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विशाखदत्त]
(५०९)
[विशाखदत्त
पता चलता है कि विशाखदत्त सामन्त वटेश्वरदत्त के पौत्र थे और इनके पिता का नाम पृथु था । पृथु को महाराज की उपाधि प्राप्त थी और इनके पितामह सामन्त थे। अद्य सामन्तवटेश्वरदत्तपौत्रस्य महाराजपदभाक् "पृथुसूनोः कवेविशाखदत्तस्य कृतिः मुद्राराक्षसं नाम नाटकं नाटयितव्यम् ।" प्रस्तावना पृष्ठ ७[दे० मुद्राराक्षस] । इन व्यक्तियों का विवरण अन्यत्र प्राप्त नहीं होता अतः विशाखदत्त का जीवन विचित्र अनिश्चितता से युक्त है । इनके समय-निरूपण के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है। 'मुद्राराक्षस' के भरत वाक्य में चन्द्रगुप्त का उल्लेख है, पर कतिपय प्रतियों में चन्द्रगुप्त के स्थान पर दन्तिवर्मा, अवन्तिवर्मा एवं रतिवर्मा का नाम मिलता है। विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि संभवतः अवन्तिवर्मा मौखरी नरेश हों जिसके पुत्र ने हर्ष की पुत्री से विवाह किया था। इसे काश्मीर का भी राजा माना गया है, जिसका समय ८५५-८३ ई. तक है। याकोबी नाटक में उल्लिखित ग्रहण का समय ज्योतिष गणना के अनुसार २ दिसम्बर ८६० ई० मानते हैं तथा उनका यह भी विचार है कि राजा के मन्त्री शूर द्वारा इस नाटक का अभिनय कराया गया था। पर, इसके सम्बन्ध में कोई प्रमाण प्राप्त नहीं होता। डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल ( इण्डियन एन्टीक्वेरी ( १९१३ १. २६५-६७ LXIII ), स्टेन कोनो ( इण्डियन एन्टीक्वेरी १९१४ पृ० ६६ XLII ) तथा एस० श्रीकण्ठ शास्त्री ( इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी भाग ७, १९३१ पृ० १६३-६९) ने इसे चन्द्रगुप्त द्वितीय का समकालीन माना है। जिसका समय ३७५-४१३ ई० है। चापेन्टियर इसे अन्तिम गुप्तवंशियों में से समुद्रगुप्त का समकालीन मानते हैं, पर कीथ के अनुसार विशाखदत्त का समय नवीं शताब्दी है। कोनो चन्द्रगुप्त को गुप्तवंशी राजा समझते हैं और विशाखदत्त को कालिदास का कनिष्ठ समसामयिक मानते हैं। परन्तु यह उनकी हवाई कल्पना है। विशाखदत्त द्वारा रत्नाकर के अनुकरण का कुछ साक्ष्य अवश्य मिलता है. किन्तु यह उनके समय के विषय में कदाचित् निर्णायक नहीं है। इस तथ्य में कोई सार नहीं है कि हस्तलिखित प्रति में नांदी की समाप्ति के बाद नाटक का आरम्भ होता है, क्योंकि भास परम्परा का अनुसरण करने वाले दाक्षिणात्य हस्तलेखों की यह स्वाभाविक विशेषता मात्र है । ऐसी कोई बात नहीं है जो उन्हें नवीं शताब्दी का मानने में अड़चन डाले, यद्यपि यह कृति और पहले की हो सकती है ।" संस्कृत नाटक पृ० २१२ (हिन्दी) 'दशरूपक' एवं 'सरस्वतीकण्ठाभरण' में 'मुद्राराक्षस' के उदरण प्राप्त होने के कारण इसका स्थितिकाल नवम सती से पूर्व निश्चित होता है, क्योंकि दोनों ग्रन्थों का रचनाकाल दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी है । सम्प्रति विद्वानों का बहुसंख्यक समुदाय विशाखदत्त का समय छठी शती का उत्तरार्ध स्वीकार करने के पक्ष में है। 'मुद्राराक्षस' की रचना बौद्धयुग के ह्रास के पूर्व हो चुकी थी। प्रो. ध्रुव के अनुसार 'मुद्राराक्षस' की रचना विशाखदत्त ने छठी शताब्दी के अन्तिम चरण में एवं कन्नौज के मौखरी नरेश अवन्तिवर्मा की हूणों के ऊपर की गयी विजय के उपलक्ष्य में की थी। ___ 'मुद्राराक्षस राजनीतिक नाटक है पर इसमें कवि की कवित्व-शक्ति का अपूर्व विकास दिखाई पड़ता है। राजनीतिक दाव-पेंच को कथानक का आधार बनाने के