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दशकुमारचरित ]
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बदल कर कन्या के भावी पति के रूप में आ गया । की मांग की और न देने पर आत्महत्या करने की ब्राह्मण कन्या के भावी पति से अपनी लड़की का व्याह कर उसे इस प्रकार प्रमति की अभिलाषा पूर्ण हुई और वह सिंहवर्मा के आने पर राजवाहन से मिला ।
लौट कर उसने
मातृगुप्त ने अपनी कथा इस प्रकार प्रारम्भ की - वह भ्रमण करता हुआ दामलिप्त आया जहाँ वह राजकुमारी कन्दुकावती के प्रणय सूत्र में आबद्ध हुआ । दामलिप्त नरेश को विन्ध्यवासिनी देवी ने उसके पुत्र भीमधन्वा एवं पुत्री कन्दुकावती के सम्बन्ध में उनके जन्म से पूर्व ही दो आदेश दे रखे थे । प्रथम, यह कि राजा को कन्या के साथ एक पुत्र होगा और उसे कन्या के पति के अधीन रहना पड़ेगा तथा द्वितीय, यह कि राजकुमारी गेंद खेलती हुई अपने पति का स्वेच्छा से चयन करे । कन्दुकावती ने स्वेच्छानुसार मातृगुप्त को अपना पति बना लिया किन्तु भीमधन्वा ने मातृगुप्त के अधीन रहना स्वीकार न कर उसे समुद्र में फेंकवा दिया। किसी प्रकार मातृगुप्त ने अपना प्राण बचाया और भीमधन्वा को बन्दी बना लिया । वहाँ से एक ब्रह्मराक्षस के प्रश्नों का उत्तर देकर उसे प्रसन्न किया तथा एक राक्षस द्वारा ले जाती हुई कन्दुकावती को ब्रह्मराक्षस ने लड़कर मुक्त किया । मातृगुप्त कदुन्कावती को लेकर दामलिप्त आया और राजा ने उसे अपने जामाता के रूप में स्वीकार किया । जब वह सहवर्मा की सिहायता के लिए चम्पा आया तो उसकी राजवाहन से भेंट हुई । अब मन्त्रगुप्त ने अपनी कहानी सुनाई । उसने बताया कि वह कलिंग गया जहाँ उसने एक सिद्ध को मार कर कनकलेखा को मुक्त किया । इस पर दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे और वह छिप कर अन्तःपुर में राजकुमारी के साथ रहने लगा । इसी बीच आन्ध्र प्रदेशाधिपति ने कनक लेखा से विवाह करने की इच्छा से कलिंगनरेश को स्त्रियों के साथ बन्दी बना लिया । उस समय यह बात प्रकट हुई कि राजकुमारी पर किसी व्यक्ति ने अधिकार कर लिया है, यदि आन्ध्रनरेश उस पर विजय प्राप्त कर लें तो वे कनकलेखा से विवाह कर सकेंगे । मन्त्रगुप्त ने रासायनिक का वेष धारण किया और आन्ध्र चला गया। वहीं उसने आन्ध्रनरेश के शरीर को लोहमत्र बना देने के लिए छल से उसे तालाब में घुसा कर मार डाला । उसने कलिंगनरेश को छुड़ाया तथा राजकुमारी से व्याह कर कलिंग लौट आया। वहीं से सिंहवर्मा के सहायतार्थं आने पर उसकी राजवाहन से भेंट हुई ।
अन्तिम कथा विश्रुत की है। उसने बताया कि उसे बालक लिये हुए एक वृद्ध मिला जिससे पता चला कि यह बालक विदर्भ का राजकुमार भास्करवर्मा है तथा उसके पिता को मारकर वसन्तभानु ने विदर्भ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है विदर्भनरेश की पत्नी अपने पुत्र एवं पुत्री मंजुवादिनी के साथ महिष्मती के शासक मित्रवर्मा की शरण में है । वहां भी उन्हें राजकुमार की सुरक्षा पर सन्देह हुआ ओर उन्होंने उसे वृद्ध के साथ लगा दिया । विश्रुत ने बालक की सहायता करने का आश्वासन
[ दशकुमारचरित
प्रमति ने राजा से अपनी कन्या धमकी दी । अन्त में राजा ने युवराज बना दिया । सहायतार्थं चम्पानगरी