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मेघदूत ]
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। मेघदूत
इस प्रकार है-याच्या मोघा वरमधिगुणे नाधमे लन्धकामा । पूर्वमेघ ६ । रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय ॥ वही २० । स्त्रीणामाचं प्रणयवचन विभ्रमो हि प्रियेषु ॥ वही २८ । ज्ञातास्वादो विवृतजधनां को विहातुं समर्थः १॥ वही ४११५कवि ने वाल्मीकि के प्रकृति-चित्रण के रूप को मेघदूत में विकसित किया है तथा एक भूगोलविद् एवं रसज्ञ कवि के समन्वित व्यक्तित्व को उपस्थित कर भौगोलिक एवं रस. शास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत किया है। ६-कवि की सांस्कृतिक प्रौढ़ि के कारण मेघदूत की भाषा में गांभीयं एवं निखार दिखाई पड़ता है। मेघदूत की भाषा 'आवेममयी अकृत्रिम-स्वच्छन्द-धारा' है । इसमें प्रकृति के विविध चित्रों का अंकन कर विरह-भावना को अति तीव बना दिया है। इसमें पद-पद पर भावानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग मिलता है। ७-इसमें कथानक का आधार स्वल्प है। वह केवल कवि की अनुभूति की अभिव्यक्ति का आधार मात्र है।
मेघदूत अत्यन्त लोकप्रिय काव्य है और इसके अनुकरण पर संस्कृत में अनेक सन्देश-काव्यों की रचना हुई है। इस पर संस्कृत में लगभग ५० टीकाएँ प्राप्त होती हैं, जिनमें मल्लिनाथ की टीका सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। विदेशी विद्वानों ने भी इसे आदर की दृष्टि से देखा है । संसार की सभी प्रसिद्ध भाषाओं में इसके गद्यानुवाद हुए हैं। एच० एच० विल्सन ने १८१३ ई० में इसका आंग्ल अनुवाद प्रकाशित किया था। मल्लिनाथ की टीका के साथ मेघदूत का प्रकाशन १८४९ ई० में बनारस से हुमा और श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने १८६९ ई० में कलकत्ता से स्वसम्पादित संस्करण प्रकाशित किया। इसके आधुनिक टीकाकारों में चरित्रवर्द्धनाचार्य एवं हरिदास सिद्धान्त. वागीश अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। इनकी टीकाओं के नाम हैं-'चारित्र्यदिनी' एवं 'चंचला'। अनेक संस्करणों के कारण मेघदूत की श्लोक संख्या में भी अन्तर पड़ जाता है और अब तक इसमें लगभग १५ प्रक्षिप्त श्लोक प्राप्त होते हैं। हिन्दी में मेघदूत के अनेक गद्यानुवाद एवं पद्यानुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध अनुवादों के नाम इस प्रकार है
१-राजा लक्ष्मणसिंह-व्रजभाषा में पद्यानुवाद । २-५० केशवप्रसाद मिश्र - खड़ी बोली का पद्यानुवाद । ३-श्रीनागार्जुन । ४-जयकिशोर नारायण सिंह । ५-श्री दिवाकर साहित्याचार्य एवं सत्यकाम विद्यालंकार के पद्यानुवाद अधिक सुन्दर हैं। पटना (विक्रम) के श्रीपुण्डरीक जी ने इसका मगही में पद्यानुवाद किया है । महापण्डित मैक्समूलर ने जर्मन भाषा में इसका पद्यानुवाद १८४७ ई० में किया था तथा प्रसिद्ध जमन कवि शीलर ने मेघदूत के अनुकरण पर 'मेरिया स्टुअर्ट' नामक काव्य की रचना को थी। जर्मन भाषा में श्री श्वेज ने १८५९ ई० में इसका गद्यानुवाद किया है और अमेरिका के आर्थर राइसर ने इसका पद्यानुवाद किया। १८४१ ई० में बोन नामक विद्वान ने मेघदूत का लातीनी भाषा में अनुवाद किया है और चीनी भाषा में इसका अनूदित संस्करण १९५६ ई० में प्रकाशित हया है। आज से सात सौ वर्ष पूर्व तिम्बती भाषा में मेषदूत प्राप्त हया था तथा जापान के प्राध्यापक श्री एच. क्युमुरा ने जापानी भाषा में इसका अनुवाद अभी किया है। सी भाषा में इसक्न
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