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तीर्थ-यात्रा-प्रबन्ध चम्पू]
(२०३ )
[तैत्तिरीय आरण्यक
साम तथा सोम यागों का वर्णन । कहीं-कहीं सामों की स्तुति एवं महत्व प्रदर्शन के लिए मनोरंजक आख्यान भी दिये गए हैं तथा यज्ञ के विषय से सम्बद्ध विभिन्न ब्रह्मवादियों के अनेक मतों का भी उल्लेख किया गया है। ___क-इसका प्रकाशन बिब्लोथिका इण्डिका (कलकत्ता) में १८६९-७४ में हुआ था जिसका सम्पादन ए. वेदान्तवगीश ने किया था। ख-श्री आनन्दचन्द्र सम्पादित, कलकत्ता १८४० ई०। ग-सायण भाष्य सहित चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित । घ-डा० कैलेण्ड द्वारा आंग्ल अनुवाद बिब्लोथिका, कलकत्ता से १९३२ में विशिष्ट भूमिका के साथ प्रकाशित ।
तीर्थ यात्रा-प्रबन्ध चम्पू-इस चम्पू काव्य के रचयिता का नाम समरपुंगव दीक्षित है। ये वाधूलगोत्रीय ब्राह्मण थे और इनका जन्म दक्षिण के वटवनाभिधान संज्ञक नगर में हुआ था। ये अप्पय दीक्षित के शिष्य थे अतः इनका समय सोलहवीं शताब्दी का उत्तराध है। इनके पिता का नाम वेंकटेश तथा माता का नाम अनन्तम्मा था। इसमें नौ उछ्वास हैं और उत्तर एवं दक्षिण भारत के अनेक तीर्थों का वर्णन किया गया है। इस चम्पू में नायक द्वारा तीर्थाटन का वर्णन है पर कहीं भी उसका नाम नहीं है। कवि के भ्राता सूर्यनारायण ही इसके नायक ज्ञात होते हैं। कवि ने स्थान-स्थान पर प्रकृति के मनोरम चित्र का अंकन किया है। तीर्थयात्रा के प्रसंग में शृङ्गार के भयानक चित्र भी स्थल-स्थल पर उपस्थित किये गए हैं और इतिप्रेषण, चन्द्रोपालम्भ एवं कामपीड़ा के अतिरिक्त भयानक रतियुद्ध का भी वर्णन किया गया है । भारत का काव्यात्मक भौगोलिक चित्र प्रस्तुत करने में कवि पूर्णतः सफल हुआ है। सेतुवर्णन का चित्र रमणीय है
चलकङ्कणैः पयोनिधिशयने वेलावधूमिहस्तेयः ।
आस्फालितोरुभागः स्वपितीव चकास्ति सेतुराजोऽयम् ॥ २२७ इसका प्रकाशन काव्यमाला (३६) निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से १९३६ में हो चुका है। इसी कवि का दूसरा, ग्रन्थ 'आनन्दकन्द चम्पू' है जो अप्रकाशित है। इसमें आठ आश्वास हैं और रचनाकाल १६१३ ई. है। इस चम्पू में शैव सन्तों तथा सन्तिनियों का जीवनवृत्त वर्णित है।
आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का विवेचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डा. छविनाथ त्रिपाठी।
तैत्तिरीय भारण्यक-यह 'ऋग्वेद' का आरण्यक है जिसमें दस प्रपाठक या परिच्छेद हैं। इन्हें 'अरण' कहा जाता है तथा इनका नामकरण प्रत्येक अध्याय के मादि पद के अनुसार किया गया है; जैसे भद्र, सहवे, चित्ति, पुल्जते, देववे, परे, शीक्षा, ब्रहनविद्या, भृगु एवं नारायणीय । इसके सप्तम्, अष्टम एवं नवम प्रपाठकों (सम्मिलित ) को 'तैत्तिरीय उपनिषद्' कहा जाता। प्रपाठक अनुवाकों में विभाजित हैं तया नवम प्रपाठक तक अनुवाकों की संख्या १७० है। इसमें 'ऋगवेद' की बहुत सी ऋचाओं के उद्धरण दिये गये हैं। प्रथम प्रपाठक में भारुण केतुक संज्ञक अग्नि की उपा