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न्याय-प्रमाण-मीमांसा]
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[न्याय-प्रमाण-मीमांसा
कहते हैं । वे हैं-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन । पहला वाक्य प्रतिज्ञा कहलाता है। यह सिद्ध की जाने वाली वस्तु का निर्देश करता है। दूसरा वाक्य है हेतु। इसमें अनुमान को सिद्ध करने वाले हेतु का निर्देश होता है। तीसरे वाक्य को उदाहरण कहते हैं, "जिसमें उदाहरण के साथ हेतु और साध्य के नियत साहचर्य नियम का उल्लेख किया जाता है।" चौथे वाक्य उपनय से व्याप्ति विशिष्ट पद का ज्ञान होता है। अनुमान के द्वारा प्रतिज्ञा की सिद्धि का होना 'निगमन' है। यह पंचम वाक्य होता है । उदाहरण
अ—यह पर्वत अग्निमान् है ( प्रतिज्ञा ) ब-क्योंकि यह धूमयुक्त है ( हेतु) स-जो-जो धूमयुक्त होता है वह वह्रियुक्त भी होता है ( उदाहरण ) द-यह पर्वत भी उसी प्रकार धूमयुक्त है ( उपनय ) इ--अतः यह पर्वत अग्निमान् है ( निगमन)
हिन्दी तकभाषा पृ० ८० से उद्धृत आ० विश्वेशर कृत व्याख्या । अनुमान का अन्य प्रकार से भी विभाजन किया गया है-केवलान्वयी, केवलव्यतिरेकी तथा अन्वयव्यति रेकी । यह वर्गीकरण नव्यन्याय के अनुसार है। केवलान्वयी अनुमान में साधन तथा साध्य में नियम साहचर्य होता है। इसकी व्याप्ति केवल अन्वय के ही द्वारा स्थापित होती है तथा यहाँ व्यतिरेक (निषेध) का नितान्त अभाव होता है। केवलव्यतिरेकीजब हेतु साध्य के साथ केवल निषेधात्मक रूप से सम्बद्ध रहे तो केवलव्यतिरेकी अनुमान होगा। ___ अन्वयव्यतिरेकी-इसमें हेतु और साध्य का सम्बन्ध दोनों ही प्रकार से अन्वय और व्यतिरेक के द्वारा स्थापित होता है ।
ख. हेत्वाभास-जब हेतु वास्तविक न होकर उसके आभास से युक्त हो तो हेत्वाभास होता है। इसमें हेतु सच्चा नहीं होता । अर्थात् हेतु के न होने पर भी हेतु जैसा प्रतीत होता है । हेत्वाभास अनुमान का दोष है। इसके पांच प्रकार हैं-सव्यभिचार, विरुद्ध, सत्प्रतिपक्ष, असिद्ध तथा बाधित । जब हेतु और साध्य का सम्बन्ध एकान्ततः ठीक न हो तो सव्यभिचार होता है । विरुद्ध हेतु उस अनुमान में दिखाई पड़ता है जब वह साध्य से विरुद्ध वस्तु को ही सिद्ध करने में समर्थ हो। यह अनुमान की भ्रान्ति है।
सत्प्रतिपल-जब एक अनुमान का कोई अन्य प्रतिपक्षी अनुमान संभव हो तो यह दोष होता है। अर्थात् किसी हेतु के द्वारा निश्चित किये गए साध्य का अन्य हेतु के द्वारा उसके विपरीत तथ्य का अनुमान करना। असिद्ध-इसे साध्यसम भी कहते है। जो हेतु साध्य की तरह स्वयं असिद्ध हो उसे साध्यसम या असिद्ध कहते हैं। स्वयं असिद्ध होने के कारण यह निगमन की सत्यता को निश्चित नहीं कर पाता । बाधित अनुमान के हेतु का किसी अन्य प्रमाण से बाधित हो जाना है और इसो दोष को बाधित हेत्वाभास कहते हैं।