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माष]
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[माष
श्रीकृष्ण की प्रबल तरङ्ग वाली सेना से, बड़े जोर का शब्द करते हुए दोलायुद्ध ( जय पराजय की अनिश्चितता वाला गम्भार युद्ध) हुआ, जैसे तेजी से आती हुई नदी की, गम्भीर तरङ्गों वाले समुद्र की प्रवाह की टकर से, टकर की होने पर धीरध्वनि का संघात पाया जाता है।" अन्गत्र भी कवि ने वीररस के अनेक सुन्दर चित्र प्रस्तुत किये हैं। माघ मूलतः शृङ्गार रस के कवि हैं और इनका मन वीररस की अपेक्षा शृंङ्गार रस के वर्णन में ही अधिक रमता है । एक शृङ्गार का चित्र देखिए -चिररतिपरिखेदप्राप्तनिद्रासुखानां चरममपि शयित्वा पूर्वमेवप्रबुद्धाः। अपरिचलितगात्राः कुर्वते न प्रियाणामशिथिलभुजचक्राश्लेदभेदं तरुण्यः ॥ ११॥१३ । प्रातःकाल होने पर रात्रि केलि के कारण थक कर सुख की नींद सोने पर दम्पतियों में से पहले नायिकाएं जाग जाती हैं पर प्रिय की नींद टूटने के भय से वे अपने शरीर को इधरउधर नहीं हिलाती। सम्भवतः वे स्वयं भी आलिंगनजन्य सुख से वंचित नहीं होना चाही । __ माघ का प्रकृति-चित्रण कृत्रिम एवं अलंकार के भार से बोझिल है। इन्होंने चतुर्थ एवं षष्ठ सगं के प्रकृति-वर्णन को यमकालंकार से भर दिया है, फलतः प्रकृति का स्वाभाविक रूप नष्ट हो गया है। इसी प्रकार नवम सर्ग के सूर्यास्त-वर्णन एवं एकादश सर्ग के प्रभात-वर्णन में अप्रस्तुत विधान का प्राधान्य होने के कारण प्रकृति का रूप अलंकृत एवं दूरारुढ़ कल्पना से पूर्ण है। इन्होने मुख्यतः उद्दीपन के रूप में ही प्रकृति-वर्णन किया है, पर कहीं-कहीं विशेषतः द्वादश सगं में-ग्रामीणों, खेतों तथा गायों के चित्र उपस्थित कर प्रकृति के स्वाभाविक रूप को सुरक्षित रखा गया है। इनके अप्रस्तुत विधान में शृङ्गारिकता एवं पांडित्य की झलक मिलती है, तया मानवोचित शृङ्गारी चेष्टाओं का प्रकृति पर आरोप किया गया है। यमक-कनवपलाशपलाशवनं पुरः स्फुटपरागपरागतपङ्कजम् । मृदुलतान्तलतान्तमलोकयत् स सुरभि सुरभि सुमनोभरैः ॥ ६२ ख-उदयशिखरिशृङ्गप्रांगणेष्वेषरिंगन् सकमलमुखहासं वीक्षितः पपनीभिः। विततमृदुकराप्रः शन्दयन्त्यावयोभिः, परिपतति दिवोऽके हेलया बालसूर्यः ।। 'आँगन के समान उदयाचल की चोटी पर यह सूर्य शिशु की भांति रेंगता है। जिस प्रकार दासियों प्रसन्न मुख होकर आंगन में रेंगते हुए बच्चे को देखती हैं, उसी प्रकार कमलिनियां कमलों को विकसित कर के सूर्य का निरीक्षण करती हैं। जैसे शिशु माता के पुकारने पर अपने हाथों को फैलाकर उसकी गोद में चला जाता है, उसी प्रकार चिड़ियों के चहचहाने पर प्रातःकालीन सूर्य भी किरणों का प्रसार करके आकाश की गोद में जा पड़ता है।" माष की कविता पदलालित्य के लिए विख्यात है। कहीं-कहीं तो इनमें ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जो कालिदास में भी दुर्लभ हैं। ऐसे छन्दों में शम्दालंकारों की भी छटा दिखाई पड़ती है। मधुरया मधुबोधितमाषवीमधुसमृद्धिसमेषितमेधया। मधुकराङ्गनया मुहुरुन्मदध्वनिभृता निभृताक्षरमुज्जगे ॥ ६।२०। माष में वर्णन सौन्दर्य एवं चमत्कार-विधान चरम सीमा पर दिखाई पड़ता है। कवि ने तीस पचों में द्वारिकापुरी का चमत्कारपूर्ण वर्णन