________________
(852)
[ लिंगपुराण
अभिषिक्तस्य कृत्यानि देवयात्रा विधि, कौमुदीमहोत्सव, इन्द्रध्वजोच्छ्रायविधि, महानवमीपूजा, विह्नविधि, गवोत्सगं तथा वसोर्धारा । लक्ष्मीधर के ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि वे अत्यन्त शाकनिष्ठ एवं धर्मशास्त्रों के पण्डित थे ।
आधारग्रन्थ - भारतीय राजशास्त्र प्रणेता - डॉ० श्यामलाल पाण्डेय ।
.
लल्ल - ये ज्योतिषशास्त्र के आचार्य हैं । इन्होंने 'शिष्यधीवृद्धिद तंत्र' नामक प्रसिद्ध ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की [ सुधाकर द्विवेदी द्वारा संपादित एवं १८८६ ई० मे बनारस से प्रकाशित ] है जिसमें एक हजार श्लोक एवं १३ अध्याय हैं। यह मूलतः ज्योतिषशास्त्र का ही ग्रन्थ है और इसमें अंकगणित या बीजगणित को स्थान नहीं दिया गया है । इनके समय के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है । म० म० पण्डित सुधाकर द्विवेदी के अनुसार इनका समय ४२१ शक संवत् है, पर शंकर बालकृष्ण दीक्षित इनका समय ५६० शक मानते हैं। प्रबोधचन्द्र खाद्यक' की टीका ( ब्रह्मगुप्त ज्योतिषी रचित ग्रन्थ ) की भूमिका ६७० शक मानते हैं जिसका समर्थन डॉ० गोरख प्रसाद ने भी किया है रचना का कारण देते हुए बताया है कि आर्यभट्ट अथवा उनके शिष्यों द्वारा लिखे गए ग्रन्थों के दुरूह होने के कारण इन्होंने विस्तारपूर्वक ( उदाहरण के साथ ) कर्मक्रम से इस ग्रन्थ की रचना की है ।
सेनगुप्त ' खण्ड
में
इनका समय
।
लक्ष ने ग्रन्थ
विज्ञाय शास्त्रमलमायं भटप्रणीतं तंत्राणि यद्यपि कृतानि तदीयशिष्यैः ।
लत ]
mmm
कमंक्रमो न खलु सम्यगुदीरितस्तैः कर्म ब्रवीम्यहमतः क्रमशस्तदुक्तम् ॥ २ ॥ मध्यमधिकार 'पाटीगणित' एवं 'रत्नकोश' इनके अन्य दो ग्रन्थ भी हैं, पर वे प्राप्त नहीं होते ।
आधारग्रन्थ - १. भारतीय ज्योतिष का इतिहास - डॉ० गोरखप्रसाद । २. भारतीय ज्योतिष श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित ( हिन्दी अनुवाद, हिन्दी -समिति ) ।
लिंगपुराण - क्रमानुसार ११ वीं पुराण । इसका प्रतिपाद्य है विविध प्रकार से शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन एवं लिंगोपासना का रहस्योद्घाटन । 'शिवपुराण' बताया गया है कि लिंग के चरित का कथन करने के कारण इसे 'लिंगपुराण' कहते हैं । 'मत्स्यपुराण' के अनुसार भगवान शंकर ने अग्निलिङ्ग के मध्य में स्थित होकर तथा कल्पान्तर में अग्नि को लक्षित करते हुए धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इन चारों पदार्थों की उपलब्धि के लिए जिस पुराण में धर्म को आदेश दिया है, उसे ब्रह्मा लिंग या लैंगपुराण की संज्ञा दी है [ मत्स्यपुराण अध्याय ५३ ] । इस पुराण से पता चलता है कि भगवान् शंकर की लिंग रूप से उपासना करने पर ही अग्निकल्प में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
'लिंगपुराण' में श्लोकों की संख्या ग्यारह हजार एवं अध्यायों की संख्या १६३ है । इसके दो विभाग किये गए हैं-पूर्व एवं उत्तर । पूर्वभाग में शिव द्वारा ही सृष्टि की उत्पत्ति का कथन किया गया है तथा वैवस्वत मन्वन्तर से लेकर कृष्ण के समय तक के राजवंशों का वर्णन है। शिवोपासना की प्रधानता होने के कारण इसमें विभिन्न स्थानों पर उन्हें विष्णु से महान् सिद्ध किया गया है। इस पुराण में भगवान् शंकर के