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उपनिषद् ब्राह्मण ]
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[उपनिषद् ब्राह्मण
प्रकाशमान है । वह शुद्ध तथा समस्त ज्योतिर्मय पदार्थों का प्रकाशक, निर्मल, निष्कल ( अवयवरहित ) तथा हिरण्मय (ज्योतिर्मय) परमकोश में स्थिर रहता है । 'बृहदारण्यक' में कहा गया है कि यह आत्मा ही ब्रह्म है। यह महान्, अजन्मा, अजर, अमर, अमृत
और अभय है । जो ऐसा जानता है वह ब्रह्म हो जाता है। 'केनोपनिषद्' के अनुसार ब्रह्म विदित तथा अविदित उभय प्रकार के पदार्थो से भिन्न और परे है। अन्ततः उपनिषदें 'नेति नेति' ( यह नहीं, यह नहीं) कहकर ब्रह्म का स्वरूप प्रकट करने में असमर्थता प्रकट करती हैं। वह अवाङ्मनसगोचर है। - जगत्-उपनिषदें ब्रह्म को ही जगत् का निमित्त एवं उपादान कारण मानती हैं । जिस प्रकार मकड़ी जाला को अपने शरीर से ही बनाती है और निगल जाती है, जिस प्रकार पुरुष के केश और लोम उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार यह समस्त विश्व अक्षर ब्रह्म से उत्पन्न होता है। मुण्डकोपनिषद्, १।१७ ___ उपनिषदों का नीतिशास्त्र-उपनिषदों में नीति-विवेचन के अतिरिक्त नैतिक उपदेशों का भी आधिक्य है। इनमें नीति के मूल सिद्धान्तों के सम्बन्ध में भी सुनिश्चित विचार प्राप्त होते हैं। 'कठोपनिषद्' में श्रेय और प्रेय का विवेक उपस्थित किया गया है। श्रेय और प्रेय दोनों ही मनुष्य के समक्ष उपस्थित हैं। दोनों भिन्न-भिन्न उद्देश्यों को रखते हुए मनुष्य को बाँधते हैं। बुद्धिमान् मनुष्य सम्यक् विचार करते हुए प्रेयस् को छोड़ कर श्रेयस् को ग्रहण करता है। जो श्रेय को चुनता है उसका कल्याण होता है और जो प्रेय को चुनता है वह उद्देश्य से च्युत हो जाता है । यहाँ प्रेयवाद ( भोगवाद ) को त्याज्य एवं श्रेयवाद को ग्राह्य कहा है। [कठोपनिषद्, २१२ ] 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार मनुष्य कर्तव्य बुद्धि से प्रेरित होकर अनासक्तभाव से कम करे, वह कभी भी अनुचित कर्म न करे । उपनिषदों में परमसत्ता की समस्या के समाधान के अतिरिक्त जीवन को उच्च एवं आदर्श रूप बनाने के लिए ऐसे सिद्धान्तों का भी निरूपण किया गया है, जो सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं । इनका आत्माद्वैत का सिद्धान्त विश्वचिंतन के क्षेत्र में अमूल्य देन के रूप में स्वीकृत है । ___ आधारयन्थ-१. एकादशोपनिषद्-शांकरभाष्य-गीता प्रेस, गोरखपुर ( तीन खण्डों में हिन्दी अनुवाद ) २. भारतीयदर्शन-डॉ. एस. राधाकृष्णन् (हिन्दी अनुवाद ) ३. भारतीयदर्शन-पं. बलदेव उपाध्याय ४. दर्शन-संग्रह-डॉ० दीवानचन्द ५ भारतीय संस्कृति का विकास (औपनिषदिकधारा )-डॉ. मंगलदेव शास्त्री ६. पूर्वी धर्म
और पाश्चात्य विचार-डॉ० एस० राधाकृष्णन् (हिन्दी अनुवाद ) ७. कन्सट्रकटिव सर्वे ऑफ औपनिषदिक फिलॉसफी-डॉ० रानाडे ।
उपनिषद् ब्राह्मण-यह सामवेदीय ब्राह्मण है। इसे छान्दोग्य ब्राह्मण भी कहा जाता है। इसमें दो प्रपाठक एवं प्रत्येक में आठ-आठ खण्ड हैं तथा मन्त्रों की संख्या २५७ है। प्रथम प्रपाठक के मन्त्रों का सम्बन्ध विवाह, गर्भाधान, सीमन्तोन्नयन, चूड़ाकरण, उपनयन, समावर्तन एवं गो-वृद्धि से है। द्वितीय प्रपाठक में भूतबलि, आग्रहायणीकर्म, पितृपिण्डदान, देववलिहोम, दर्शपूर्णमास, आदित्योपस्थान नवगृह:
६ सं० सा०