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नन्दिकेश्वर ]
( २२८ )
[ नन्दिकेश्वर
किया गया है। तृतीय उद्योत इस ग्रन्थ का सबसे बड़ा अंश है जिसमें ध्वनि के भेद एवं प्रसंगानुसार रीतियों तथा वृत्तियों का विवेचन है। इसी उद्योत में भाट्ट एवं प्रभाकर प्रभृति तार्किकों एवं वेदान्तियों के मतों में ध्वनि की स्थिति दिखलाई गयी है और गुणीभूतव्यंग्य तथा चित्रकाव्य का वर्णन किया गया है। चतुर्थ उद्योत में ध्वनि सिद्धान्त की व्यापकता एवं उसका महत्त्व वर्णित कर प्रतिभा के आनन्त्य का वर्णन है ।
एवं काव्यालोक । इस पर
अपने ग्रन्थ में
'ध्वन्यालोक' के अन्य नाम भी प्रसिद्ध हैं- सहृदयालोक एकमात्र टीका अभिनवगुप्त कृत 'लोचन' प्राप्त चन्द्रिका नामक टीका का भी उल्लेख किया है आधुनिक युग में आचार्य बदरीनाथ झा ने इस पर टीका की रचना की है
अभिनव ने ग्रन्थ प्राप्त
विद्याभवन से प्रकाशित है ।
होती है। किन्तु यह
नहीं होता ।
जो चौखम्बा
सम्प्रति 'ध्वन्यालोक' एवं 'लोचन' के कई हिन्दी अनुवाद एवं भाष्य प्राप्त होते हैं । इसमें कुल १०७ कारिकाएँ हैं - १९+ ३३ + ४८ + १७= १०७ ।
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क- आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्त शिरोमणि कृत हिन्दी भाष्य-ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी । ख – आचार्य बदरीनाथ कृत हिन्दी टीका - चौखम्बा प्रकाशन । ग— डॉ० रामसागर त्रिपाठी कृत ध्वन्यालोक एवं 'लोचन' का 'तारावती' नामक हिन्दी भाष्यमोतीलाल बनारसीदास । घ - आचार्य जगन्नाथ पाठक कृत ध्वन्यालोक एवं लोचन का हिन्दी भाष्य - चोखम्बा प्रकाशन । ङ – ध्वन्यालोक एवं लोचन के प्रथम उद्योत की हिन्दी टीका - श्रीमती आशालता । च - डॉ० कृष्णमूर्ति कृत ध्वन्यालोक का अंगरेजी अनुवाद | झ— डॉ० जैकोबी कृत ध्वन्यालोक का जर्मन अनुवाद |
आधार ग्रन्थ - आ० विश्वेश्वर कृत टीका तथा डॉ० नगेन्द्र रचित भूमिका ।
नन्दिकेश्वर — इन्होंने 'अभिनय-दर्पण' नामक नृत्यकलाविषयक ग्रन्थ का प्रणयन किया है। राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में काव्यविद्या की उत्पत्ति पर विचार करते हुए काव्य पुरुष के १८ स्नातकों का उल्लेख किया है जिनमें नन्दिकेश्वर का भी नाम है । इन्होंने रसविषय पर ग्रन्थ लिखा था, ऐसा विचार राजशेखर का है - 'रसाधिकारिकंनन्दिकेश्वरः । बहुत दिनों तक भरत एवं नन्दिकेश्वर को एक ही माना जाता था, किन्तु 'अभिनयदर्पण' के प्रकाशित हो जाने से यह भ्रम दूर हो गया । नन्दिकेश्वर ने अपने ग्रन्थ में भरत द्वारा निर्मित 'नाट्यशास्त्र' का उल्लेख किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि दोनों ही व्यक्ति भिन्न थे एवं नन्दिकेश्वर भरत के परवर्ती थे ।
नाट्यवेदं ददौ पूर्व भरताय चतुर्मुखः । वत्तश्च भरतः सार्धं गन्धर्वाप्सरसां गणैः ॥ २ ॥ नाट्यं नृत्तं तथा नृत्यमग्रे शम्भोः प्रयुक्तवान् ॥
डॉ. मनमोहन घोष ने 'अभिनयदर्पण'
अग्लानुवाद की भूमिका में सिद्ध किया है कि नन्दिकेश्वर का समय ५ वीं शताब्दी है, पर अनेक विद्वान् इनका समय १२ वीं