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कालिदास]
(११७)
[कालिदास
कालिदास की सात रचनाएं प्रसिद्ध हैं, जिनमें चार काव्य एवं तीन नाटक हैं'ऋतुसंहार', 'कुमारसम्भव', 'मेघदूत', 'रघुवंश', 'मालविकाग्निमित्र', 'विक्रमोवंशीय' एवं 'शाकुन्तल या अभिज्ञानशाकुन्तल'। [ सभी ग्रन्थों का परिचय पृथक्-पृथक् दिया गया है, उनके नामों के सम्मुख देखें] । ___कालिदास की काव्य-कला-कालिदास भारतीय संस्कृति के रसात्मक व्याख्याता हैं। भारतीय संस्कृति के तीन महान् विषयों-तप, तपोवन एवं तपस्या का इन्होंने विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। 'शकुन्तला', 'रघुवंश' एवं 'कुमारसम्भव' में तीनों का उदात्त रूप अंकित है। कालिदास के काव्य में भारतीय सौन्दय-तत्त्व का उत्कृट रूप अभिव्यक्त हुआ है। इनकी सौन्दय दृष्टि बाह्य जगत् के चित्रण में दिखाई पड़ती है, जहाँ कवि ने मनोरम सौन्दर्यानुभूति की अभिव्यक्ति की है। मनुष्य एवं प्रकृति दोनों का मधुर संपर्क एवं अद्भुत एकरसता दिखाकर कवि ने प्रकृति के भीतर स्फुरित होनेवाले हृदय को पहवाना है। इनका प्रकृति-प्रेम पदे-पदे प्रशंसनीय है। 'शकुन्तला', 'मेघदूत', 'ऋतुसंहार' तथा अन्य ग्रन्थों के प्रकृति-वर्णन कवि की महान् देन के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनके अधिकांश प्रकृति-वर्णन स्वाभाविकता से पूर्ण एवं रसमय हैं। कवि ने प्रकृति को भावों का आलम्बन बना कर उसके द्वारा रसानुभूति करायी है। 'कुमारसम्भव' एवं 'शकुन्तला' में पशुओं पर प्रकृति के मादक एवं करुण प्रभाव का निदर्शन हुआ है । 'कुमारसम्भव' मानों कवि की सौदन्यं चेतना की रमणीय रंगशाला है। इसमें हिमालय की गोद में होने वाली घटनाएं प्राकृतिक सौन्दर्य-वर्णन के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती हैं। कवि ने हिमालय का बड़ा ही मनोग्राही एवं सरस वर्णन किया है, जिसमें उसकी दिव्यता प्रदीप्त हो उठी है। हिमालय को कवि ने जड़ सृष्टि का रूप न देकर देवात्मा कहा है, जहाँ पर सभी देवता आकर वास करते हैं । ___ कालिदास भारतीय सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण के कवि हैं। इनकी कविता में कलात्मक समृद्धि एवं भावों का उदात्त रूप दिखाई पड़ता है तथा उसमें मानववादी स्वर मुखरित हुआ है, जिसमें प्रेम, सौन्दर्य एवं मानवता को उन्नीत करनेवाले शाश्वत भावों की अभिव्यक्ति हुई है। इनकी सभी रचनाओं में प्रकृति की मनोरम प्रतिच्छवि उतारी गयी है। निसर्गकन्या शकुन्तला के अनिद्य सौन्दर्य-वर्णन में तथा 'मेघदूत' की विरह-विदग्धा यक्षिणी के रूप-चित्रण में कवि को सौन्दर्यप्रियता का चरम विकास प्रदर्शित हुआ है। अपने दोनों महाकाव्यों-'रघुवंश' एवं 'कुमारसम्भव' में कवि की दृष्टि सौन्दर्याभिव्यक्ति, प्रकृति-प्रेम, उदात्त चरित्र, भाषा की समृद्धि एवं कलात्मक उन्मेष की ओर लगी हुई है । कवि सौन्दर्य के बाह्य एवं आन्तर दोनों ही पक्षों का उद्घाटन करता है। 'रघुवंश' के द्वितीय सर्ग में सुदक्षिणा एवं दिलीप के उदात्त स्वरूप के चित्रण में मानवचरित्र के अन्तःसौन्दयं की अभिव्यक्ति हुई है। कवि ने सौन्दर्य का वर्णन करते हुए तदनुरूप उपमाओं का नियोजन कर उसे अधिक प्रभावोत्पादक बनाया है। कालिदास उपमा के सम्राट हैं। इनकी उपमाओं की रसात्मकता एवं रसपेशलता अत्यन्त हृदयहारिणी है । 'रघुवंश' के इन्दुमती स्वयंवर में दीपशिखा की उपमा देकर कवि 'दीपशिखा कालिदास' के नाम से विख्यात हो गया है ।