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दिङ्नाग ]
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[ दिङ्नाग
चतुर्थ प्रकाश में रस का स्वरूप, उसके अंग, तथा नौ रसों का विस्तारपूर्वक वर्णन है । इस अध्याय में रसनिष्पत्ति, रसास्वादन के प्रकार तथा शान्त रस की अनुपयोगिता पर विशेषरूप से प्रकाश डाला गया है । इस प्रकाश में ८६ कारिकाएं हैं। दशरूपक के तीन हिन्दी अनुवाद प्राप्त हैं
क - डॉ० गोविन्द त्रिगुणायत कृत दशरूपक का अनुवाद, ख — डॉ० भोलाशंकर व्यास कृत दशरूपक एवं धनिक की अवलोक व्याख्या का अनुवाद ( चौखम्बा विद्याभवन ), ग - आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत हिन्दी अनुवाद, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली ।
दिङ्नाग – ये 'कुन्दमाला' नामक नाटक के प्रणेता हैं । इस नाटक की कथा 'रामायण' पर आधृत है । रामचन्द्र- गुणचन्द्र रचित 'नाव्यदर्पण' में 'कुन्दमाला' का उल्लेख है, अत: इसका समय एक हजार ईस्वी के निकट माना गया है ।
इसके कथानक पर भवभूति कृत 'उत्तररामचरित' का पर्याप्त प्रभाव है । इसमें ६ अंक हैं तथा रामराज्याभिषेक के पश्चात् सीता- निर्वासन एवं पृथ्वी द्वारा सीता की पवित्रता घोषित करने पर राम-सीता के पुर्नमिलन तक की घटना वर्णित है । प्रथम अंक राम द्वारा सीता के लोकापवाद की सूचना पाकर लक्ष्मण को गर्भवती सीता को गंगातट पर छोड़ने के लिए आदेश का वर्णन है । लक्ष्मण उन्हें वन में पहुंचा देते हैं और वाल्मीकि सीता को अपने आश्रम में शरण देते हैं । द्वितीय अंक में लव-कुश का जन्म · तथा वाल्मीकि द्वारा दोनों को 'रामायण' की शिक्षा देने का वर्णन है । तृतीय अंक में सीता लव-कुश के साथ गोमती के किनारे जाती है और उसी समय राम-लक्ष्मण वहीं टहलते हुए आते हैं राम को कुन्द पुष्पों की एक बहती हुई माला दिखाई पड़ती है जिसे वे सोता की माला समझ कर विलाप करते हैं। सीता कुब्ज पें छिप कर सारे दृश्य को देखती है। इसी के आधार पर इस नाटक की हुई है। चतुर्थ अंक में तिलोतमा नामक अप्सरा का सीता का रूप धारण कर राम को संतप्त करने का वर्णन है । पंचम अंक में लव-कुश द्वारा राम के दरबार में रामायण का पाठ करना वर्णित है । षष्ठ अंक में पृथ्वी प्रकट होकर सीता की पवित्रता प्रकट करती है तथा राम अपना शेष जीवन सीता एवं अपने पुत्रों के साथ व्यतीत करते हैं ।
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अभिधा 'कुन्दमाला'
'उत्तररामचरित' की भांति 'कुन्दमाला' में भी 'वाल्मीकि रामायण' की घटना में परिवर्तन कर ग्रन्थ को सुखान्त पर्यवसायी बनाया गया है । इनके प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन पर महाकवि कालिदास का प्रभाव परिलक्षित होता है । राम द्वारा सीता के परित्याग पर पशु-पक्षी भी विलाप करते हुए दिखाये गए हैं। सीता की करुण दशा को देख कर हरिणों ने तृण-भक्षण छोड़ दिया है तथा शोकातं हंस मधु प्रवाहित करते प्रदर्शित किये गए हैं ।
एते रुदन्ति हरिणा हरितं विमुच्य हंसाश्च शोकविधुराः करुणं रुदन्ति ।