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भारद्वाज]
[भारद्वाज
इन्हें आस्तिक दर्शन इसलिए कहा जाता है कि ये वेद में श्रद्धा रखते हैं। नास्तिक दर्शनों में में चार्वाक, बोद एवं जैन आते हैं। चूंकि ये वेदों को नहीं मानते, अतः इन्हें नास्तिक-दर्शन कहा जाता है। भारतवर्ष में परस्पर विरोधी (आस्तिक और नास्तिक) दर्शनों की परम्परा अति प्राचीन है। भारतीय-दर्शन के मूलस्रोत वेद हैं। प्रायः सभी दर्शनों-विशेषतः षडदर्शनों के मूलभाव वेदों में सुरक्षित हैं। भारतीय दर्शन को चार कालों में विभक्त किया जाता है-वैदिककाल (१५०० ई० पू० से ६०० ई० पू० तक) महाकाव्यकाल (६०० ई० पू० से २०० ई० पश्चात् तक ), सूत्रकाल ( २०० ईस्वी) तथा टीकाकाल । वैदिककाल में भारतीय तत्त्व-चिन्तन का बीजारोपण हो गया था और विविध प्राकृतिक शक्तियों की आराधना के निमित्त ऋषियों ने जो उद्गार व्यक्त किए थे उनमें दार्शनिक पुट भी मिला हुआ था। कालान्तर में इन्हीं वेद मन्त्रों से विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों का उदय हुआ। वैदिक मन्त्रों में निहित तात्त्विक विचारों की पूर्णता उपनिषदों में दिखाई पड़ी और इस समय तक आकर भारतीय तस्व-चिंतन की सुदृढ़ परम्परा स्थापित हुई। ____ महाकाव्यकाल-'रामायण' एवं 'महाभारत' में विधिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। 'रामायण' में तो 'चार्वाकदर्शन' की भी चर्चा है और उसके उन्नायक बृहस्पति माने गए हैं। बौद्ध, जैन, शैव तथा वैष्णव मत की पद्धतियाँ इसी युग में स्थापित हुई हैं। 'महाभारत' के शान्तिपर्व में पांच दार्शनिक सम्प्रदायों का उल्लेख है-सांख्य, योग, पाचरात्र, वेद तथा पाशुपत, [ शान्तिपर्व अध्याय ३४९] । सूत्रकाल-यह युग षड्दर्शनों के मूल ग्रन्थों के लेखन का है जब सूत्ररूप में तत्त्वचिन्तन के तथ्य उपस्थित किये गए । टीकाकाल-इस काल में भारतीय तत्त्व-चिन्तन के महान् आचार्यों का आविर्भाव हुआ जिन्होंने अपनी प्रतिभा के द्वारा विभिन्न, भाष्यों की रचना कर दार्शनिक सिद्धान्तों के निगूढ़ तत्वों की व्याख्या की। ऐसे विचारकों में कुमारिल, शंकर, श्रीधर, रामानुज, मध्व, वाचस्पति मिश्र, उदयन, भास्कर, जयन्तभट्ट, विज्ञानभिक्षु तथा रघुनाथ आदि के नाम प्रसिद्ध हैं। मध्यकाल में कतिपय विद्वानों ने सभी भारतीय दर्शनों का सार-संचय करते हुए इतिहास ग्रन्थों की रचना की है। ऐसे ग्रन्थों में हरिभद्र रचित 'षड्दर्शन समुच्चय' (छठी शती), सामन्तभद्र लिखित 'आत्ममीमांसा' भावविवेक कृत 'तकज्वाला' आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । ऐसे संग्रहों में प्रसिद्ध वेदान्ती माधवाचार्य का 'सर्वदर्शनसंग्रह' (१४ वीं शताब्दी) अत्यन्त प्रसिद्ध है जिसमें सभी भारतीय-दर्शनों का सार दिया गया है । भारतीय दर्शन के निम्नांकित प्रसिद्ध सम्प्रदाय हैं-चार्वाक, जैन, बौद्ध, सांख्य, योग, मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, वेदान्त, शैवदर्शन, तन्त्र एवं वैष्णवदर्शन । [ सभी दर्शनों का परिचय उनके नामों के सामने देखें]
आधारग्रन्थ-भारतीयदर्शन-डॉ० राधाकृष्णन् ( हिन्दी अनुवाद ) भाग १।
भारद्वाज-संस्कृति के प्राक्पाणिनि बैयाकरण तथा अनेक शास्त्रों के निर्माता। २० युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार इनका समय ९३०० वर्ष वि० पू० है । इनकी व्याकरणविषयक रचना 'भारद्वाजतन्त्र' थी जो सम्प्रति अनुपलब्ध है । 'ऋक्तन्त्र' (१।४)