________________
गरुड़ पुराण]
.
(१५८ )
[गरुड़ पुराण
'शक्तिवाद' तथा 'व्युत्पत्तिवाद' इनके न्यायविषयक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मौलिक ग्रन्थ हैं । 'शक्तिवाद' में नैयायिकों के मतानुसार शक्तिग्रह कैसे होता है, इसका वर्णन है।
आधार गन्थ-भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ।
गरुड़ पुराण -पुराणों के क्रम में १७ वा पुराण। यह वैष्णव पुराण है जिसका नामकरण, विष्णु के वाहन गरुड़ ( एक पक्षी ) के नाम पर किया गया है। इसमें विष्णु ने गरुड़ को विश्व की सृष्टि का उपदेश दिया है, अतः इसी आधार पर इसका नाम 'गरुडपुराण' पड़ा है। यह हिन्दुओं का अत्यन्त लोकप्रिय एवं पवित्र पुराण है क्योंकि किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् श्राद्धकर्म के अवसर पर इसका श्रवण आवश्यक माना जाता है। इसमें सभी उपयोगी विषयों का समावेश है, अतः . यह भी 'अग्निपुराण' की भांति 'पौराणिक महाकोश' माना जाता है। इसके दो विभाग हैं-पूर्वखण्ड एवं उत्तरखण्ड । पूर्वखण्ड में अध्यायों की संख्या २२९ एवं उत्तरखण में ३५ है। इसकी श्लोकसंख्या १८ हजार है, पर 'श्रीमद्भागवत' एवं रेवामाहात्म्य' में यह संख्या १९ हमार मानी गयी है । 'मत्स्यपुराण' में भी इसकी श्लोकसंख्या ११ हजार बतायी गयी है तथा उसमें यह विचार व्यक्त किया गया है कि गरुड़कल्प के अवसर पर ब्रह्माण्ड से गरुड़ का जन्म हुआ था जिसे विष्णु ने १९ हजार श्लोकों में कहा था। वैष्णव पुराण होने के कारण इसका मुख्य ध्यान विष्णु-पूजा, वैष्णवव्रत, प्रायश्चित तथा तीयों के माहात्म्य-वर्णन पर केन्द्रित रहा है। इसमें पुराणविषयक सभी तथ्यों का समावेश है और शक्ति-पूजा के अतिरिक्त . पंचदेवोपासना (विष्ण, शिव, दुर्गा, सूर्य तथा गणेश) की भी विधि का उल्लेख किया गया है। इसमें 'रामायण', 'महाभारत' एवं 'हरिवंश' के प्रतिपाद्य विषयों की सूची है तथा सृष्टिकर्म, ज्योतिष, शकुनविचार, सामुद्रिकशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, व्याकरण, रत्नपरीक्षा एवं नीति के सम्बन्ध में भी विभिन्न अध्यायों में तस्य प्रस्तुत किये गए हैं। . ___'गरुडपुराण' में याज्ञवल्क्य धर्मशास्त्र के एक बड़े भाग का भी समावेश है तथा एक अध्याय में पशुचिकित्सा की विधि एवं नाना प्रकार के रोगों को हटाने के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियों का वर्णन किया गया है । इस पुराण में छन्दशास्त्र का छ: अध्यायों में विवेचन है तथा एक अध्याय में 'गीता' का भी सारांश दिया गया है । अध्याय १०८ से ११५ तक राजनीति का सविस्तर विवेचन है तथा एक अध्याय में सांख्ययोग का निरूपण किया गया है। इसके १४४ वें अध्याय में कृष्णलीला कही गई है तथा आचारकाण्ड में श्रीकृष्ण की रुक्मिणी आदि आठ पत्नियों का उल्लेख है, किन्तु उनमें राधा का नाम नहीं है । . इसके उत्तरखण्ड में, जिसे प्रेतकल्प कहा जाता है, मृत्यु के उपरान्त जीव की विविध गतियों का विस्तारपूर्वक उल्लेख है। प्रेतकल्प में गर्भावस्था, नरक, यम, यमनगर का मार्ग, प्रेतगणों का वासस्थान, प्रेतलक्षण, प्रेतयोनि से मुक्ति, प्रेतों का स्वरूप, मनुष्यों की आयु, यमलोक का विस्तार, सपिण्डीकरण का विधान, वृषोत्सर्ग-विधान आदि विविध विषयों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। 'गरुड़पुराण' में गया का माहात्म्य एवं इसके बाद का विशेष रूप से महत्व प्रदर्शित किया गया है। विद्वानों ने इसका समय नवम शती के लगभग माना है। डॉ. हाजरा के