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दण्डी ]
( २१२ )
[ दशकुमारचरित
बड़ा ही रंमणीय चित्र चित्रित किया है। अभिव्यंजना शैली के निर्वाह में संतुलन उपस्थित कर दण्डी ने संस्कृत गद्यकाव्य में नवीन पद्धति प्रारम्भ की है । शाब्दीक्रीड़ा अथवा आर्थीक्रीड़ा की ओर कभी-कभी उनका ध्यान अवश्य जाता है पर इससे अर्थप्रतीति में किसी प्रकार का व्यवधान उपस्थित नहीं होता । चरित्र-चित्रण की विशिष्टता दण्डी की निजी विशेषता है । उन्होंने अपनी कृति में हास्य एवं व्यंग्य का पुट देकर उसे और भी अधिक आकर्षक बनाया है । सम्पूर्ण ग्रंथ में दण्डी ने राजकुमारों के विचित्र अनुभव का बड़ा ही हास्यात्मक वर्णन प्रस्तुत किया है। कुल मिलाकर दण्डी विषय चयन अभिव्यंजना तथा शैलीगत अति के दोष से रहित हैं । संयम तथा अनुपात का उन्होंने सर्वत्र ध्यान रखा है और असंयत समासान्त पदावली, निरर्थक वाक्याडंबर, जटिल इलेषयोजना तथा दूरारूढ़ कल्पना से अपने को मुक्त रखा है । पर दण्डी की शैली को अनलंकृत भी नहीं कहा जा सकता। इतना अवश्य है कि उन्होंने संक्षिप्त, सूक्ष्म तथा संयमपूर्ण वर्णन शैली के द्वारा अपनी रचना में प्रभावोत्पादकता को अक्षुण्ण रखा है । द्वितीय उच्छ्वास में राजकुमारी का सौन्दयं वर्णन देखिए
'रक्ततलांगुली यवमत्स्यकमलकलशाद्यनेकपुण्य लेखालान्छितो करो, समगुल्फसंघी मांसलावशिराली चांत्री, जंघे चानुपूर्ववृत्ते सकृद्विभक्तचतुरस्रः ककुन्दर विभागशोभी रथांगाका रसंस्थितश्च नितम्बभागः, तनुतरमीषनिम्नं गम्भीरं नाभिमण्डलम्, वलित्रयेण चालंकृतमुदरम्, उरोभागव्यापिना बुन्मग्नचूचुकी विशालरंभशोभिनी पयोधरी, धनधान्यपुत्रभूयस्त्वचिह्नलेखालान्छिततले स्निग्धोद प्रकोमलनखमणी ऋज्वनुपूर्ववृत्तताम्रांगुली संतांसदेशे सौकुमार्यवत्यौ निमग्नपर्वसंधी च बाहुतले "इन्द्रनील शिलाकार रम्यालकपंक्तिद्विगुणकुण्डलितम्लाननालीकनालललित लम्बश्रवणपाशयुगलमानन कमलम्, तिभंगुरो बहुल: पर्यन्तेऽप्यक पिलरुचिरायामवानेकैकनिसर्गसम स्निग्धनीलो गन्धग्राही च मूर्धजकलापः । षष्ठ उच्छ्वास पृ० २२१-२२३
अन
rust के सम्बन्ध में कई प्रशस्तियां प्राप्त होती हैं
जाते जगति वाल्मीकी शब्दः कविरिति स्थितः । व्यासे जाते कवी चेति कवयश्चेति दण्डिनि ॥ आचार्य दण्डिनो वाचामात्रान्तामृत संपदाम् । विकासो वेधसः पत्न्या विलासमणिदर्पणः ॥
आधार ग्रन्थ - १. संस्कृत साहित्य का इतिहास - कीथ ( हिन्दी अनुवाद ) २. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर - एस० के०डे० एवं दासगुप्त : संस्कृत कवि दर्शन - डॉ० भोला शंकर व्यास ४. दशकुमारचरित - ( हिन्दी अनुवाद चौखम्बा ) ।
दशकुमारचरित - यह महाकवि दण्डी विरचित प्रसिद्ध गद्यकाव्य है । [ दे० cost ] | इस ग्रन्थ का विभाजन दो पीठिकाओं - पूर्वपीठिका एवं उत्तरपीठिका – के रूप में किया गया है। दोनों पीठिकाएं उच्छ्वासों में विभक्त है का चरित वर्णित है किन्तु सम्प्रति यह ग्रन्थ जिस रूप में उपलब्ध है रचना न होकर उसका परिवर्तित रूप है । पुस्तक की पूर्वपीठिका
।
इसमें दस कुमारों
वह दण्डी की मूल
तथा उत्तरपीठिका