________________
(१२४ )
[भट्टनारायण
युक्त, नतु नीरसस्य" इति अपराजितिः । यदाह मज्जन पुष्पावचय-सन्ध्या-चन्द्रोदयादिवाक्यमिह । सरसमपि नाति बहुलं प्रकृतिरसान्वितं रचयेत् ।। यस्तुसरिदद्रिसागरपुरतुरगरपादिवर्णने यत्नः। कविशक्तिस्यातिफल: विततधियां नो मतः स इह ॥ यमकानुलोमतदितरचक्रादिभिदोऽतिरसविरोधिन्यः । अभिमानमात्रमेतद् गड्डरिकादि-प्रवाहो वा ।।
भाधारग्रन्थ-भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १, २-बा० बलदेव उपाध्याय ।
भट्टनारायण-कविवर भट्टनारायण 'वेणीसंहार' नामक नाटक के रचयिता है [३० वेणीसंहार ] । इनके जीवन का पूर्ण विवरण प्राप्त नहीं होता। इनकी एकमात्र रचना 'वेणीसंहार' उपलब्ध होती है। इनका दूसरा नाम ( या उपाधि ) मृगराजलक्ष्म था। एक अनुश्रुति के अनुसार बलराज आदिशूर द्वारा गौड़ देश में आर्यधर्म की प्रतिष्ठा. कराने के लिए बुलाये गये पांच ब्राह्मणों में भट्टनारायण भी थे। 'वेणीसंहार' के अध्ययन से पता चलता है कि ये वैष्णव सम्प्रदाय के कवि थे। 'वेणीसंहार' के भरतवाक्य से पता चलता है कि ये किसी सहृदय राजा के आश्रित रहे होंगे । स्टेन कोनो के कथनानुसार मादिशूर आदित्यसेन था जिसका समय ६७१ ई० है। रमेशचन्द्र मजूमदार भी माधवगुप्त के पुत्र आदित्यसेन का समय ६७५ ई० के लगभग मानते हैं जो शक्तिशाली होकर स्वतन्त्र हो गया था। आदिशूर के साथ सम्बद्ध होने के कारण भट्टनारायण का समय ७ वीं शती का उत्तराध माना जा सकता है। विलसन महोदय ने 'वणीसंहार' का रचनाकाल आठवीं या नवीं शताब्दी माना है। परम्परा में एक श्लोक मिलता है-वेदवाणानथाके तु नूपोऽभूच्चादिशूरकः । बसुकर्माङ्गके शाके गौडेविप्राः समागताः ॥ इसके अनुसार बादिशूर का समय ६५४ शकान्द या ७३२१० है। पर, विद्वानों ने छानबीन करने के पश्चात मादित्यसेन और आदिशूर को अभिन्न नहीं माना है। बङ्गाल में पालवंश के अभ्युदय के पूर्व ही आदिशूर हुए थे और पालवंश का अभ्युदय ७५०-६० ई. के आसपास हुमा पा। इससे पूर्व होने वाले आदिशूर ही भट्टनारायण के आश्रयदाता थे। वामन ने अपने 'काव्यालङ्कारसूत्र' में भट्टनारायण का उल्लेख किया है, अतः इनका समय महम शती का पूर्वा सिड होता है। सुभाषित संग्रहों में भट्टनारायण के नाम से अनेक पच प्राप्त होते हैं जो 'बेणीसंहार' में उपलब्ध नहीं होते। इससे मात होता है कि इनकी अन्य कृतियाँ भी होंगी। प्रो० गजेन्द्रगडकर के अनुसार 'दशकुमार. परित' की पूर्वपीठिका के रचयिता भट्टनारायण ही थे। 'जानकीहरण' मामक नाटक की एक पाप्मुलिपि की सूची इनके नाम से प्राप्त होती है। पर कतिपय विद्वान इस विचार के हैं कि ये ग्रन्थ किसी अन्य भट्टनारायण के रहे होंगे। प्रामाणिक आधारों के अभाव में भट्टनारायण को एकमात्र 'वेणीसंहार' का रचयिता माना जा सकता है। 'वणीसंहार' में महाभारत के युद्ध को वयंविषय बना कर उसे नाटक का रूप दिया गया है। इसमें कषि ने मुख्यतः द्रोपदी की प्रतिमा का वर्णन किया है जिसके अनुसार उसने दुर्योधन के शोणित से अपने केश बांधने का निश्चय किया था। बन्त में गदा युद्ध में भीमसेन दुर्योधन को मार कर उसके रक्त से रजित अपने हाथों द्वारा द्रौपदी