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बापूदेव शास्त्री]
( ३०४)
[बालरामायण
सी० सी० मद्रास १२३१९ में प्राप्त होता है। मंगलाचरण का श्लोक इस प्रकार हैश्रीलक्ष्मीकान्तनाभीकमलमधुझरीलोललोलम्बमाला झंकारस्सम्पदोघं दिशतु विधिचतुर्मुख्युदीर्णागमानाम् । तादात्म्यं त्यापयन् यम्स्वरनिकरमयः पादपमानतानामिन्द्रेशानादिदेवप्रवरपरिषदां कामितार्थामरदुः ॥ १
आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी।
बापूदेव शास्त्री ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। ये पूना के निवासी थे । इनका जन्म १८२१ ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम सीताराम था। इन्होंने तीन ग्रन्थों की रचना की है-'त्रिकोणमिति', 'बीजगणित' एवं 'अव्यक्तगणित' । भारतीय ज्योतिष एवं पाश्चात्य गणित पर इनका समान अधिकार था और ये दोनों के ही मर्मज्ञ माने जाते थे । ये गवर्नमेण्ट संस्कृत कॉलिज में अध्यापक थे । इनका निधन १८९० ई०
में हुआ।
आधारग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री।
बालचरित-म्ह महाकवि भास द्वारा रचित नाटक है। इसमें पांच अंक हैं तथा 'हरिवंशपुराण' के आधार पर श्रीकृष्ण के बालचरित का वर्णन है। कृष्ण-जन्म से लेकर कंस-वध तक की घटना दी गयी है । प्रथम अंक में कृष्ण-जन्म का वर्णन एवं वासुदेव द्वारा उन्हें गोकुल ( नन्द के यहाँ) पहुंचाने का उल्लेख है । प्रारम्भ में नारदजी रंगमंच पर आकर श्रीकृष्ण का दर्शन करते हैं। द्वितीय अंक में कंस द्वारा यशोदा की कन्या को पत्थर पर पटकने तथा तृतीय में पूतना, केशी, शकट तथा धेनुक आदि दानवों के वध का वर्णन है । चतुर्थ अंक में कृष्ण द्वारा कालियनाग को यमुना से भगाने तथा पंचम में कृष्ण-बलराम दोनों भाइयों द्वारा चाणूर, मुष्टिक से मल्लयुद्ध होने एवं दोनों भाइयों द्वारा उनके मारने का वर्णन है। इसी अंक में कंस का वध वर्णित है। इस नाटक में वीररस की प्रधानता है और अरिष्ट, चाणूर एवं कंस का रंगमंच पर ही वध दिखलाया गया है। यह विषय नाट्यशास्त्रीय व्यवस्था के अनुसार निषिद्ध है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण के जन्म के समय कई अलौकिक घटनाओं का वर्णन किया है।
बालरामायण-यह राजशेखर कृत दस अंकों का महानाटक है। इस नाटक की रचना कवि ने निभयराज के लिए की थी। रामकथा के आधार पर इसकी रचना हुई है तथा सीता-स्वयंवर से लेकर राम के अयोध्या प्रत्यागमन तक की कथा का वर्णन है । प्रथम अंक का नाम 'प्रतिज्ञापौलस्त्य' है। इस अंक में रावण का सीतास्वयंवर में जनकपुर जाने तथा सीता के साथ विवाह करने की प्रतिज्ञा का वर्णन है। वह महाराज जनक से सीता को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करता है किन्तु जनक द्वारा इस प्रस्ताव के अस्वीकृत हो जाने के पश्चात् क्रोधाभिभूत होकर चला जाता है। द्वितीय अंक को 'रामरावणीय' कहा गया है। इसमें रावण द्वारा अपने सेवक मायामय को परशुराम के पास भेजने का वर्णन है। रावण का प्रस्ताव सुनते ही परशुराम क्रोध स आगबबूला होकर उस पर बरस पड़ते हैं और उससे युद्ध करने को उतारू हो जाते हैं;