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नीलकण्ठ ]
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[ नीलकण्ठ
की परीक्षा की है । इनमें भाग्य एवं पुरुषार्थ, पशु-पक्षी तथा मनुष्यों के बीच मैत्रीभावना, जीवन को उदात्त बनाने वाले तत्त्वों का विश्लेषण एवं दैन्य, कार्पण्य, शोषण, असमानता आदि सामाजिक प्रवृत्तियों पर व्यंग्यात्मक शैली के द्वारा प्रहार किया गया है। इस प्रकार की कृतियों की संस्कृत में विशाल परम्परा है। संस्कृत में नीतिपरक मुक्तकों के तीन रूप दिखाई पड़ते हैं-अन्योक्ति वाले मुक्तक, नीतिमुक्तक तथा वैराग्य सम्बन्धी शान्त रसपरक मुक्तक । नीतिपरक मुक्तकों में उपदेश की प्रधानता है और इसी का सहारा लेकर ही इनकी रचना हुई है । अन्योक्ति वाले मुक्तकों का महत्व काव्यात्मक सौन्दर्य की दृष्टि से अधिक है; क्योंकि इनमें उपदेश वाच्य न होकर व्यंग्य होता है। अन्य दोनों प्रकार के मुक्तकों में उपदेश का शाब्द होने के कारण काव्यपक्ष गौण पड़ जाता है। ___ इन मुक्तकों का प्रारम्भ कब से हुआ, यह कहना कठिन है, पर ग्रन्थ रूप में 'चाणक्यनीति-दर्पण' या 'चाणक्यशतक' अत्यन्त प्राचीन रचना है। इसमें ३४० श्लोक हैं। जनाश्रय कृत 'छन्दोविचिति' (७०० ई० ) में कुछ नीतिविषयक श्लोक उद्धृत हैं जिनके रचयिता मदुरानिवासी सुन्दर पाण्ड्य कहे जाते हैं। इन्होंने 'नीतितिषष्टिका' नामक नीतिग्रन्थ की रचना की थी। इनका समय ५ वीं शताब्दी है। कुमारिल तथा शंकराचार्य के ग्रन्थों में सुन्दर पाण्ड्य के श्लोक उधृत हैं जिससे ज्ञात होता है कि इन्होंने एतद्विषयक अन्य ग्रन्थ भी लिखा था। बौद्ध विद्वान् शान्तिदेव (६०० ई.) कृत नीतिविषयक तीन ग्रन्थ हैं-'बोधिचर्यावतार', 'शिक्षासमुच्चय', तथा 'सूत्रसमुच्चय' । ७५० वि० सं० में भल्लट ने 'भल्लटशतक' नामक अन्योक्तिप्रधान मुक्तकों की रचना की थी। इन्होंने हाथी, भौरा, चातक, मृग, सिंह आदि के माध्यम से मानव जीवन पर घटित होने वाले कई विषयों का वर्णन किया है। अन्योक्तिमुक्तक लिखनेवालों में पण्डितराज जगन्नाथ अत्यन्त प्रौढ़ कवि हैं। इन्होंने 'भामिनीविलास' में अत्यन्त सुन्दर अन्योक्तियां लिखी हैं। नीतिपरक मुक्तककारों में भर्तृहरि का स्थान सर्वोपरि है। इन्होंने दोनों प्रकार के मुक्तकों को दो भिन्न ग्रन्थों में उपस्थित किया है-'नीतिशतक' एवं 'वैराग्यशतक' में । 'नीतिशतक' में सम्पूर्ण मानव जीवन का सर्वेक्षण करते हुए विद्या, वीरता, साहस, मैत्री, उदारता, परोपकारिता, गुणग्राहकता, आदि विषयों का वर्णन प्रभावोत्पादक शैली में किया गया है। 'वैराग्यशतक' में जीवन की क्षणभङ्गरता प्रदर्शित कर विषयासक्त प्राणी का दयनीय एवं उपहासास्पद चित्र खींचा गया है। एतद्विषयक अन्य ग्रन्थों के नाम हैं-'कालिविडम्बन' (नीलकण्ठदीक्षित कृत १७ वीं शती), 'सभारंजनशतक,' 'शान्तिविलास' तथा 'वैराग्यशतक' कटाध्वरी (१७ वीं शती) रचित 'सुभाषितकौस्तुभ' वल्लाल कवि कृत 'वबालशतक', शम्भु कृत 'अन्योक्तिमुक्तमाला' तथा वीरेश्वर रचित 'अन्योक्तिशतक' ।
नीलकण्ठ-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। इनके माता-पिता का नाम क्रमशः पमा एवं अनन्त दैवज्ञ था। नीलकण्ठ का जन्म-समय १५५६ ई० है। इन्होंने 'ताजिकनीलकण्ठी' नापक फलितज्योतिष के महत्त्वपूर्ण अन्य की रचना की है जो