुना, वृन्दावन एव गोकुल में जाने को कहता है। सन्देश के क्रम में यमुना एवं वृन्दावन की प्राकृतिक छटा का मनोरम वर्णन है। इस काव्य की रचना मेघदूत के अनुकरण पर हुई है। इसमें कुल १०१ श्लोक हैं। भाव, विषय एवं भाषा की दृष्टि से यह काम्य उत्कृष्ट कृति के रूप में समाप्त है। भगवान् के कोटि-कोटि नामों को जपने की प्रबल आकांक्षा कवि के शब्दों में देखिए-ईहामहे न हि महेन्द्रपदं मुकुन्द स्वीकुर्महे चरणदैन्यमुपागतं वा। आशां पुनस्तव पदाज कृताधिवासाम् आशास्महे चिरमियं न कृशा यथा स्यात् ।। ८२॥
आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश-काव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य ।
मन्दार-मरन्द चम्पू-इस चम्पू काव्य के प्रणेता श्रीकृष्ण कवि हैं । से सोलहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण एवं सत्रहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में थे। ग्रन्थ के उपसंहार में कवि ने अपना जो परिचय दिया है उसके अनुसार इनका जन्म गुहपुर नामक ग्राम में हुआ था और इनके गुरु का नाम वासुदेव योगीश्वर था। इस इस चम्पू की रचना लक्षण ग्रन्थ के रूप हुई है जिसमें दो सौ छन्दों के सोदाहरण लक्षण तथा नायक, श्लेष, यमक, चित्र, नाटक, भाव, रस एक सौ सोलह अलङ्कार, सत्तासी दोष-गुण तथा शब्दशक्ति पदार्थ एवं पाक का निरूपण है। इसका वयंविषय ग्यारह विन्दुओं में विभक्त है । भूमिका भाग में कवि ने प्रबन्धत्व की सुरक्षा के लिए एक काल्पनिक गन्धर्व-दम्पती का वर्णन किया है और कहीं-कहीं राधा-कृष्ण का भी उल्लेख किया है। ये सभी वर्णन छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किये गए हैं। कवि के शब्दों में उसकी रचना का विभाजन एवं उद्देश्य इस प्रकार हैचम्पूप्रबन्धे मन्दारमरन्दास्ये कृतौ मम । वृत्तसारश्लिष्टचित्रबन्धगुप्ताः पनत्तंनाः ॥ १७ शुबरम्यव्यंग्यशेषा इत्येकादश बिन्दवः । तत्रादिमे वृत्तविन्दी वृत्तलक्षणमुच्यते ॥ ११८ प्राचीनानां नवीनानां मतान्यालोच्य शक्तितः । रचितं बालबोधाय तोषाय विदुषामपि ॥ पृ० १९६ । इसका प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस, बम्बई (काव्यमाला ५२ ) से १९२४ ई० में हुआ है। ___ आधारग्रन्थ-चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाष त्रिपाठी।