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महाभाष्य]
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[महाभाष्य
उपदेश, आध्यात्मिक तथ्य तथा राजधर्मसम्बन्धी विचार व्यक्त किये गए हैं। इसके शान्तिपर्व में राजधर्म का वर्णन भारतीय राजनीतिशास्त्र के विकास की महत्वपूर्ण कड़ी है। 'महाभारत' के अनेक बास्यानों एवं विषयों को देखकर वह भावना मन में उठती है कि यह एक व्यक्ति की रचना न होकर कई व्यक्तियों की कृति है, परन्तु आन्तरिक प्रमाणों एवं शैली के आधार पर यह सिद्ध होता है कि इसे एकमात्र व्यास ने ही लिखा है। भाषा तथा शैली की एकरूपता इसे एक ही व्यक्ति की रचना विड करती है।
माधारग्रन्थ-१-महाभारत (हिन्दी अनुवाद सहित)-गीता प्रेस, गोरखपुर । २-महाभारत की विषयानुक्रमणिका-गीता प्रेस, गोरखपुर । ३-महाभारत कोष-(पार खण्डों में ) अनु० श्री रामकुमार राय ( चौखम्बा प्रकाशन )।४-महाभारत-परिचयगीता प्रेस, गोरखपुर । ५-महाभारत-मीमांसा-श्रीमाधवराव सप्रे।६-संस्कृत साहित्य का इतिहास-पं. बलदेव उपाध्याय। ७-भारतसावित्री (भाग १, २, ३,)-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल। -भारतीय संस्कृति-डॉ. देवराज।९-संस्कृत साहित्य का इतिहास-श्री गैरोला । १०-भारतीय प्रज्ञा-मोनियर विलियम हिन्दी अनु० श्री रामकुमार राय । ११-संस्कृति के चार अध्याय-श्री रामधारी सिंह 'दिनकर'। १२-महाभारतकालीन समाज-डॉ० सुखमय भट्टाचार्य, अनु०डॉ० बनमाला भवालकर । १३-प्राचीन भारतीय साहित्य-सण १ भाग २-डॉ० विष्टरनित्स (हिन्दी अनुवाद)। १४-प्राचीन भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक भूमिका-डॉ. रामजी उपाध्याय । १५-महाभारत का आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों पर प्रभाव-डॉ. विनय कुमार । ___ महाभाष्य-यह व्याकरण का युगप्रवर्तक ग्रन्थ है जिसके लेखक हैं पतम्जलि [३० पतन्जलि ] । यह पाणिनि कृत 'अष्टाध्यायी' की व्याख्या है, अतः इसकी सारी योजना उसी पर आधृत है। इसमें कुल ८५ आहिक (अध्याय) हैं। भर्तृहरि के अनुसार 'महाभाष्य' केवल व्याकरणशास्त्र का ही ग्रन्थ न होकर समस्त विद्यानों का आकर है। कृतेऽथ पतन्जलिना गुरुणा तीर्थदर्शिना । सर्वेषां न्यायवीजानां महाभाष्ये निवन्धने ॥ वाक्यप्रदीय, २१४८६ । पतन्जलि ने समस्त वैदिक तथा लौकिक प्रयोगों का अनुशीलन करते हुए तथा पूर्ववर्ती सभी व्याकरणों का अध्ययन कर समग्र व्याकरणिक विषयों का प्रतिपादन किया है। इसमें व्याकरणविषयक कोई भी प्रश्न अछूता नहीं रह गया है । इसकी निरूपणशैली तकपूर्ण एवं सर्वधा मौलिक है। 'महाभाष्य' की रचना के पश्चात् पाणिनिव्याकरण के समस्त रहस्य स्पष्ट हो गए और उसी का पठन-पाठन होने लगा। इसमें 'अष्टाध्यायी' के चौदह प्रत्याहार सूत्रों को मिलाकर ३९९५ सूत्र विद्यमान है, किन्तु १६८९ सूत्रों पर ही भाष्य लिखा गया है, तथा शेष सूत्रों को उसी रूप में ग्रहण कर लिया गया है। पतन्जलि ने कतिपय सूत्रों में वातिककार के मत को भ्रान्त ठहराते हुए पाणिनि के ही मत को प्रामाणिक माना तथा १६ सूत्रों को बनावश्यक सिद्ध कर दिया। उन्होंने कात्यायन के अनेक आक्षेपों का उत्तर देते हुए पाणिनि का पक्ष लिया जिसे विद्वानों ने पाणिनि के प्रति उनकी अतिशय भक्ति या पक्षपात स्वीकार किया है। उन्होंने पाणिनि के लिये भगवान्, आचार्य, मांगलिक,