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वेंकटनाथ कृत हंससन्देश]
( ५३९ )
[वेंकटाध्वरि
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का प्रकाशन, १८५९ । ५. हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, १८८२ । ६. इंदिस्केन स्तदियन, १८५०-१८८५।।
वेंकटनाथ कृत हंससन्देश-वेंकटनाथ का समय १४ वीं शताब्दी है। ये रामानुज सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध आचार्य हैं। इनका जन्म तुप्पिल नामक ग्राम में कांजीवरम् के निकट हुआ था। इनके पिता का नाम अनन्तसूरि एवं माता का नाम तोतरम्मा था। ये वेदान्त के महान् व्याख्याता माने जाते हैं। इन्होंने 'हंससन्देश', 'यदुवंश', 'मारसंभव' एवं 'यादवाभ्युदय' (२१ सर्ग का महाकाव्य ) नामक काव्यों की रचना की है। इनका 'संकल्पसूर्योदय' नामक एक महानाटक भी है। इनकी अन्य रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं---हयग्रीवस्तोत्र, यथोक्तकारिस्तोत्र, दशावतारस्तोत्र, न्यासतिलक, गोदास्तुति, यतिराजसप्तति, देवराजपंचाशत्, अष्टभुजाष्टक, अभीतिस्तव, श्रीस्तुति, सुदर्शनशतक, धात्रीपंचक, गोपालविंशति, परमार्थस्तुति, न्यासदशक, भूस्तुति, षोडशायुधस्तुति, वैराग्यपंचक, देहली-स्तुति, भगवद्ध्यानसोपान, न्यासविंशति, नीलास्तुति एवं गरुडपंचक । वेंकटनाथ का दूसरा नाम वेदान्तदेशिक भी है। इनके 'हंससन्देश' का आधार रामायण की कथा है। इसमें हनुमान द्वारा सीता की खोज करने के बाद रावण पर आक्रमण करने के पूर्व राम का राजहंस के द्वारा सीता के पास सन्देश भेजने का वर्णन है। यह काव्य दो आश्वासों में विभक्त है और दोनों में ( ६० + ५१ ) १११ श्लोक हैं। इसमें कवि ने संक्षेप में रामायण की कथा प्रस्तुत की है और सर्वत्र मन्दाक्रान्ता छन्द का प्रयोग किया है। रावण के यहाँ बन्दिनी सीता का चित्र देखिए-शुद्धामिन्दोश्वपचभवने कौमुदी विस्फुरन्तीं आनीता वा विषतरुवने पारिजातस्य शाखाम् । सूक्ति रम्यां खलपरिसरे सत्कवेः कोय॑मानां मन्ये दीनां निशिचर-गृहे मैथिलस्थात्मजाताम् ।। २।१३ ॥
आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश-काव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य ।
वेंकटाध्वरि-इन्होंने संस्कृत के तीन प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय चम्पू काव्यों की रचना की है। वे हैं-'विश्वगुणादर्श चम्पू' (निर्णय सागर प्रेस, बम्बई से १९२३ ई० प्रकाशित ), 'वरदाभ्युदय' या 'हस्तिगिरि चम्पू' ( संस्कृत सीरीज मैसूर से १९०८ ई० में प्रकाशित ) तथा 'उत्तररामचरितचम्पू' ( गोपाल नारायण एण्ड कं० बम्बई से प्रकाशित )। इनके पिता का नाम रघुनाथ दीक्षित था। वेंकटाध्वरि अप्पय गुरु नामक व्यक्ति के नाती थे। ये रामानुज के मतानुयायी तथा लक्ष्मी के भक्त थे । इनका रचनाकाल १६३७ ई. के आसपास है। इनका निवासस्थान कांचीपुर के निकट अर्शनफल (असनपल्ली) नामक ग्राम था। 'विश्वगुणादशं चम्पू' में २५४ खण्ड तथा ५९७ श्लोक हैं। इसमें कवि ने विश्वदर्शन के लिए उत्सुक कृशानु तथा विश्वावसु नामक दो काल्पनिक गन्धवों का वर्णन किया है। सारा चम्पू कथोपकथन की शैली में निर्मित है। 'वरदाभ्युदय' में लक्ष्मी एवं नारायण के विवाह का वर्णन है जो पांच विलासों में विभक्त है। इस ग्रन्थ के अन्त में कवि ने अपना परिचय देते हुए अपनी माता का नाम सीताम्बा दिया है । 'उत्तररामचरितचम्पू' में