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पारिजातहरण]
[पारिजातहरण पम्पू
है। शास्त्रदीपिका-यह ग्रन्थ मीमांसा-दर्शन की स्वतन्त्र रचना है। यह पार्थसारथि मिश्र की सर्वाधिक प्रौढ़ कृति है जिसके कारण इन्हें 'मीमांसा केसरी' की उपाधि प्राप्त हुई थी। इसमें बौद, न्याय, जैन, वैशेषिक, अद्वैत वेदान्त तथा प्रभाकरमत [ मीमांसक दर्शन का एक सिद्धान्त दे० मीमांसा-दर्शन ] का विद्वत्तापूर्ण खण्डन कर आत्मवाद, मोक्षवाद, सृष्टि तथा ईश्वर प्रभृति विषयों का विवेचन है । इस पर १४ टीकाएं उपलब्ध होती हैं। सोमनाथ तथा अप्पयदीक्षित की 'मयूखमालिका' एवं 'मयूखावलि' नामक टीकाएं प्रसिद्ध हैं।
आधारग्रन्थ-१. भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । २. मीमांसा-दर्शनपं० मंडन मिश्र।
पारिजातहरण-मह सोलहवीं शताब्दी के महाकवि कर्णपूर द्वारा रचित महा. काव्य है। इसकी रचना. 'हरिवंशपुराण' की कथा 'पारिजातहरण' के आधार पर हुई है। कथा इस प्रकार है-एकबार नारद ने पारिजातपुष्प कृष्ण को उपहार के रूप में दिया जिसे श्रीकृष्ण ने आदरपूर्वक रुक्मिणी को समर्पित किया। इस पर सत्यभामा को रोष हुआ और श्रीकृष्ण ने उन्हें पारिजात-वृक्ष देने का वचन दिया। उन्होंने इन्द्र के पास यह समाचार भेजा पर वे पारिजात देने को तैयार न हुए। इस पर श्रीकृष्ण ने प्रद्युम्न, सात्यकि एवं सत्यभामा के साथ गरुड़ पर चढ़कर इन्द्र पर चढ़ाई कर दी और उन्हें पराजित कर पारिजात-वृक्ष ले लिया। इसकी भाषा सरल एवं लोकप्रिय है। इसमें सारे भारत का वर्णन कर कवि ने सांस्कृतिक एकता का परिचय दिया है । यो विभर्ति भुवनानि नितान्तं शेषतामुपगतो गुरुसारः। तं रसातलनिवासिनमीशं सादरं नतहशः प्रणमामः । १५४९ । [इसका प्रकाशन मिथिला सस्कृत विद्यापीठ, दरभंगा से१९५६ ई० में हुआ है।
पारिजातहरण चम्पू-इस चम्पू-काव्य के प्रणेता का नाम शेषकृष्ण है जो सोलहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हुए थे। इसमें श्रीकृष्ण द्वारा पारिजात-हरण की कथा का वर्णन है जो 'हरिवंशपुराण' की तद्विषयक कथा पर आश्रित है। शेषकृष्ण नरसिंह सूरि के पुत्र थे। कवि ने इस पुस्तक का प्रणयन महाराजाधिराज नरोत्तम का आदेश प्राप्त कर किया था। इस चम्पू-काव्य में ५ स्तबक हैं और प्रधान रस श्रृंगार है तथा अन्तिम स्तबक में युद्ध का वर्णन है। नारद मुनि श्रीकृष्ण के पास आकर उन्हें पारिजात का पुष्प देते हैं जिसे श्रीकृष्ण रुक्मिणी को भेंट करते हैं। इस घटना से सत्यभामा को ईर्ष्या होती है और वे श्रीकृष्ण से मान करती हैं। श्रीकृष्ण नारद द्वारा इन्द्र के पास पारिजात-पुष्प प्रदान करने का सन्देश देते हैं, पर इन्द्र इसे अस्वीकार कर देते हैं। अन्ततः यादवों द्वारा पारिजात-पुष्प का अपहरण किया जाता है और सत्यभामा प्रसन्न हो जाती हैं। यही इस चम्पू की कथा है। इसमें कवि ने मान एवं विरह का बड़ा ही आकर्षक वर्णन किया है। सत्यभामा के सौकुमार्य का अतिशयोक्तिपूर्ण चित्र अंकित किया गया है। किं खिद्यसे मलयजैमलयानिला किं वा मृणालवलयैनंलिनीदला। संशी. लितापि मनु शीतलसंविधान हा हन्त हन्त हृदयं मम दन्दहीषि ॥ १६० । इसका प्रकाशन