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वेंकटेश चम्पू]
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(वैदिक देवता
रामायण के उत्तरकाण्ड की कथा का वर्णन है। इसमें उक्तिवैचित्र्य एवं शब्दालंकारों की छटा दर्शनीय है। इन्होंने 'लक्ष्मीसहस्रम्' नामक काव्य की भी रचना की थी। 'उत्तररामचरितचम्पू' कवि की प्रौढ़ रचना है जिसमें वर्णन-सौन्दर्य की आभा देखने योग्य है । चकितहरिणशाबचंचलाक्षी मधुररणन्मणिमेखलाकलापम् । चलवलयमुरोजलोलहारं प्रसभमुमा परिषस्वजे पुरारिम् ।। ७८ ।
__ आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डों छविनाथ त्रिपाठी।
वेकटेश चम्पू-इस चम्पू काव्य के प्रणेता धर्मराज कवि थे। इनका निवासस्थान तंजोर था। ये सत्रहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में विद्यमान थे। इसमें तिरुपति के अधिष्टातृ देवता वेंकटेश जी की कथा वर्णित है। प्रारम्भ में कवि ने मंगलाचरण, सज्जनशंसन एवं खलनिन्दा का वर्णन किया है। इसके गद्य भाग पर 'कादम्बरी' एवं 'दशकुमारचरित' की भांति सौन्दयं दिखाई पड़ता है तथा स्थान-स्थान पर तीखे व्यंग्य से पूर्ण सूक्तियों का निबन्धन किया गया है। यह चम्पू अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण तंजोर कैटलाग संख्या ४१५८ में प्राप्त होता है। दोषाकरो भवतु वेंकटनाथचम्पूः सन्तस्तथापि शिरसा परिपालयन्तु । दोपाकरस्तु लभते निजमूनि शम्भोः सर्वज्ञता न किमसी सकलोपवन्द्या ।
आधारगन्थ-चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
वैद्यजीवन-आयुर्वेदशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ । इस ग्रन्थ के रचयिता कवि लोलिम्बराज हैं। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी है । लेखक के पिता का नाम दिवाकर भट्ट था। लोलिम्बराज ने 'वैद्यावतंस' नामक अन्य ग्रन्थ की भी रचना की है । इस ग्रन्थ की रचना सरस एवं मनोहर ललित शैली में हुई है और रोग एवं औषधि का वर्णन लेखक ने अपनी प्रिया को सम्बोधित कर किया है। इसमें शृङ्गार रस की प्रधानता है। इसके सम्बन्ध में लेखक ने स्वयं लिखा है-गदभजनाय चतुरैश्चरकायेमुनिभिर्नृणांवरुणया यत्कथितम् । अखिलं लिखामि खलु तस्य स्वकपोलकल्पितभिदास्ति न किञ्चित् ॥
काव्यरचना-चातुरी का एक पत्र देखिए-भिदन्ति के कुजरकर्णपालि किमव्ययं व्यक्तिरते नवोढा। सम्बोधनं किं नूः रक्तपित्तं निहन्ति वामोरु वदत्वमेव ॥ वैद्यजीवन का हिन्दी अनुवाद ( अभिनव सुधा-हिन्दी टीका ) श्रीकालिकाचरण शास्त्री ने किया है।
आधारग्रन्थ-आयुर्वेद का बृहत् इतिहास-श्री अत्रिदेव विद्यालंकार ।
वैदिक देवता-वैदिक देवताओं के तीन वर्ग किये गए हैं-गुस्थान, अन्तरिक्षस्थान एवं पृथिवीस्थान के देवता। धुस्थान के अन्तर्गत वरुण, पूषन्, सूर्य, विष्णु, अश्विन एवं उषा हैं तथा अन्तरिक्षस्थान में इन्द्र, रुद्र एवं मरुत का नाम आता है। पृथिवीस्थान के देव हैं-अमि, बृहस्पति तथा सोम । वैदिक देवता प्रायः प्राकृतिक वस्तुओं के रूप मात्र हैं; जैसे सूर्य, उषस् , अनि तथा मरुत् । इस युग के अधिकांश