________________
कृष्णानन्द ]
( १४७ )
[ केनोपनिषद्
ww
का वर्णन है जिसमें गीता के ढङ्ग पर व्यास द्वारा पविव क्रमों एवं अनुष्ठानों से भगवत् साक्षात्कार का वर्णन है । इसके कतिपय अध्यायों में पापों के प्रायश्चित्त का वर्णन है तथा एक अध्याय में सीता जी की ऐसी कथा वर्णित है जो रामायण में प्राप्त नहीं होती। इस कथा में बताया गया है कि सीता को अग्निदेव ने रावण से मुक्त कराया था । 'कूर्मपुराण' के पूर्वाधं ( अध्याय १२ ) में महेश्वर को शक्ति का अत्यधिक वैशिष्ट्य प्रदर्शित किया गया है और उसके चार प्रकार माने गये हैं- शान्ति, विद्या, प्रतिष्ठा और निवृत्ति । 'व्यासगीता' के ११ वें अध्याय में पाशुपत योग का विस्तारपूर्वक वर्णन है तथा उसमें वर्णाश्रम धर्म एवं सदाचार का भी विवेचन है कारण विद्वानों ने 'कूर्मपुराण' का समय षष्ठ-सप्तम शती हाज़रा के अनुसार 'कूर्मपुराण' पाञ्चरात्रमत प्रतिपादक प्रथम पुराण है । 'पद्मपुराण' के पाताल खण्ड में 'कूर्मपुराण' का नाम आता है तथा उसका एक श्लोक भी उद्घृत है ।
।
कूर्मपुराण की विषय-सूची - इसमें चार संहिताएं हैं। पूर्वभाग में पुराण का उपक्रम, लक्ष्मी इन्द्रद्युम्न संवाद, कुमं तथा महर्षियों की बार्ता, वर्णाश्रम सम्बन्धी आचार का कथन, जगत् की उत्पत्ति का वर्णन, कालसंख्या निरूपण, प्रलय के अन्त में भगवान् की स्तुति, सृष्टि का संक्षिप्त वर्णन, शंकर-चरित्र, पार्वती सहस्र नाम, योगनिरूपण, भृगुवंश वर्णन, स्वायम्भुव मनु एवं देवताओं की उत्पत्ति, दक्ष-यज्ञ का विध्वंस, दक्ष-सृष्टि-कथन,
पवंश का वर्णन, श्रीकृष्ण चरित, मार्कडेण्य- कृष्ण-संवाद, व्यास - पाण्डव-संवाद, युगधर्म-वर्णन, व्यास- जैमिनि कथा, काशी तथा प्रयाग का माहात्म्य, तीनो लोकों का वन तथा वैदिक शाखा-निरूपण । उत्तरभाग — ईश्वरीय गीता तथा व्यास-गीता का वर्णन, नाना प्रकार के तीर्थों का वर्णन एवं उनका माहात्म्य-प्रदर्शन, प्रतिसर्ग या प्रलय का वर्णन । ( सभी विषय ब्राह्मी संहिता में वर्णित हैं ) भागवती संहिता - ब्राह्मणों के सदाचार की स्थिति, क्षत्रियों की वृत्ति का वर्णन, वैश्यवृत्ति तथा शूद्रों की वृत्ति का बर्णन । इसके पञ्चमपाद में संकर जाति की वृत्ति का निरूपण है ।
- माधार ग्रन्थ - १. कूर्मपुराण - वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई, २. पुराणतत्व-मीमांसाश्रीकृष्णमणि त्रिपाठी, ३. पुराण-विमर्श - आचायं बलदेव उपाध्याय, ४. पुराण विषयानुक्रमणिका – डॉ० राजबली पाण्डेय, ५. प्राचीन भारतीय साहित्य भाग १, खण्ड २– विन्टरनित्स ( हिन्दी अनुवाद ) ।
कृष्णानन्द – इन्होंने १५ सर्गों में 'सहृदयानन्द' नामक महाकाव्य की रचना की है । इसमें राजा नल का चरित वर्णित है । इनका समय १४ वीं शताब्दी है । ये जगन्नाथपुरी के निवासी थे । इनका एक पद्य 'साहित्यदर्पण' ( विश्वनाथ कविराज विरचित ) में उद्धृत है ।
[ हिन्दी अनुवाद सहित चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित ] केनोपनिषद् - यह 'सामवेद' की तलवकार शाखा के अन्तर्गत नवम अध्याय है जिसे तलवकारोपनिषद्, जैमिनीय उपनिषद् या केनोपनिषद् कहते हैं । इसके प्रारम्भ में 'केन' शब्द आया है ( केनेषितं पतति ) जिसके कारण इसे 'केनोपनिषद्' कहा जाता हैं । इसके छोटे-छोटे चार खण्ड हैं जो अंशतः गद्यात्मक तथा अंशतः पद्यात्मक हैं । प्रथम
पाशुपत मत के प्राधान्य के निर्धारित किया है। डॉ०