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उत्तररामचरित]
[उत्तररामचरित
___ चतुर्थ अंक में राजा जनक एवं कौशल्या का विषादमय चित्र एवं लव-कुश की वीरता का चित्रण है।
चतुर्थ अंक में विष्कम्भक से विदित होता है कि ऋषि शृङ्ग का यज्ञ समाप्त होने पर सीता-निर्वासन की सूचना प्राप्त कर कौशल्या सीता-विहीन अयोध्या में न जाकर वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में चली जाती हैं। राजा जनक को भी निर्वासन का दुःखद समाचार प्राप्त होता है और वे चन्द्रदीप तपोवन में तपस्या करने के पश्चात् वाल्मीकि मुनि के आश्रम में पधारते हैं। इसी कारण ( इन व्यक्तियों के आगमन से ) वाल्मीकि ऋषि के छात्रों का आज अनध्याय हो जाता है। इसी बीच लव का प्रवेश होता है और वह अपने को वाल्मीकि ऋषि का शिष्य एवं कुश का भ्राता बताता है । जनक और कौशल्या उसके रूप में राम एवं सीता के सौन्दर्य की छाप देखते हैं। तदनन्तर लक्ष्मणपुत्र चन्द्रकेतु यज्ञीय अश्व के साथ प्रवेश करते हैं और उसे लव वीरों की पुनीती जानकर उसका अपहरण कर देता है।
पंचम अंक में चन्द्रकेतु तथा लव में दपं-पूर्ण विवाद होता हैं। लव चन्द्रकेतु की सेना को परास्त कर देता है तथा लव एवं चन्द्रकेतु का युद्ध होता है।
षष्ठ अंक के निष्कम्भक में विद्याधर एवं विद्याधरी के वार्तालाप में चन्द्रकेतु तथा लव के भयंकर युद्ध का वर्णन हुआ है । इससे ज्ञात होता है कि शम्बूक का वध कर रामचन्द्र इसी ओर आ रहे हैं। लव को देखने पर सुमन्त्र को उनके सीता का पुत्र होने का सन्देह होता है। राम के आगमन से दोनों योद्धाओं का युद्ध बन्द हो जाता है। राम लव और कुश का परिचय प्राप्त करते हैं और उनके मन में भी, दोनों बालकों में सीता का सादृश्य प्राप्त कर, सीता-पुत्र होने का सन्देह होता है। इसी बीच अरुन्धती, वशिष्ठ, वाल्मीकि, जनक एवं कौशल्या राम के पास आते हैं।
सप्तम अंक के गर्भीक में एक नाटक का प्रदर्शन किया गया है जिसमें छह अंकों की सारी घटनायें प्रदर्शित हुई हैं। सीता के गंगा में डूबने की घटना पर राम मूच्छित हो जाते है पर लक्ष्मण उन्हें नाटक की बात कहकर आश्वस्त करते हैं । लक्ष्मण वाल्मीकि से राम की रक्षा की प्रार्थना करते हैं और वाल्मीकि मुनि के आदेश से वाद्यादि बन्द कर दिये जाते हैं। अरुन्धती सीता को लेकर प्रकट होती हैं और सीता की परिचर्या द्वारा राम स्वस्थ होते हैं। वाल्मीकि मुनि आकर राम को सीता, लव एवं कुश को समर्पित करते हैं और दोनों बालक अपने माता-पिता को पाकर धन्य हो जाते है। अरुन्धती सीता के दिव्य एवं पावन चरित्र की प्रशंसा करती हैं और नागरिकों की सम्मति जानना चाहती हैं। राम गुरुजनों की आज्ञा प्राप्त कर सीता को अंगीकार करते हैं।
इस नाटक के कथानक का उपजीव्य वाल्मीकि रामायण है, पर कवि ने नाट्यरचना-कौशल प्रदर्शित करने के निमित्त मूल कथा में अनेक परिवर्तन किये हैं। रामायण में यह कथा दुःखान्त है और सीता अपना अपमान समझ कर पृथ्वी में प्रोस कर जाती हैं, पर यहां कवि ने राम-सीता का पुनर्मिलन दिखा कर नाटक को सुखान्त बना दिया है। प्रथम अंक में चित्रशाला की योजना कवि की मौलिक कल्पना है जिसके द्वारा
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