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रघुनन्दन ]
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[ रघुनाथ शिरोमणि
'योगरत्नाकर' में रोगपरीक्षा, द्रव्यगुण, निघण्टु तथा रोगों का वर्णन है तथा वैद्यजीवन ( लोलिम्बराज कृत दे० वैद्यजीवन ) की भांति शृङ्गारी पदों का भी बाहुल्य है । सारं भोजनसारं सारं सारङ्गलोचनाधरतः । पिब खलु वारं वारं नो चेन्मुधा भवति संसारः ॥ ‘योगरत्नाकर' की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है रोगों की पथ्यापथ्य विधि का वर्णन | इसके पूर्व किसी भी ग्रन्थ में इस विषय का निरूपण नहीं किया गया है। इसके कर्त्ता ने भी इस तथ्य का स्पष्टीकरण किया है-- आलोक्य वैद्यतन्त्राणि यत्नादेव निबध्यते । व्याधितानां चिकित्सार्थं पथ्यापथ्यविनिश्चियः ॥ निदानौषधपथ्यानि त्रीणि यत्नेन चिन्तयेत् । तेनैव रोगाः शीयन्ते शुष्के नीर इवाङ्कुराः ॥ इस ग्रन्थ का प्रकाशन विद्योतिनी हिन्दी टीका सहित चौखम्बा विद्याभवन से हो चुका है ।
आधारग्रन्थ-- आयुर्वेद का बृहत् इतिहास - श्रीमत्रिदेव विद्यालंकार ।
रघुनन्दन - ये बंगाल के अन्तिम धर्मशास्त्रकार माने जाते हैं । इन्होंने 'स्मृतित स्व' नामक वृहत् ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ धर्मशास्त्र का विश्वकोश माना जाता है। जिसमें ३०० ग्रंथों तथा लेखकों का उल्लेख है । इनके पिता का नाम हरिहर भट्टाचार्य था जो बन्धघटीय ब्राह्मण थे । रघुनन्दन का समय १४९० से १५७० ई० के बीच है । 'स्मृतितत्व' २८ तत्त्वों वाला है । इसके अतिरिक्त इन्होंने 'तीर्थतस्व' 'द्वादशयात्रात स्व', 'त्रिपुष्करशान्ति - तस्व', 'गया श्राद्धपद्धति', 'रासयात्रापद्धति' आदि ग्रन्थों की रचना की है । कहा जाता है कि रघुनन्दन एवं चैतन्य महाप्रभु दोनों के ही गुरु वासुदेव सार्वभौम थे । रघुनन्दन ने दायभाग पर भाष्य की भी रचना की है ।
आधारग्रन्थ-- धर्मशास्त्र का इतिहास- डॉ० पा० वा० काणे भाग १, ( हिन्दी अनुवाद ) ।
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रघुनाथविजय चम्पू – इस चम्पू काव्य के रचयिता कवि सार्वभौम कृष्ण हैं । इसका रचनाकाल १८८५ ई० है । कवि के पिता का नाम तातायं था जो दुगंपुर के निवासी थे । इस काव्य में पांच विलास हैं और पंचवटी के निकटस्थ विचूरपुरनरेश रघुनाथ की जीवनगाथा वर्णित है । कवि ने यात्राप्रबन्ध एवं चरितवर्णन का मिश्रित रूप प्रस्तुत कर इस काव्य के स्वरूप को संवारा है । स्वयं कवि के अनुसार इस काव्य की रचना एक दिन में ही हुई । कविसावं भौमविरुदाकलितः श्रीवेंकटायं सहजातः । रघुनाथ विजयमेनं व्यतनोद् दिनमेकमेव कृष्णाख्यः ।। ५। २४ । इस काव्य का प्रकाशन गोपाल नारायण कम्पनी, बम्बई से हो चुका है।
बाधारग्रन्थ- चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी ।
रघुनाथ शिरोमणि का नाम
रघुनाथ शिरोमणि -- नवद्वीप के नव्य नैयायिकों में महत्वपूर्ण है ( नव्यन्याय के लिए दे० न्यायदर्शन ) । इनका आविर्भाव १६ जीं शताब्दी में हुआ था । न्यायविषयक प्रकाण्ड पाण्डित्य के कारण नवद्वीप के तत्कालीन नैयायिकों ने इन्हें 'छिरोमणि' की उपाधि से अलंकृत किया था । इन्होंने प्रसिद्ध मैथिल नैयायिक एवं नव्यन्याय के प्रवर्तक आचार्य गणेश उपाध्याय कृत 'तस्यचिन्तामणि के
२६ सं० सा०