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वेद परिचय ]
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[ वेद परिचय
भाष्य के साथ ऋग्वेद का वैज्ञानिक संस्करण प्रकाशित किया। वैज्ञानिक सम्पादन की दृष्टि से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है । इसका समय १८४९ - १८७५ ई० का मध्य है। इसकी लम्बी भूमिका अत्यन्त उपादेय है । सम्पूर्ण ग्रन्थ में तीन सहस्र पृष्ठ हैं । इनके वेदविषयक अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं - प्राचीन संस्कृत साहित्य (हिस्ट्री ऑफ एनसिएन्ट संस्कृत लिटरेचर) वाट इंडिया कैन टीच अस आदि । वेबर ( जर्मन विद्वान् ) ने यजुर्वेद संहिता और तैत्तिरीय संहिता का संपादन किया तथा 'इ दिशे स्तूदियन' नामक शोध पत्रिका का जर्मन में प्रकाशन कर वैदिक शोधकार्य को गति दो । आउफ्रेक्ट नामक विद्वान् ने रोमन लिपि में ( १८६२-६३ ई० ) ॠग्वेद का संस्करण सम्पादित किया। जर्मन विद्वान श्रोदर ने मैत्रायणी सहिता का एक वैज्ञानिक संस्करण प्रकाशित किया है तथा काठक संहिता का संस्करण १९०० - ११ में । स्टेवेन्सन ने राणायनी शाखा की सामसंहिता को अग्लि अनुवाद के साथ १८४२ ई० में प्रकाशित किया है । tr और ह्वीटनी का अथर्ववेद का संयुक्त संस्करण १८५६ ई० में प्रकाशित हुआ है । प्रो० ब्लूमफील्ड तथा नार्वे ने अथर्ववेद की पिप्पलाद शाखा का एक जीणं प्रति के आधार पर संपादन कर प्रकाशन कराया है ।
वेद परिचय - वेद विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ तथा भारतीय संस्कृति के प्राण हैं । भारतीय धर्म, साहित्य, सभ्यता, दर्शन सबों को आधारशिला वेदों के राजप्रासाद पर अधिष्ठित है । 'वेद' शब्द का व्याकरणलब्ध अर्थ है 'ज्ञान', क्योंकि यह शब्द ज्ञानार्थंक विद धातु से निष्पन्न है । यहाँ ज्ञानार्थं प्रतिपादक वेद शब्द ईश्वरीय ज्ञान का द्योतक है। हिन्दूधर्म के अनुसार वेद तपःपूत महर्षियों के द्वारा दृष्ट ज्ञान हैं । वैदिक ज्ञान को ऋषियों ने मन्त्र द्वारा अभिव्यक्त किया है । ऋषियों को मन्त्रद्रष्टा कहा गया है, क्योंकि भारतीय परम्परा के अनुसार वेद किसी व्यक्तिविशेष की रचना न होकर अपौरुषेय कृति है । महर्षियों ने ज्ञान और तपस्या की चरम सीमा पर पहुंच कर प्रातिभज्ञान के द्वारा जो अनुभव प्राप्त किया है, वही आध्यात्मिक ज्ञानराशि वेद है । विभिन्न स्मृतियों एवं पुराणों में भी वेद की प्रशंसा हुई है । मनु के अनुसार वेद पितृगण, देवता तथा मनुष्यों का सनातन तथा निरन्तर विद्यमान रहनेवाला चक्षु है । सायण के अनुसार प्रत्यक्ष या अनुमान के द्वारा दुर्बोध तथा अज्ञेय उपाय का ज्ञान कराने में वेद की वेदता है - प्रत्यक्षेणानुमित्या वा यस्तूपायो न बुध्यते । एतं विदन्ति वेदेन तस्मात् वेदस्य वेदता । वेदके महत्त्व को हो ध्यान में रखते हुए मनु ने वेदनिन्दकों को नास्तिक की संज्ञा दी है- नास्तिको वेदनिन्दकः । ब्राह्मणों ने भी वेदाध्ययन का महत्व बतलाया है । वेदों के स्वाध्याय पर जोर देते हुए 'शतपथ ब्राह्मण' का कहना है कि धन एवं पृथ्वी का दान करने से मनुष्य जिस लोक को प्राप्त करता है, तीनों वेदों के अध्ययन से उससे भी अधिक अक्षय लोक को प्राप्त करने का श्रेय उसे मिलता है । [ शतपथ ब्राह्मण ११/५/६१ ]
आपस्तम्ब की 'यज्ञपरिभाषा' में ( ३१ ) वेद का प्रयोग मन्त्र और ब्राह्मण के लिए हुआ है— मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदा नामधेयम् । जिसका मनन किया जाय उसे मन्त्र कहते हैं । इनके द्वारा यज्ञानुष्ठान एवं देवता की स्तुति का विधान होता है— मननात् मन्त्राः ।