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[ भट्टोजि दीक्षित
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पूर्ण नियोजन है । विभीषण के राजनीतिक भाषण में कवि के राजनीतिशास्त्रविषयक ज्ञान का पता चलता है तथा रावण की सभा में उपस्थित होकर भाषण करनेवाली शूर्पणखा के कथन में बक्तृत्वकला की उत्कृष्टता परिलक्षित होती है । ( पंचम सर्ग में ) । बारहवें सगं का 'प्रभातवर्णन' प्राकृतिक दृश्यों के मोहक वर्णन के लिए संस्कृत साहित्य में विशिष्ट स्थान का अधिकारी है । कवि ने द्वितीय सगं में भी शरद् ऋतु का मनोरम वर्णन किया है । व्याकरण-सम्बन्धी पाण्डित्य के कारण ही उनका काव्य उपयोगी हुआ है। भले ही भट्टिकाव्य में इस रूप का रसवादी दृष्टि से पर उनके व्याकरण-सम्बन्धी पाण्डित्य का पूर्ण ज्ञान हो जाता है । प्रयास्यतः पुष्यवनाय जिष्णो रामस्य रोचिष्णु मुखस्य धृष्णुः ॥ १।२५ यहीं जिष्योः (जिष्णु का षष्ठी एकवचन) रोचिष्णु, धृष्णुः क्रमशः / जि, रुच एवं धृष् धातुओं तथा इनके साथ ग्स्नु, इष्णच् एवं न्कु प्रत्ययों से बने हैं। इन तीनों का एक साथ प्रयोग कर भट्टि ने अर्थ एवं व्याकरण-सिद्धि की दृष्टि से इनके तात्विक अन्तर का संकेत किया है ।
अधिक महत्त्व न हो
भट्टोजि दीक्षित ]
प्रस्तुत कर पूर्ववर्ती हैं।
अपने आलंविद्वानों ने
'भट्टिकाव्य' में
समय कवि ने
कवि ने १० वें सगं में अनेकानेक अलंकारों के उदाहरण कारिक रूप का निदर्शन किया है। ये भामह और दण्डी के इनकी गणना अलंकारशास्त्रियों में की है। वर्णन - कौशल की दृष्टि से नावीन्य का अभाव दिखाई पड़ता है। किसी विषय का वर्णन करते अपनी सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का उपयोग नहीं किया है तथा कथा के मार्मिक स्थलों की पहचान में भी अपनी पटुता प्रदर्शित नहीं की है। सीतापरिणय एवं राम-वन-गमन ऐसे मार्मिक प्रसंगों की ओर कवि की उदासीनता उसके महाकवित्व पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाती है । राम-विवाह का एक ही इलोक में संकेत किया गया है। रावण द्वारा हरण करने पर सीता विलाप का वर्णन अत्यल्प है और न उसमें रावण की दुष्टता तथा अपनी असमर्थता का कथन किया गया है। प्रकृति-चित्रण में भट्टि ने पटुता प्रदर्शित की है तथा प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन को स्वतन्त्र न कर कथा का अंग बनाया है। इसमें प्रकृति के जड़ और चेतन दोनों रूपों का निदर्शन है जिसमें इनकी कमनीय कल्पना एवं सूक्ष्म निरीक्षण दृष्टि का परिचय प्राप्त होता है । यत्र-तत्र उक्ति-वैचित्र्य के द्वारा भी कवि ने इस महाकाव्य को सजाया है ।
आधारग्रन्थ - १. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर - डॉ० एस० एन० दासगुप्त एवं डॉ० एस० के० है । २. संस्कृत साहित्य का इतिहास - डॉ० कोथ (हिन्दी अनुवाद ) । ३. संस्कृत सुकवि- समीक्षा - पं० बलदेव उपाध्याय । ४. संस्कृत कवि-दर्शन - डॉ० 'भोलाशंकर व्यास । ५. संस्कृत काव्यकार - डॉ० हरदत्त शास्त्री ।
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भट्टोजि कीसित — इन्होंने 'अष्टाध्यायी' (पाणिनिकृत व्याकरण ग्रन्थ) के क्रम के स्थान पर कौमुदी का प्रचलन कराया है। 'सिद्धान्तकौमुदी' की रचना कर दीक्षित ने संस्कृत व्याकरण अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में नया मोड़ उपस्थित किया । इनका समय सं० १५१० से १६०० के मध्य तक है। ये महाराष्ट्रीय ब्राह्मण थे। इनका
इस प्रकार है