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उखवदूत]
[ उढवदूत
धीरोदात्त चरित्र के विकास एवं परिपुष्टि में सहायता नहीं प्राप्त होती । कतिपय आचार्यों ने पंचम अंक के अन्तर्गत राम के चरित्र पर लब द्वारा किये गए आक्षेप को अनौचित्यपूर्ण माना है। वृद्धास्ते न विचारणीयचरितास्तिष्ठन्तु किं वर्ण्यते
सुन्दस्त्रीमथनेऽप्यकुष्ठयशसो लोके महान्तो हि ते । यानि त्रीण्यपराङ्मुखान्यपि पदान्यासान् खरायोधने
यद्वा कौशलमिन्द्रसुनुनिधने तत्राप्यभिज्ञो जनः ॥ ५॥३५ यहां नायक के चरित्रगत दोषों का वर्णन करने के कारण क्षेमेन्द्र ने अपने ग्रन्थ औचित्यविचारचर्चा' में इसे अनौचित्यपूर्ण कहा है ।
अत्राप्रधानस्य रामसूनोः कुमारलवस्य परप्रतापोत्कर्षासहिष्णोर्वीररसोद्दीपनाय सकलप्रबन्धजीवितसर्वस्वभूतस्य प्रधाननायकगतस्य वीररसस्य ताडकादमनखररणापसरणअन्यरणसंसक्तवालिव्यापादनादिजनविहितापवादप्रतिपादनेन स्ववचसा कविना विनाशः कृतः-इत्यनुचितमेतत् ।।
पृ० १९५-१९६ __औचित्यविमर्श-डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी 'पर इन दोषों से भवभूति के नाटक की आभा में कोई न्यूनता नहीं आने को। भवभूति वश्यवाच कवि हैं और सरस्वती उनकी इच्छा का अनुवत्तंन करती हैं ।' महाकवि भवभूति पृ० १२० ____ आधारग्रन्थ-१. उत्तररामचरित-हिन्दी अनुवाद, चौखम्बा प्रकाशन २. उत्तररामचरित-डॉ. वी० पी० काणेकृत व्याख्या ( हिन्दी अनुवाद) ३. उत्तररामचरित-डॉ. कृष्णमणि त्रिपाठी ४. महाकवि भवभूति-डॉ० गङ्गासागर राय ।
उद्धवदत-यह संस्कृत का सन्देशकाव्य है जिसके रचयिता हैं माधव कवीन्द्र । इनके जीवन के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। डॉ० एस० के० दे के अनुसार इनका समय १७ वीं शताब्दी है। इस काव्य की रचना 'मेघदूत' के अनुकरण पर हुई है और समग्र ग्रन्थ मन्दाक्रान्ता वृत्त में समाप्त हुआ है । इसमें कुल १४१ श्लोक हैं और अन्तिम श्लोक अनुष्टुप छन्द में है। इस काव्य में कृष्ण द्वारा उद्धव को अपना सन्देश गोपियों के पास भेजने का वर्णन है। कृष्ण का दूत समझकर राधा उद्धव से अपना एवं गोपियों की विरह-व्यथा का वर्णन करती हैं। राधा कृष्ण एवं कुम्जा के प्रेम को लेकर विविध प्रकार का आक्षेप करती हैं और अक्रूर को भी फटकारती हैं। राधा अपने सन्देश में कहती हैं कि कृष्ण के अतिरिक्त उनका दूसरा प्रेमी नहीं है यदि उनके वियोग में उनके ( राधा के ) प्राण निकल जाएँ तो कृष्ण ही उन्हें जलदान दें। वे अपनी विरह-व्यथा का कथन करते-करते मूच्छित हो जाती हैं । शीतलोपचार से स्वस्थ होने के पश्चात् उद्धव उन्हें कृष्ण का सन्देश सुनाते हैं और शीघ्र ही कृष्णमिलन की आशा बंधाते हैं । राधा की प्रेम-विह्वलता देखकर उद्धव उनके चरणों पर अपना मस्तक रख देते हैं और कृष्ण का उत्तरीय उन्हें भेंट में समर्पित करते हैं। श्रीकृष्ण के प्रेम का ध्यान कर राधा आनन्दित हो जाती हैं और यहीं पर काव्य समाप्त हो जाता है । राधा द्वारा कृष्ण का उपालम्भ देखें