________________
महाभारत]
( ३६४ )
[महाभारत
हुई है और अन्त में एक गाथा भी है। इसमें आठ आयों-ध्वज, सिंह, मण्डल, वृष, खर, गज तथा वायस-के फलाफल तथा स्वरूप का वर्णन किया गया है। ग्रन्थ के अन्त में लेखक ने बताया है कि ज्योतिषशास्त्र के द्वारा भूत, भविष्य तथा वर्तमान का ज्ञान होता है और यह विद्या किसी अन्य को न दी जाय । अन्यस्य न दातव्यं मिथ्यादृष्टस्तु विशेषतोऽवधेयम् । शपथं च कारयित्वा जिनवरदेव्याः पुरः सम्यक् ।
आधारग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री।
महाभारत-यह भारतीय जीवन, विशेषतः हिन्दू जनता का, जातीय इतिहास है जिसकी रचना एक लाख श्लोकों में हुई है। इसके रचयिता हैं महर्षि वेदव्यास । [दे० व्यास ] । विष्टरनित्स ने इसे सीमित अर्थ में इतिहास और काव्य कहा है। पर उनके अनुसार "वास्तव में एक अर्थ में महाभारत एक काव्य-कृति है ही नहीं, अपने में पूरा साहित्य है।" प्राचीन भारतीय साहित्य, खण्ड १ भाग २ पृ० ६ । यह काव्य और इतिहास के अतिरिक्त अपने में भारतीय सांस्कृतिक चेतना को छिपाये हुए एक महान् सांस्कृतिक निधि है, स्वयं एक संस्कृति है। इसमें कवि ने कौरवों
और पाण्डवों की कथा के माध्यम से तत्कालीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का । विशाल चित्र अंकित किया है। इसमें संघर्ष-संकुल भारतीय जीवन की यथार्थ कहानी, है जिसमें दो जीवन मूल्यों का चित्र उरेहा गया है तथा तत्कालीन सम्पूर्ण विचारधाराओं एवं युग-चेतना को समेटने का सफल प्रयास किया गया है। इसीलिए कहा गया है कि यन्न भारते तन्न भारते-भारत में जो नहीं है वह महाभारत में भी नहीं है। भारत का अर्थ है-भारतों का युद्ध (भारतः संग्रामः, अष्टाध्यायी ४।२।५६ ) । महाभारत का अर्थ है 'भारत लोगों के युद्ध का महान् पाख्यान्' । इतिहास, धर्म, राजनीति तथा साहित्य सभी दृष्टियों से यह महान् उपलब्धि है। इसे हिन्दूधर्म के समस्त स्वरूप को निरूपित करने वाला पन्चम वेद माना जाता रहा । है। स्वयं इसके रचयिता की ऐसी गर्वोक्ति है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सम्बन्ध में जो यहाँ है, वही अन्यत्र भी है और जो यहां नहीं है वह अन्यत्र भी नहीं है। धर्म, ह्यर्थे चं कामे च मोक्षे च भरतर्षभ । यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् कचिद । 'महाभारत' शान्तिपर्व में जीवन की समस्याओं के समाधान के नानाविध तरवों का वर्णन है, अतः यह हिन्दू जाति के बीच धर्मग्रन्य के रूप में समाहत है। भारतीय साहित्य एवं चिन्तन-पति का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ 'गीता' 'महाभारत' का ही एक अंश है। इसके अतिरिक्त 'विष्णुसहस्रनाम', 'अनुगीता', 'भीष्मस्तवराज', 'गजेन्द्रमोम' जैसे आध्यात्मिक तथा भक्तिपूर्ण ग्रन्थ 'महाभारत' के ही भाग हैं । उपर्युक्त पांच ग्रन्थ 'पञ्चरत्न' के ही नाम से अभिहित होते हैं। सम्प्रति 'महाभारत' में एक लाख श्लोक प्राप्त होते हैं, अतः इसे 'शतसाहस्री संहिता' कहा जाता है। इसका यह रूप १५०० वर्षों से है, क्योंकि इसकी पुष्टि गुप्तकालीन एक शिलालेख से होती है जहाँ 'महाभारत' के लिए 'शतसाहस्री' संहिता का प्रयोग किया गया है। इसका वर्तमान रूप अनेक शताद्रिदयों के विकास का परिणाम है, इस प्रकार की धारणा आधुनिक