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प्रतिज्ञायोगन्धरायण ]
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[ प्रतिज्ञायौगन्धरायण
भी प्रयुक्त हुए हैं। बौधायनधमंसूत्र' में प्रजापति के उद्धरण प्राप्त होते हैं । 'मिताक्षरा' एवं अपराकं ने भी प्रजापति के श्लोक उदधृत किये हैं । 'मिताक्षरा' के एक उद्धरण में परिव्राजकों के चार भेद वर्णित हैं- कुटीचक्र बहूदक, हंस तथा परमहंस । प्रजापति ने कृत तथा अकृत के रूप में दो प्रकार के गवाहों का वर्णन किया है ।
आधारग्रन्थ - धर्मशास्त्र का इतिहास- डॉ० पी० वी० काणे भाग १ ( हिन्दी अनुवाद ) |
प्रतिशायौगन्धरायण -- यह महाकवि भास विरचित नाटक है । इसमें कौशाम्बीनरेश वत्सराज उदयन द्वारा उज्जयिनी के राजा प्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता के हरण का वर्णन है । प्रथम अंक में मन्त्री यौगन्धरायण सालक के साथ रंगमंच पर दिखाया गया है । वार्त्तालाप के क्रम में ज्ञात होता है कि महाराज उदयन कल प्रातःकाल वेणुवन के निदटस्थ नागवन में जाएंगे। उदयन हाथी का शिकार करने के लिए महासेन के राज्य में जाते हैं तथा कृत्रिम हाथी के द्वारा पकड़ लिये जाते हैं। जब यह समाचार उदयन के मन्त्री यौगन्धरायण को मिलता है तो वह प्रतिज्ञा करता है कि 'यदि राहुग्रस्त चन्द्रमा की भाँति शत्रुओं द्वारा पकड़े गए स्वामी उदयन को मैं मुक्त न कर दूँ तो मेरा नाम यौगन्धरायण नहीं।' इसी बीच महर्षि व्यास वहीं आकर राजकुल अभ्युदय का आशीर्वाद देकर और अपना वस्त्र छोड़कर चले जाते हैं। योगन्धरायण उसी वस्त्र को पहन कर अपना वेश बदल लेता है ।
। उसी समय
द्वितीय अंक में प्रद्योत पुत्री वासवदत्ता के विवाह की चर्चा होती है कंचुकी आकर राजा से कहता है कि उदयन बन्दी बना लिये गए हैं। राजा ने उसे राजकुमार के सदृश उदयन का सत्कार कर उनके पास ले जाने को कहा। रानी ने वासवदत्ता के लिए योग्यवर उदयन को ही बतलाया ।
तृतीय अंक में महासेन प्रद्योत की राजधानी में वत्सराज का विदूषक तथा उनके चर एवं अमात्य देश परिवर्तित कर दिखाई पड़ते हैं । चतुर्थ अंक में वत्सराज के चर अपना वेश परिवर्तित कर घूमते हुए प्रद्योत की राजधानी में रहते हैं। उन्हें मालूम होता है कि बन्दीगृह में वत्सराज वासवदत्ता को वीणा सिखा रहे थे और वहीं दोनों एक दूसरे पर अनुरक्त हो गए और उदयन वासवदत्ता को भगा कर राजधानी चले गए। वत्सराज के चले जाने पर उनके सभी गुप्तचर पकड़ लिये गए और मन्त्री योगन्धरायण कारागृह में डाल दिया गया। वहां उसे प्रद्योत के मन्त्री भरतरोहक से भेंट हो गयी। उसने वत्सराज के कार्यों की निन्दा की पर यौन्धरायण ने उसके सारे आक्षेपों का उत्तर दे दिया। रोहक उसे स्वर्णपात्र पुरस्कार में देने लगा पर उसने उसे नहीं लिया । पर जब उसे पता चला कि वत्सराज के भाग जाने पर उसका अनुमोदन करते हुए प्रद्योत चित्रफलक के द्वारा दोनों का विवाह कर दिया तो उसने श्रृंगार नामक स्वर्णपात्र ग्रहण कर लिया तदनन्तर भरतवाक्य के पश्चात् नाटक समाप्त हो जाता है ।
यह नाटक उदयन के अमात्य योगन्धरायण की प्रअिज्ञा पर आधृत है, अतः इसका नामकरण ( प्रतिज्ञायोगन्धरायण ) उपयुक्त है । इसमें भास की नाट्यकला की पूर्ण प्रीढ़ि दिखलाई पड़ती है । कथासंगठन, चरित्रांकन, संवाद तथा प्रभान्विति सभी दृष्टियों से यह