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कमलाकर भट्ट]
[कल्प
प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान् गाबे ने अपने ग्रन्थ 'सांख्य फिलॉसफी' में मैक्समूलर तथा कोलक के निष्कर्षों का खण्डन कर कपिल को ऐतिहासिक व्यक्ति सिद्ध किया है । महर्षि कपिल रचित दो ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं-'तस्वसमास' एवं 'सांख्यसूत्र' । 'तत्त्वसमास' में कुल २२ सूत्र हैं और 'सांख्यसूत्र' ६ अध्याय में विभक्त है जिसमें सूत्रों की संख्या ५३७ है। 'सांख्यसूत्र' के प्रथम अध्याय में विषयप्रतिपादन, द्वितीय में कार्यों का विवेचन, तृतीय में वैराग्य, चतुर्थ में सांख्यतत्त्वों का आख्यायिकाओं के द्वारा विवेचन, पन्चम में परपक्ष का खण्डन तथा षष्ठ में सिद्धान्तों का संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया गया है। कपिल के शिष्य का नाम आसुरि था जो सांख्यदर्शन के प्रसिद्ध आचार्य हैं। कपिल के प्रशिष्य पन्चशिख हैं और वे भी सांख्यदर्शन के आचार्य हैं।
आधारग्रन्थ-१. इण्डियन फिलॉसफी भाग-२ डॉ. राधाकृष्णन् २ भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ३. सांख्यदर्शन का इतिहास-श्री उदयवीर शास्त्री ४. सांख्यतत्त्वकौमुदी-प्रभा ( हिन्दी व्याख्या ) डॉ० आद्या प्रसाद मिश्र ।
कमलाकर भट्ट-ये १७ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध धर्मशास्त्रकार हैं। इनके पिता का नाम रामकृष्ण भट्ट था। इनका रचनाकाल १६१० से १६४० ई. तक माना जाता है। ये न्याय, व्याकरण, मीमांसा, वेदान्त, साहित्यशास्त्र, वेद एवं धर्मशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या २२ है जिनमें अधिकांश पुस्तकें धर्मशास्त्र-विषयक हैं। निर्णयसिन्धु, दानकमलाकर, शान्तिरत्न, पूर्तकमलाकर, सर्वतीर्थविधि, व्रतकमलाकर, प्रायश्चित्तरत्न, विवादताण्डव, बहचाह्निक, गोत्रप्रवर. दर्पण, कर्मविपाकरत्न, शूद्रकमलाकर आदि इनके ग्रन्थ हैं। इनमें शूद्रकमलाकर, विवादताण्डव एवं निर्णयसिन्धु अति प्रसिद्ध हैं।
आधारग्रन्थ-धर्मशास्त्र का इतिहास-डॉ० पा० वा. काणे भाग १ (हिन्दी अनुवाद)
कमलाकर भट्ट-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। इन्होंने 'सिद्धान्ततत्त्वविवेक' नामक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना सं० १५८० में की है। इन्हें गोल एवं गणित दोनों का मर्मज्ञ बतलाया जाता है। ये प्रसिद्ध ज्योतिषी दिवाकर के भ्राता थे [ दे० दिवाकर ] और इन्होंने उनसे ही इस विषय का ज्ञान प्राप्त किया था। इन्होंने भास्कराचार्य के सिद्धान्त का अनेक स्थलों पर खण्डन किया है और सौरपक्ष की श्रेष्ठता स्वीकार कर ब्रह्मपक्ष को अमान्य सिद्ध किया है।
आधारग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री।
कल्प-वेदाङ्ग साहित्य में कल्प का स्थान महत्त्वपूर्ण है। 'कल्प' का अर्थ है वेद-विहित कर्मों का क्रमपूर्वक कल्पना करने वाला ग्रन्थ या शास्त्र-कल्पो वेद-विहितानां कर्माणामानुपूर्वेण कल्पनाशास्त्रम् । ऋग्वेद प्रातिशाख्य की वर्गद्वय वृत्ति पृ० १३ । विवाहोपनयन अथवा यज्ञयागादि के क्रमबद्ध रूप से वर्णन करने वाले सूत्रग्रन्थ ही कल्प कहे जाते हैं। इन सूत्रों का साक्षातू सम्बन्ध ब्राह्मणों और उपनिषदों से भी है। इनमें यज्ञ के प्रयोगों का समर्थन किया जाती है। कल्पसूत्रों का निर्माण यज्ञों के विधान को
७ सं० सा०