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मृच्छकटिक]
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[ मृच्छकटिक
कैसे होते । बच्चे की बातें सुन कर वसन्तसेना का हृदय ममता से भर जाता है, और वह अपने सभी आभूषणों को उतार कर उसकी गाड़ी में भर देती है। वह बच्चे से कहती है कि अब तो मैं तेरी मां बन गयी न, ले इन गहनों से सोने की गाड़ी बनवा ले । (एषेदानी ते जननी संवृत्ता! तद् गृहाण तमलंकारम् । सौवर्णशकटिका कारय ! )।
उपयुक्त घटना ही इस नाटक के नामकरण का आधार है। पर, यहाँ प्रश्न उठता है कि इस घटना का नामकरण के साथ क्या सम्बन्ध है ? इस नाटक का 'मृच्छकटिक' नाम प्रतीकात्मक है तथा असन्तोष का प्रतीक है। 'मृच्छकटिक' के अधिकांश पात्र अपनी स्थिति से असन्तुष्ट हैं और उनके असन्तोष की झलक इस नाटक में मिलती है। वसन्तसेना सुलभ शकार को प्यार न कर सर्वगुणसम्पन्न चारुदत्त को चाहती है, चारुदत्त भी धूता से असन्तुष्ट है और वह वसन्तसेना की ओर आकृष्ट होता है। बालक रोहसेन भी मिट्टी की गाड़ी से सन्तुष्ट नहीं है और वह सोने की गाड़ी चाहता है । कवि ने यह दिखाया है कि जो लोग अपनी परिस्थितियों से असन्तुष्ट होकर एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं, वे जीवन में अनेक कष्ट उठाते हैं। इस प्रकार इसके पात्रों का असन्तोष सर्वव्यायी है, जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति को कष्ट उठाना पड़ता है। अतः इसका नाम सार्थक एवं मुख्य वृत्त का अंग है । इस अभिधा का दूसरा करण यह है कि रचयिता का ध्यान सुवर्ण की महिमा दिखाते हुए भी चारुदत्त की दरिद्रता एवं रोहसेन की मिट्टी की गाड़ी पर विशेषरूप से है। कवि ने वसन्तसेना की समृद्धि पर ध्यान न देकर उसके शील पर विचार किया है। इसी प्रकार चारुदत्त की दरिद्रता ही उसके शील का प्रतीक है जिसकी छाया रोहसेन की गाड़ी में दिखाई पड़ती है। वस्तुतः कवि वसन्तसेना के वैभव को महत्त्व न देकर चारुदत्त की दरिद्रता की महत्ता स्वीकार करता है । अतः इसका नाम 'मृच्छकटिक' उपयुक्त सिद्ध होता है, क्योंकि वह चारुदत्त की दरिद्रता का परिचायक है। ___महाकवि शूद्रक ने भास रचित 'चारुदत्त' नामक नाटक की कथावस्तु को आधार बनाकर इसकी रचना की है, किन्तु दोनों के रचना-विधान एवं प्राकृत भाषा के प्रयोग में पर्याप्त अन्तर दिखाई पड़ता है। इसमें कवि ने अपनी प्रतिभा के प्रकाश में कतिपय नवीनताएं प्रदर्शित की हैं। भास ने 'चारुदत्त' में केवल वसन्तसेना एवं चारुदत्त की प्रणय कथा का ही सन्निवेश किया था, किन्तु शूद्रक ने राजनैतिक कथानक को गुंफित कर नवीनता प्रदर्शित की है। इसमें प्रेमियों का भाग्य नगर के राजनैतिक भाग्य के साथ सम्बद्ध हो गया है। द्वितीय अंक में जुआड़ियों के दृश्य का नियोजन कवि की मौलिक कल्पना है, जिससे नाटक जीवन के अधिक निकट आ गया है और इसमें अपूर्व आकर्षण का समावेश हुआ है । कवि ने शकार के चरित्र के माध्यम से हास्य की योजना की है तथा अन्य पात्रों के माध्यम से भी हास्य की सृष्टि की है। अतः 'मृच्छकटिक' का हास्य शूद्रक की निजी कल्पना के रूप में प्रतिष्ठित है। इसमें कवि ने अनेक नवीन पात्रों की कल्पना कर अपनी मौलिकता प्रदर्शित की है। 'मृच्छकटिक' में सात प्रकार के प्राकृतों का प्रयोग हुआ है, और इस दृष्टि से यह संस्कृत की अपूर्व नाट्य-कृति है। टीकाकार पूथ्वीधर के अनुसार प्रयुक्त प्राकृतों के नाम हैं-शौरसेनी, अवन्तिका, प्राच्या,